पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१७६

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पसर मन सा वृक्ष । बहुरा पाणी। 30-मेरे गहण विकार की परीक्षा यम ३. टिनामानगरना। गरमागे-- होगी।-रागती (०२०)। सीमापुरी गानीम। मुहा०- पसरगे। पा पर । राहगे। रसो। नना बहुत संयोकि-जाना-ना । है, पौर पगिक नही। उ.-पलराम जी, यसरी, गुहा०-- मग में मना - "मान घना ना भूमि में बसपारो, पघिय वाई उग्रसेग पी मरा करो -7 मना ! Totaमट टिना र पुरम कर (नम्म०)। मार आदि को मन यमो दिमाग घस'-०१. पर्यायापी। धनम् । २. सिर्फ। फेवरा जना --किग (२०)। मात्र । रोयस, में पोर न पाहिए । 30-चिए ४. ना मना । गुणगौरय पूर्ण पंय गण सारा । नरा यही प्रापने विनय 5991-*** [fo km77) 171 hari ini za विनीत हमाग:-हिरेवी (नन्द०)। काना । गुगार हो जाना। से मर जाना । गे,-- वस --म.ए. [ सं यश]: 'या'। रोत गया। फिप्रमार लेना :- वश में कर सेना । उ०-४सर, संयोकि-जाना। विल्गुन यस में कार सिया:-फिग्राना०, भा०३, पृ०४ । घसना - (= पपा)] १. या कपड़ा जिसमें पस- पुं० [हिं० पास ] सुवामित । ३०-मपुर मालती के गोई मटकार गोमाय । छन । पठन । २. नौ । सिंगार सजि पहिरि विसद वग बारा ।-धनानंद, पृ० ४८२। २. पायो जालीदार थी जिसमें सपना मागो।। घस"-साडी [ यं० ] यात्रियों की सवारी गासी । सारी। यह इमे वसनी भी पहने हैं। ४. पद कोठी जिग रए गा तंबी मोटर जिसपर गोग पावागमन करते हैं। मदन ना हो। ५. धामन । बरनन । मादा। यसकारन-० [१० वशीकरम ] वरा में पारनेवाली । गमीभूत यसना'-- सं . ] जयंती मी जाति का एक प्रारा फरनेवाली। 30-मानधन ममटि धीर पिहरत रगति प्रजया च सगरम पंरिका गाजे 1-~पनागर, पृ० ४३४ । विशेष-यह वृथा देगने में या गुपर होता है और प्राय: नोमा पसतशा ० [सं० घातु ] 2. 'वस्तु'। उ०-(फ) के लिये बागो मे रागापा रातागमे १७ एरचानिश स्वामी जी घरात घणेरी परतग पोछा हो गुरु मा कीजे । संयमी है। पान फैटी में यह लगाया जाता है। -रामानं८०, पृ. १४ । (स) ले परी बसत पन्नेमा गुर दगी पत्तियो, दनिकों और पूजा की सरासरी बनती है परि गस्तुति मुगा डोटि तर ।-१० रा०, २४१४८० । गौर सोपधिप में भी उनका उपयोग होता है। पसबार-सं० [सं० यसति घर । नियामरपान । उ०-मनो घरात रंगरेच मट्ट फुट्यो सुरंग हदि।-१००, २४११६६ । वसनि@--in हिं० यसमा ] ना। निदाम । पार। उ०--विद्या वारसायन लोग ही पनि।- बसतो-संशात्री० [सं० पसति] २० 'धरती' । उ०-दराती ग सुन्ध, मामी (गद०)। सुन्य न वगती मगर मगोचर ऐसा ।-गोररा०, पृ० १। यसन- ० [सं० यसन ] दे० 'यसन' । उ०-चमन दीशुगे बसयासहि० यसनापास ] १. निराम । रहना । सी परे तागौ तु यह वा गेह ।-स० सहस, पृ० ३६५ । F-(1) मुनि मुनि धामप्रभु निको पगरी ममता घसना-फि०१० [सं० चसन ] १. रपागी रूप से रिपत होना। -तुममा ५०, १०६ । (ग) को तुम पराग दिसे ने माम मार। गोरम गरमहोदनिमित निवास करना रहना । जैसे,—इस गांव में जितने मनुष्य बसते है। 30-(7) जो सोदाय माजिद में बसा है पोर नागपूर (10) । २. नादा रिचा। उगे याम आमदगार देर देश में गोरा ? -नीर (प.) । (m) पाता है म. - सो गया।- (६०)। गगनं प्रान पिप शुमही श्याम । -पूर (130) २. जगपूर्ण होना। मारियों पा नियारियों से भरा पूरा २. गायम । और मामी निकोप STITUTI 70 - 17 T.'ncht होना । माबाद होना। रमे, गायना, हर पसना । गे। सोमबीर संयोकि-मामा गुहा--पर समाना:- यहिया सगपूर हिरोमा । यमर... { । पासपी का पनना । उ-नारस पर परि बस माल, उपमहर-गुलमों ()। पर में घमना - गुरुपू लो में समा। 3. प. य. पगा l चिसे रिदिप गिरिरामद सापेट। सहायरी उगह 1-गुनधी (जन्म