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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/७५

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स्थान। २७८४ पण्यपत्तन चरित्रोपधानिका पतगर इसके बीज बो दिए जाते हैं। प्राय २० वर्ष में जब उसके पण्यपत्तन चरित्रोपधानिका-वि० स्त्री० [सं०] (वह नाव) जिसने बदरगाह के नियमो का पालन न किया हो (कौटि०)। पेट चालीम फुट मेंने हो जाते हैं तब पाट लिए जाते है। पण्यपरिणीता-सज्ञा स्त्री॰ [म०] सुरैतिन । रखेली [को०] । इनकी लकडी को छोटे छोटे टुगहों मे फाट कर प्राय दो पहर तक पानी में उबालते हैं, जिगगे एक प्रकार का बहुत पण्यफल-सज्ञा पुं॰ [स०] १ व्यापार मे प्राप्त लाभ । मुनाफा । नफा। बढिया लाल रंग निानना है । परने उग गरी गपत बहुत पण्यफलत्व - सज्ञा पुं॰ [सं०] मुनाफा (को०] । होती थी और यह बहुत अधिक मान में भारत में विदेशों पण्यभूमि-सज्ञा सी० [सं०] स्थान जहाँ माल या सौदा जमा किया यो भेजा जाता था, परतु जपसे विनायनी नाली रग जाता हो । कोठी । गोदाम । गोला। तैयार होने लगे तवमे इसकी मांग पहन घट गई है। पण्ययोषित-सज्ञा मी० [स०] वेश्या । रही (को०] । प्राजक्ल कई प्रकार के पिलायनी ताल रग भी पतग' के पण्यविलासिनी-मग्ना स्त्री० [म० ] वेश्या । रही। नाम गे ही विगते हैं। कुछ लोग इनो 'लाउरदा' ही पण्यवीथी-सज्ञा स्त्री० [सं०] प्रय विक्रय का मानते हैं, परतु यह वान ठीक नहीं है। इानो 'वाम' वाजार । हाट । भी रहते हैं। पण्यशाला--मज्ञा स्त्री० [सं०] दूकान । वह घर जिसमें चीजें पतंगर-वि० उटनेवाला। विकती हो। पतग'-गा पु० [सं० पतन ( = उपनेवाला)] मा में कार उठाने पण्यसस्था-सशा स्त्री० [सं०] माल रखने का गोदाम (कौटि०) । का एक पिलीना जो यांन की तीलियो के ढांचे पर एका पण्यसमवाय - ज्ञा पु० [सं०] थोक वेचा जानेवाला माल । पोर चौकोना कागज धौर कभी कभी बारी या मढकर पण्यस्त्री-मज्ञा स्त्री० [स०] वेश्या। रही। बनाया जाता है । गुरो । सानेपा । नग । तुरुन । तिलगी। पण्यांगना-सज्ञा स्त्री॰ [स० पण्यागना] १० 'पण्यस्त्री' । विशेष - इसका दाना दो तीलियो मे बनता है। एक बिलकुल पण्याधा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ मं० पण्याधान्य या पण्यान्नधान्य ] कॅगणी सीधी रगी जाती है पर दूसरी को नगर मिहगवदार नाम का धान्य। कर देते हैं। जीपी तीली को 'ढा' पौर मिहगवदार पण्या-सहा सो [स०] मालकॅगनी। को 'मान' या 'काप' कहते हैं। उड्डे के एक निरे यो पण्याजीव-सञ्ज्ञा पु० [स०] व्यापार से जीविका करनेवाला । 'पुछल्ला' पौर दूसरे को 'मुढा' पहते हैं। पुछल्ले पर एक रोजगारी । व्यापारी। तिकोना कागज और मठ दिया जाता है। कांच के पण्योपघात-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] विक्री के माल का नुकसान । दोनो गिरे 'कुबे' कहलाते हैं। ढ पर कागज पी दो छोटी विशेष--कौटिल्य ने लिखा है कि व्यापारियो को चद्रगुप्त के राज्य चौकोर चकतियां मढी होती है। एक उन म्यान पर जहाँ से सहायता मिलती थी। जव उनके माल का नुकसान हो ढड्ढा और पांच एक दुसरे को काटते हैं, दूारी पुचन्ने जाता था, तब उन्हे राज्य की ओर से सहायता मिलती थी। की पोर कुछ निश्चित प्रतर पर। इन्ही मे मूराम करके पतखा-मशा पु० [देश॰] एक प्रकार का बगला, जिसे 'पतोमा' 'कन्ना' अर्थात् वह डोरा बांधा जाता है जिसमे पसी या परेते की डोरी का गिरा चिार पतग उसया जाता है। कहते हैं। पतग'-सज्ञा पुं० [म० पतग] १. पक्षी चिडिया। २ शलभ । यद्यपि देखने में पतग के चागे पाश्चों की लबाई बराबर टिड्डी। ३. परवाना। पांखी । मुनगा। फतिंगा। ४ कोई जान पड़ती है, तथापि मुड्ढे और कुचे का प्रतर कुचे और परदार कीडा । उडनेवाला कोडा। ५ सूर्य । ६ एक प्रकार पुछल्ले के अतर से अधिक होता है। जिस डोरी से पतग का धान । जडह्न । ७ जलमहुआ। जलमधूक वृक्ष । ८ वढ़ाया जाता है वह नरा, वाना, गैल ग्रादि कई प्रकार की एक प्रकार का चदन । ६ कदुक । गेंद। उ०-करहिं गान होती है। बांस के जिस विशेष ढांचे पर सोरी लपेटी रहती है। वहु नान तरगा। बहु विधि पीडहि पानि पतगा।- उसके भी दो प्रकार है-एका 'चरसी' और दूसरा 'परेता'। विस्तारभेद से पतग कई प्रकार का होता है। बहुत बडे मानस, १।१२६ । १० पारद। पारा। ११ जैनो के एक देवता जो वाणव्यतर नामक देवगण के अतर्गत हैं। १२ पतग को 'तुवकल' कहते हैं। वनावट का दोप, हवा की तेजी आदि कारणो से अक्सर पतग हवा में चक्कर खाने एक गधव का नाम। १३ एक पहाड का नाम । १४ तन । शरीर । जिस्म (अने० ) । १५ नौका । नाव (अने०) । लगता है। इसे रोकने के लिये पुछल्ले मे कपड़े की एक १६ चिनगारी। १७ कृष्ण या विष्णु (को०)। १८ अश्व । घज्जी बांध देते हैं, इसको भी 'पुछल्ला' कहते हैं। भारतवर्ष मे केवल मनोरजन के लिये पतग उडाया जाता है परतु घोडा (को०)। पतगर-सञ्ज्ञा पुं० [स० पत्रङ्ग] एक प्रकार का बडा वृक्ष जिससे लाल पाश्चात्य देशों में इसका कुछ व्यावहारिक उपयोग भी किया जाने लगा है। रग बनाते हैं। विशेष—यह वृक्ष मध्यभारत तथा कटक प्रात मे अधिकता से क्रि० प्र०-उदाना।-लदाना । होता है। वैसाख जेठ मे जमीन को अच्छी तरह जोतकर यौ०-पतंगवाज।