प्रहर प्रहार प्रहर-ग्या पुं० [सं०] पहर । दिन रात के पाठ सम भागों में से प्रहर्पण-वि० मानदित करनेवाला । इपंप्रद 01 एक भाग | पहरा । 10- इस स्वप्न में भी चार प्रहर के चार प्रहर्पणी-मण . . [40] १. हन्द्रिा । हलरी। २ तेरा पहरों स्वप्न हैं।-श्यामा०, पृ० ३। फी एफ रणवृत्ति जिसके प्रत्येक घरण में मगण फिर नगण, प्रहरक-सा पुं० [ स०] वह मनुष्य जो पहरे पर हो और घटा फिर जगण, गण और मत में एक गुरु होता है । (मनज बजाता हो । घड़ियाली। ग) । तीसरे और दसवें वणं पर यति होती है। जगे,- प्रहकुटुवी-मशा मी० [ मं० प्रहर कुटुम्बी ] अर्फपुप्पी । वैसो ही विरबहु राम हे कन्हाई, सरद पिणी जुन्हाई । प्रहरखना-क्रि० प्र० [ मं० प्रहर्पण ] हपित होना। पानदित प्रहर्पिणी- पी० [सं०] : 'प्रहरणी। होना। उ०-जनफसुता समेत रघुराई। पेखि प्रहरी मुनि प्रहर्पित-वि० [२०] १ प्रसन्न । हपित । पानदित । २. पठौर समुदाई।-तुलसी (शब्द॰) । या रडा । प्रकसा हुपा, जैसे वेत (को०)। ३. ममोग के लिये प्रहरण-सशा पुं० [ स०] १ हरना । हरण करना। छीनना । उत्तेजित किया हुआ (फो०)। २. प्रस्म । उ०—पौर प्रहरणों से प्रभुवर के रण में रिपु प्रह'ल-रशा पुं० [सं० ] बुध ग्रह (को॰] । गण मरते थे ।-साकेत, पृ० ३७६ । ३. युद्ध । ४ प्रहार । प्रहल्लाद-TE, पुं॰ [ म० पहाट ] १० 'प्रलाद-"। उ०- पार । ५. मारना । प्राघात पहुँचाना । ६ फेकना। ७. प्रहल्लाद उद्धार कियो पूरन पद जान्हर ।-]. रा०, हटाना । दूर करना । ८. स्पियो की सवारी के लिये एक २।२१। प्रकार का परदेवाला रथ । बहली । ६. गाडी में बैठने की प्रहसती- [ मेप्रहसन्ती ] १. हो । २. वासंती। ३. जगह । १०. मृदग के बारह प्रबधो में एक । प्रकृष्ट प्रगारपानी। गच्ची भंगेठी। ४. वह जो हंग रही प्रहरणकलिका--सचा स्त्री० [सं०] चौदह अक्षरो की एक वर्णवृत्ति हो या प्रफुल्ल हो। जिराके प्रत्येक चरण मे दो नगण, एक भगण, फिर एक प्रहसन- पुं० [सं०] १ हंसी। दिल्लगी। परिहास । गुहल । मगण घोर भत में लघु गुरु होते हैं । जैसे,-महि हरि जनमे खिल्ली। ३. उपहास या गाधिोप रचना (को०)। ४. एक सलन दलन को प्रहरण कलि काटन दुख जन को। प्रकार का काव्यमिथ नाट्य । प्रहरणकलिता-सहा स्त्री॰ [ म० ] दे० 'प्रहरणफलिका' । विशेप-यह रूपक के दस भेदो में है। इस रोल में नायक कोई प्रहरणीय'-वि० [सं०] १. प्रहरण के योग्य । २. अाक्रमण या राजा, धनी, ब्राह्मण या प्रतं होता है और अनेक पात्र रहते प्रहार करने योग्य । ३.क्षेपणीय [को०] । हैं । सेल भर में हास्यरस प्रधान रहता है। पहले के प्रहसनो प्रहरणीय-सचा पुं० पल । प्रायुध (फो०] । में एक ही प्रक होता था पर अब लोग काई अकों का प्रहसन लिगते हैं। जैसे, वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति भोर मधेर प्रहरत्-ससा पुं० [सं०] योद्धा । वीर को०] । नगरी प्रादि । इस प्रकार के नाटक प्राय फुगतिस गोधन के प्रहरपन-सशा पुं० [हिं० ] एक अलकार । दे० 'प्रहर्पण-२ ।' लिये बनाए और खेले जाते हैं। प्रहरी-वि० [सं० प्रहरिन् ] १ पहर पहर पर घटा बजानेवाला । प्रहसित'-सगा पुं० [सं०] १. एक वुद का नाम । २ हास्य । घटियाली। २ पहरेवाला । पहरुवा । पहरा देनेवाला। उ०-वना हुया है प्रहरी जिसका उस कुटीर में क्या धन है, प्रहसित-वि० हेमता हुमा यो । जिसकी रक्षा में रत इसका तन है, मन है, जीवन है।- प्रहस्त-मछा पुं० [ मं०] १. चपत । पप्पट | इत्यल । उंगलियों सहित फैलाई हुई हथेली । २. रामायण अनुमार रावण पचवटी, पृ०६। के ए मेनापति का नाम । प्रहर्ता-वि० [म० प्र ] [वि० बी० प्रही ] १. प्रहार करने वाला। २ योगा। प्रहाण-गा पुं० [२०] १ परित्याग। २ चित्त को एकाग्रता । प्रहर्प-सशा पुं० [सं०] १. हर्ष । पानंद । २ पुरुद्रिय फा उत्तेजित ध्यान । ३ प्रयत्न । उद्योग । प्रपास ०]। होना (को०)। प्रहाणि-माग [मं०] १ परित्याग । २. हानि । नाय। ३. यमी । घाटा । हानि। प्रहर्पण'--सचा पुं० [सं०] १. मानंद । २ एफ अलंकार जिसमें कपि प्रहान- • [२० प्रदान] दे० 'प्रहाण' । विना उद्योग के पनायास किसी के कांरित पदार्थ की प्रामि का वर्णन करता है। जैसे,—प्राण पियारो मिल्यो सपने में प्रहानि :--THAT [he प्रहाणि] २० 'प्रहाणि'। भई तब नेसुक नोंद निहोरे । कत को पायवो त्योही जगाय प्रदाय्य- . [i] सदेशपापा । दूत [फो०)। ससी फखो बोलि पियूष निचोरे । यो मतिराम घनघो उर में प्रहार-० [३०] १. मापात । पार| पोट । मार।.यप। सुस वाल फे यालम सो ग जोरे । ज्यों पट में पति ही चट हत्या । हनन । मारण (०) । ३ पुर। मा (2411४ फीलो पड़े रंग तीसरी बार के बोरे ।-निराम (मन्द०)। गतेमा हार (10) ३. युष नामफ ग्रह । ४ मनोवांछित वस्तु की प्राप्ति (को०)। फि०प्र०-करना।-होगा।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५०४
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