पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१८७

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बहुतायत घास । .. बहुतायत-संज्ञा स्री० [हिं० पहुत+आयत (प्रत्य॰)] अधिकता । बहुधार-संज्ञा पुं० [सं०] १. एक प्रकार का हीरा । बच । हीरक । ज्यादती। कसरत । २. विद्युत् । वज्र (को०] । बहुतिक्ता-संज्ञा स्त्री० [सं०] कोकमाची । बहुनाद-पंज्ञा पुं० [सं०] शंख । बहुतृण'-वि० [सं०] १. घास से भरा हुमा। शादलपूर्ण । २. घास बहुपत्र'-संज्ञा पुं० [सं०] १. अभ्रक । प्रबरफ । २. प्याज ! को सरह । घास जैसा अनावश्यक एवम् तुच्छ [को०] 1. । पलांडु । ३. बंशपत्र । ४. मुचकुंद का पेड़ । १. पलाश । बहुतृण-संज्ञा पुं० मन नामक घास । बहुपत्र:-वि० बहुत पचों से युक्त [को०] । बहुतेर-वि० [हिं०.j ३० 'बहुतेरे'। उ०-साधो मंत्र सत मत बहुपत्रा-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. तरुणीपुष्प वृक्ष । २. शिवलिंगनी ज्ञान । देसि बह बहुतेर..पंधे, झूठ करहिं बखान । जग० लता । ३. गोरकादुग्धी । दुधिया घास । ४. भूपावसा । ५. पानी, पृ० १५ घीकुवार । ६. वृहती। ७. चतुका। पहाड़ी नाम की पता जिसकी पत्तियां दवा के काम में पाती हैं। बहुतेरा'-वि० [हिं० बहुत + एरा (प्रत्य॰)] [ विनो० बहुतेरी ] बहुत सा । पधिक । :- बहुपत्रिका-मझा स्त्री० [सं०] १. भूम्यामलकी। २. महा शतावरी । ३. मेथी। ४. वच। बहुतेरा'- क्रि० वि० बहुत । बहुत प्रकार से । बहुत परिमाण में । जैसे,—मैंने छहरा समझाया, पर उसके एक न मानी । बहुपत्री-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. भूम्यामलकी। २. लिगिनी ३. तुलसी का पौधा। बहुतेरे-वि० [हिं० बहुतेरा] संख्या में अधिक । बहुत से । अनेक । ४. खतुका । ५.. बृहती। ६. दुषिया उ०—अवलोके रघुपति बहुतेरे । सीता सहित न वेष घनेरे । —मानस, १९५५ बहुपद्, वहुपाद्-सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'बहुपाद'। बहुत-वि० [हिं०.] दे० 'बहुत' । उ०—धनि छोडिन नवजो- बहुपाद-वि० [सं०] अधिक पैरोंवाला । मनेक पैरोंवाला । ब्धना धन छोडिमो बहुत ।-कीति०, पृ० २२ । बहुपाद-संज्ञा पुं० वटवृक्ष । बरगद का पेड़ । बड़ का पेड़ । बहुत्व-संशा पुं० [सं०] प्राधिक्य -। अधिकता । बहुपुत्र-संज्ञा पु० [सं०] १. पांचवें प्रजापति का नाम । २. ' सप्तपणं । सप्तच्छद । बहुत्वक्क-संज्ञा पुं० [सं०] घोषपन । घहुपुत्रिका-संवा लो० [सं० ] स्कंद की अनुचरी । एक मातृका । पहुत्व-संज्ञा पुं० [सं०] भोपपत्र । . बहुपुष्प-संज्ञा पुं॰ [सं०] १. पारिभद्रं वृक्ष । फरहद का पेड़ । २. बहुदक्षिण-वि० [सं०] १. अधिक पानोपहार पानेवाला । अधिक नीम का पेड़। उपहारों से मुक्त । २. उदार विचारों वाला [को०] । बहुपुष्पिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] पातको वृक्ष । पाय का पेर। बहुदर्शक-संज्ञा पुं०, वि० [सं०] दे० 'बहुदी' को०) । बहुप्रज'-वि० [सं० ] जिसके बहुत संतान हों। बहुदर्शिता-संवा मी० [सं० ] बहुजता । बहुत सी बातों की जान- बहुप्रजः-संचा ५० १. शूकर'। सूपर । २. मज का पौधा । ३. कारी पा सम। बहुदर्शी'—संशा पुं०.[ सं० पहुदर्शिन् ],वह व्यक्ति जिसने बहुत-कुछ . बहुफल-सज्ञा पुं० [सं०] १. कदंब । २. विककत । कटाई । . भूसा । मूषक (को०)। देखा हो । जानकार या बहुज्ञ व्यक्ति । बनभंटा । बहुदर्शी-वि० जानकार । बहुज्ञ । दूरदर्शी को०] । बहुफला-सज्ञा स्त्री० [सं०] १. भूम्यामलकी । २. खोरा । त्रपुष । बहुदल-संज्ञा पुं॰ [ सं० ] चेना नाम का,पन्न । ३. क्षविका । एक प्रकार का बनभंटा । ४. काफमाची। ५. बहुदला-संवा स्त्री० [सं०] चंधु । चंच नाम का साग । छोटा करेला । जंगली करेला । करेली। बहुंदुग्ध-संज्ञा पुं० [सं०] गेहूँ। . बहुफलो-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की जंगली गाजर । बहुदुग्धा-संज्ञा स्त्री० [सं०] थूहर का पेड़। स्नुहो। विशेष—इसका पौधा अजवाइन का सा पर उससे छोटा होता बहुदुग्धिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'बहुदुग्धा' । है । पत्ते सौंफ के से होते हैं और धनिए के फूलो के से पीले बहुधंधी-वि० [हिं० यहु +धंधा ] पपने को बहुत कामों में लगाए रंग के गुच्छे लगते हैं। उंगली की तरह या पतली गाजर सी- रखनेवाला। लंबी जड़ होती है। बीज भरे हलके मौर हरसिंगार के बीजों के से होते हैं तथा बाजार में 'बनफली' या 'टूफू' (हकीमी).. बहुधन-वि० [सं०] प्रत्यधिक संपत्तिवाला [को०] । के नाम से विकते हैं। बहुधर-संश पुं० [सं०.] शिव । महादेव.. : बहुफेना-स -सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १. सातला । -पीले दूधवाला थूहर । बहुधा-क्रि० वि० [सं०] १. बहुत, प्रकार से । भनेक, ढंग-से । २. . २. शंखाहुली। - बहुत करके । प्रायः । पकसर । अधिकतर । अवसरों पर । बहुबल-संज्ञा पुं० [सं०] सिंह । मृगें। बहुधान्य-संज्ञा पुं॰ [सं०] साठ संवत्सरों में से बारहवा संवत्सर । बहुबल्क-संज्ञा पु० [सं०] पियासाल । - - 1 .