पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१७४

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बल्दै ३४१५ धवंडेर 1 बल्ब-संज्ञा पुं० [अं०] १. एक प्रकार की वनस्पति । गुट्ठी । जो राजाघों की सवारी या बारात के साथ हाथ में वल्लम विशेष—इसमें बहुत सी पत्तियों के योग से प्रायः कमल के लेकर चलता है। आकार की बहुत बड़ी फली या गुट्ठी सी बन जाती है। वल्लमा -संज्ञा पुं० [सं० वल्लभ ] दे० 'बालम'। उ०-वार इसके नीचे के भाग से जड़ें निकलती हैं जो जमीन के अंदर लगाई बल्लमा विरहनि फिर उदास ।-सुदर प्र०, भा० २, फैलती हैं और ऊपरी मध्य भाग में से पतला तना निकल पृ० ६८५। कर ऊपर की ओर बढ़ता है जिसमें सुगंधित फूल लगते बल्लरो-संज्ञा स्त्री० [ सं० वल्लरी ] दे० 'वल्ली' । हैं। इसके कई भेद होते हैं । बल्लव-संज्ञा पुं० [सं०] १. चरवाहा । ग्वाला । २. भीम का २. शीशे का वह खोखला लट्ठ जो प्रायः कमल के प्राकार का वह नाम जो उन्होने विराट के यहाँ रसोइए के रूप में पज्ञात- होता है और जिसके अंदर बिजली की रोशनी के तार वास करने के समय में धारण किया था। ३. रसोइया । लगे रहते हैं। ३. शीशे की किसी नली का चौड़ा बल्लवी-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] ग्वालिन [को०] । हिस्सा। बल्ला'-संज्ञा पु० [सं० वल (= लट्ठा या डढा)][ खो० अल्पा० बल्वलाकार-सज्ञा पुं० [सं० ] वह व्यक्ति जो तुतला या हकलाकर वल्ली] १. लकड़ी की लंबी, सीधी और मोटी छड़ या लट्ठा । बोलता हो (को०] । हंडे के आकार का लबा मोटा टुकड़ा। शहतीर या डंडा । वल्मा-संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'बालम' । उ०-वल्मा झोक लगे जैसे, साखू का वल्ला। २. मोटा डंडा । दंड। उ०-कल्ला लटकन की, मो पै अटा चढ्यो ना जाइ।-पोद्दार अभि० करे पागू जान देत लेत वल्ला त्यागे ढौंसत प्रबल्ला मल्ला ग्न, पृ० ८७७। धायो राजद्वार को।-रघुराज (शब्द०)। ३. बांस या बल्य'–वि० [सं०] १. बलकारक । २. शक्तियुक्त । बल- डंडा जिससे नाव खेते हैं ! डाँड़ा। ४. गेंद मारने का लकड़ी शाली (को०)। का डहा जो आगे की ओर चौड़ा और चिपटा होता बल्य-संज्ञा पुं० १. शुक्र । वीयं । २. बौद्ध भिक्षु (को॰) । है। बैट। बल्या-सज्ञा खो० [सं०] १. प्रतिबला । २. अश्वगंधा । ३. प्रसा- यौ०-गेंद बल्ला। रिणी। ४. शिम्रीडी । चंगोनी । बल्ला-सज्ञा पु० [सं० वलय ] गोबर की सुखाई हुई पहिए के बल्ल-संज्ञा पु० [सं० वल्ल ] दे॰ 'वल्ल' । आकार की गोल टिकिया जो होलिका जलने के समय बल्लकी संज्ञा स्त्री॰ [सं०] दे॰ 'वल्लकी'। उसमें डाली जाती है। बल्लव-संज्ञा पुं० [सं० बल्लभ ] गोप। ग्वाल |-अनेकार्थ०, वल्लारी-संज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] संपूर्ण जाति की एक रागिनी जिसमें केवल कोमल गांधार लगता है। बल्लभ-संज्ञा पुं० [सं० वल्लभ ] [ स्त्री० वल्लभा ] दे० 'वल्लभ'। बल्ली-संज्ञा स्त्री० [हिं० घल्ला ] १. छोटा बल्ला । लकड़ी का -(क) डारयो उगिलि सुबल्लभ वालक । जगपालक लंबा टुकड़ा । २. खंमा । ३. नाव खेने का बल्ला । डाँड़ । ऐसेइ घरघालक ।-नंद० प्र०, पृ० २५८ । (ख) निध बल्ली२- संज्ञा स्त्री० [सं० वल्ली ] लता । वल्ली। उ०-सुनि बल्लभ परिहरि जुवति धाव ।-विद्यापति, पृ० ६६ । कग्गर नृपराज पृथु भी पानंद सुभाइ । मानौ वल्ली सूकते बल्लभी-संज्ञा स्त्री० [सं० वल्लभी ] दे० 'वलभी' । बीरा रस जल पाई।-पृ० रा०, १२।६६ । बल्लभी@-सज्ञा स्त्री॰ [सं० वल्लवी ] १. ग्वालि । २. रसोई बल्लेबाज-वि० [हिं० बल्ला+बाज ] क्रिकेट के खेल में बनानेवाली स्त्री। बल्ले (बैट) से गेंद मारनेवाला। क्रिकेट के बल्ले से बल्लम-सज्ञा पुं० [सं० बल, हिं० बदला] १. छड़। बल्ला । २. खेलनेवाला। सोंटा। डंडा । ३. वह सुनहरा या रुपहला डंडा जिसे प्रतिहार वल्लोच-संज्ञा पुं० [ फ़ा० बलूच ] बलूचिस्तान की निवासिनी एक या चोबदार राजाओं के आगे लेकर चलते हैं। जाति का नाम । उ०-वल्लोच मिले सब पाइबंधि । यौ०-मासाबल्लम । घाभन्या नृपति तजि गए संधि ।-पु० रा०, ११४२२ । ४. बरछा । भाला। बल्व-संज्ञा पुं० [सं०] ज्योतिष के अनुसार एक करण का नाम । बल्लमटेर-संक्षा पुं० [अं० वालंटियर ] १. वह मनुष्य जो बिना वल्वज-संशा पुं० [सं०] [स्त्री० यत्त्वजा ] एक घास का नाम । वेतन के स्वेच्छा से फौज में सिपाही या अफसर का काम बल्वल-संज्ञा पुं० [सं०] इल्वल नामक दैत्य के पुत्र का नाम जिसे करे । स्वेच्छापूर्वक सेना में भरती होनेवाला । स्वेच्छा सैनिक । वलदेव जी ने मारा था। कालंटियर । २. अपनी इच्छा से सार्वजनिक सेवा का कोई यौ०-बत्वलारि= बलदेव जी । काम करनेवाला । स्वेच्छासेवक । स्वयंसेवक । बवंडर-संज्ञा पुं० [सं० वायु+ मण्डल या सं० वात हिं० अडंबर] बल्लमबर्दार-संज्ञा पुं० [हिं० बल्नम+फा० बर्दान् ] वह नौकर १. हुवा का तेज झोंका जो घूमता हुमा चलता है और जिसमें पृ० २६। 50