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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२२४

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बारह ३४६३ मारहा करना=तितर बितर या छिन्न भिन्न करना । इधर उधर महें जेती रानी। तिन्ह महँ दीपक बारहबानी-जायसी कर देना। बारह वाट घालना%3D छिन्न भिन्न करना । तितर (शब्द॰) । ३. निर्दोप । सच्चा। जिसमे कोई बुराई न हो। वितर या नष्ट भ्रष्ट करना। उ०-मोहि लगि यह कुठाट पापरहित । ४. जिसमें कुछ कसर न हो। पूरा। पूर्ण । तेनि ठाटा। घालेसि सब जग वारहवाटा ।-तुलसी पकमा । उ०-है वह सब गुन बारवानी । ए सखि ! साजन, (शब्द०)। बारह बाट जाना = (१) तितर बितर होना । ना सखि, पानी !-बुसरो (शद०)। छिन्न भिन्न होना। 7०-मन बदले भवसिंधु ते बहुत बारहवानी'-संज्ञा स्त्री० सूर्य की सी दमक । चोखी चमफ । जैसे, लगाए घाट । मनही 2 घाले गए वहि घर बारहबाट ।- बारहबानी का सोना। रसनिधि (शब्द०)। (२) नष्ट भ्रष्ट होना । उ०—(क) बारहमासा-संज्ञा पुं० [हिं० बारह + मास ] [ खी० घारहमासी] लंक असुभ चरचा चलति हाट बाट घर घाट । रावन सहित वह पद्य या गीत जिसमे बारह महीनो मी प्राकृतिक विशेष- समाज अब जाइहि बारहबाट । -तुलसी (शब्द॰) । (ख) तानों का वर्णन किसी विरहिणी के मुख से कराया गया राज करत यिनु काजही ठटहिं जे ठाट कुठ'ट । तुलसी ते हो। उ०-गाती बारहमासी, सावन और जलिया।- कुरुराज ज्यों हैं बारहब ट ।-तुलसी (शब्द०)। थारह अपरा, पृ० १६४। बाट होना= तितर बितर होना । नष्ट होना । उ०-प्रथम एक जे हो पिया भया सो वारहबाट । कसत कसोटी बारहमासी-वि० [हिं० वारह + मास ] १. जिसमें बारहो महीनों ना टिका पीतर भया निगट :-कबीर (शब्द०)। में फल, फूल लगा करते हो। सब ऋतुओं में फलने, फूलने- वाला । सदाबहार । सदाफल । जैसे, बारहमासी ग्राम, बारह-संज्ञा पुं० १. घारह की संख्या । २. बारह का अंक जो इस बारहमासी गुलाव । २. बारहो महीने होनेवाला । उ.- प्रकार लिखा जाता है-१२। उ०-कु बजा कान्ह दोउ मिलि खेले बारहमासी फाग - बारह आना-मंशा पुं० [हिं० तीन चौथाई । पचहत्तर प्रतिशत । सूर (णन्द०)। उ०-हमारे पानंद बारह पाने क्लेश ही हो जाये तो बारह मुकाम-संज्ञा पुं॰ [फा०] ईरानी संगीत के १२ स्थान क्या?-चिंतामणि, मा० २, पृ० ५० । या पर्दे। वारहखड़ी-संश खी० [सं० द्वादश + अक्षरी, हिं० बारह + खड़ी ] वारहवफात-संज्ञा स्त्री० [हिं० चारह+५० वफ़ात ] परवी महीने वर्णमाला का वह अंश जिसमे प्रत्येक व्यंजन में अ, आ, इ, ई, 'रबी उल अव्वल' की वे बारह तिथियां जिनमें मुसलमानों उ, ऊ, ए, ऐ, प्रो, श्री, अं, प्रः इन बारह स्वरों को, मात्रा के के विश्वास के अनुसार, मुहम्मद साहब बीमार होकर रूप मे लगाकर बोलते या लिखते हैं । बारहदरी-संशा स्त्री० [हिं० वारह + फ़ा० दर (= दरवाजा)] चारों मोर से खुली और हवादार वह बैठक जिसमें बारह द्वार हो। बारहवाँ-वि० [हिं० बारह ] [ वि० स्त्री० बारहवीं ] जो स्थान में ग्यारहवें के बाद हो । जैसे,—बारहवाँ दिन, बारहवीं तिथि, उ.-बारहदरीन बीच चाहू तरफ जैसो बरफ विछाय ताप वारहवा महीना इत्यादि । सीतल सुपाटी है।-पद्माकर (शब्द०)। विशेष-बारह दरवाजों से कम की बैठक भी यदि चारों भोर से वारहसिंगा-संज्ञा पुं० [हिं० वारह + सींग ] हिरन की जाति का खुली और हवादार हो तो वारहदरी कहलाती है। इसमें एक पशु जो तीन चार फुट ऊंचा घोर सात पाठ फुट लंबा होता है। अधिकतर खभे होते हैं, दरवाजे नहीं होते। विशेप-इस पशु जाति के नर के सीगो में कई शाखाएँ बारहपत्थर-संज्ञा पु० [हिं० बारह + पत्थर ] १. वह पत्थर जो निकलती हैं, इसी से बारहसिंगा नाम पडा। और चौपायों छावनी की सरहद पर गाड़ा जाता है । सीमा । २. छावनी। के सीगो के समान, इसके सीगों पर बड़ा प्रावरण नहीं मुहा०-बारह पत्थर बाहर करना% निकालना । सीमा बाहर होता, कोमल चमढ़ा होता है जिसपर नरम महीन रोएं होते करना। हैं। इसके सीग का प्रावरण प्रति वर्ष फागुन चैत में उतरता बारहबान--संश पु. [ स० द्वादशवर्ण ] एक प्रकार का सोना जो है । पावरण उतरने पर सीग मे से एक नई शामा का अंकुर बहुत अच्छा होता है । बारहबानी का सोना। दिखाई पड़ता है। इस प्रकार हर साल एक नई शाखा बारहवाना-वि० [सं० द्वादशवणं] १. सूर्य के समान दमकवाला। का अकुर दिखाई पड़ता है और हर साल एक नई पाखा २. खरा । चोखा (सोने के लिये) । उ०-सूरदास प्रभु हम निकलती है जो कुमार से पातिक तक पूरी बढ़ जाती हैं खोटी तुम तो बारहबाने हो।- सूर (शब्द०)। विशेष है। मादा, जिसे सींग नहीं होते, चैत वैशास में बच्चा दे० 'वारहवानी'। वारहवानी'-वि० [सं० दादश (प्रादित्य)+ वर्ण, पा० वारस बारहों-वि० [हिं० बारह ] १.३ 'चारहा। २. श्रेष्ठ। बड़ा । वरण ] १. सूर्य के समान दमकवाला । २. सरा। चौसा (व्यंग्य में)। (सोने लिये)। उ०-(क) सोहत लोह परसि पारस ज्यो घारहा-क्रि० वि० [फा० बार+हा (प्रत्य॰)] अनेक बार । सुबरन बारहवानि ।-सूर (शब्द०) । (ख) सिंघल दीप कई बार । अक्सर । जैसे,—मैं चारहा उनके यहाँ गया, पर मरे थे। देती है।