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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/६७

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पट्टेत २७७६ पठान -पमा पु० [हि० पट्टा + ऐत (प्रत्य॰)] वह कबूतर पठकर-सज्ञा पुं॰ [ म० पट्टकृत् ] तहसील । तालुका । उ०-मुक्तियाँ जो विलकुल लाल, काला या नीला हो और जिमके गले मे अथवा प्रदेश कई विषयो ( जिलो ) मे बँटे रहते थे, और ये सफेद कठा हो। विषय फिर कई पठको ( तहसील अथवा तालुको) में विभा- पट्टमान-वि० [स० पथ्यमान ] पढने योग्य । जिसका पढना जित थे।-पादि०, पृ० ४४५ । उचित हो। उ०-अपट्ठमान पाएन थ पट्ठमान वेद वै । यौ०–पठकपति = तहसीलदार । तालुकेदार। उ०—विषयो के केशव (शब्द०)। मुख्य अधिकारी विषयपति नथा पठको के पठकपति कहलाते पट्टा-गरा पु० [म० पुष्ट, प्रा० पुट्ठ ] [ सी० पठिया ] १ जवान । थे।-पादि०, पृ० ४४५ । तरुण । पाठा। पठन-पञ्चा पु० [स०] पढने की क्रिया । पढना । यौ०–जवान पट्टा। यौ०-पठन पाठन = पढना पढाना । २ मनुष्य, पशु आदि चर जीवो का वह बच्चा जिसमे यौवन पठनीय-वि० [म०] पढने योग्य । का आगमन हो चुका हो पर पूर्णता न आई हो। नवयुवक । पठनेटा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पठान + एटा ( = बेटा ) (प्रत्य॰)] उदत । जैसे,—अभी तो वह विलकुल पट्ठा है । पठान का लडका । वह जो पठान जाति मे उत्पन्न हुआ हो । विशेप-चौपायो मे घोडे पक्षियों मे कबूतर, उल्लू और मुर्ग उ०-परे रुधिर लपेटे पठनेटे फरकत हैं।-भूषण (शब्द०)। तथा सरीसृपो मे साँप के यौवनोन्मुख बच्चे को पट्ठा पठमंजरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० पठमञ्जरी ] श्री राग की चौथी कहते हैं। रागिनी। इसका गान समय एक पहर दिन के बाद है। ३ कुश्तीवाज । लडाका । जैसे,—उस पहलवान ने बहुत से पढ़े विशेप-10 'पटमजरी' । तैयार किए हैं। ४ ऐसा पत्ता जो लवा, दलदार या मोटा हो। जैसे, घोकुवार या तवाकू का पट्ठा । वे ततु जो पठरा-सज्ञा पु० [देश॰] दे० 'पटरा'। उ०—जहाँपर रेतकर मासपेशियो को परस्पर और हड्डियों के साथ वांधे रहते हैं । लोहदड को तितर बितर किया था-उस स्थान पर पठरे मोटी नस । स्नायु। उग पहे। कबीर म०, पृ० २४५ । मुहा०-पट्ठा चढ़ना = किसी नस का तन जाना । नस पर नस पठवना-वि० [ प्रा० पट्ठवण ] पठाया हुआ । प्रेपित । चढना । पट्ठों में घुसना = गहरी दोस्ती पैदा करना । यौ०-अठवन पठवना = स्थानिक और भेजा या पठाया हुमा प्रत रग बनना। प्रेत आदि । उ०-सतगुरु शब्द सहाई । निकट गए तन रोग न व्यापै पाप ताप मिट जाई। अठवन पठवन दीठ न लागे ६. एक प्रकार का चौडा गोटा जो सुनहला और रुपहला दोनो प्रकार का होता है। उ०-झूठे पट्टे की है मूवाफ पडी चोटी उलटे तेहिं घर खाई।-कवीर श०, भा॰ २, पृ० २८ । मे । देखते ही जिसे प्रांखो मे तरी आती है। -भारतेंदु ग्र०, पठवना -क्रि० स० [म० प्रस्थान ] भेजना । रवाना करना। भा॰ २, पृ० ७६० । ७ अतलस, सासनलेट आदि की पट्टी पठवाना-क्रि० स० [हिं० पठाना का प्रे० रूप ] भेजवाना । पर वेल बुनकर बनाई हुई गोट । ८ पेड़ के नीचे कमर भेजने का काम दूसरे से कराना। दूसरे को भेजने मे प्रवृत्त और जांघ के जोड का वह स्थान जहाँ छूने से गिल्टियाँ करना। मालूम होती हैं। पठान'-सञ्ज्ञा पु० [ पश्तो पुस्ताना ] एक मुसलमान जाति जो पट्टापछाड़-वि. [हि० पट्टा+ पछाडना ] इतनी बलवती (स्त्री) जो अफगानिस्तान के अधिकाश और भारत के सीमात प्रदेश, पुरुप को पछाड दे। खूब हृष्टपुष्ट और बलवती (स्त्री) । पजाव तथा रुहेलखड आदि मे वसती है। इस जाति के लोग जैसे,—वह तो सासी पट्टे पछाड औरत है। कट्टर, क्रूर, हिंसाप्रिय और स्वाधीनताप्रिय होते हैं । पट्ठी-गशा सी० [हिं० पट्टा ] -० 'पठिया' । । विशेष—यह जाति अनेक सप्रदायो और शाखानो मे विभक्त है पठगा साग पुं० [0] अवलव । आश्रय । सहारा। उ०-- जिनमें से प्रत्येक के नाम के साथ वश या संप्रदाय का सूचक तीन लोक रिसियाय सकल सुरनर और नारी। मोर न 'खेल', 'जई' भादि कोई न कोई शब्द लगा रहता है । जैसे, बाक बार पठगा पाया भारी।-पलटू०, भा०१, पृ०५। जक्का खेल, गिलजई आदि। प्रत्येक सप्रदाय में एक सरदार पठत-वि० [म० पठन ] जिनमे पर रचित और कठस्थी कृत काव्य होता है जिसको 'मलिक' कहते हैं। सीमात प्रदेश के पठानों श्रादि का पाठ हो। उ०-पठत कविसमेलन आदि की मे यही सरदार शासक होता है । सीमात प्रदेश के पठान महायता से छानो को काव्य पढने मोर कविता कठस्य असभ्य हैं। आखेट, चोरी और डकैती ही उनकी परने के लिये प्रोत्साहित और प्रेरित किया जा सकता जीविका के साधन हैं। अफगानिस्तान के पठान अपेक्षाकृत है।-भाषा शि०, पृ०६६ । सभ्य हैं। भारत के पठान उपयुक्त दोनों ही स्थानो के पठ-सग पी० [हिं० पाठ ] वह जवान बकरी जो व्याई न पठानो से अधिक सभ्य हैं और प्राय खेती या नौकरी करके हो । पाठ। अपनी जीविका चलाते हैं। धर्म की अपेक्षा रूढि और पटक-पुं० [सं०] पढ़नेवाला। पाठ करनेवाला। सभ्यता की अपेक्षा स्वाधीनता पठानो को अधिक प्रिय है। प्राय