फटफट ३२६४ फड़कना सयो क्रि०-जाना। रुचिर फटिक रचे ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) ऐसे कहत गए ६. किसी वात का बहुत अधिक होना । बहुत ज्यादा होना । अपने पुर सहि विलक्षण देख्यो। मणिमय महल फटिक विशेष-इस अर्थ में प्रायः यह सयो० कि० 'पड़ना' के साथ बोला गोपुर लखि, कनक भूमि अवरेख्यो ।-सूर (शब्द॰) । २. जाता है । जैसे, रूप फटा पड़ना, प्राफत का फट पड़ना । मरमर पत्थर । संग मरमर । मुहा०-फट पड़ना = अचानक आ पहुँचना । सहसा आ पड़ना। यौ०-फटिकशिला, फटिकसिला = स्फटिक की शिला । उ०- (क) जो गज फटिकशिला मे देखत दसनन जाय परत । संयो० कि०-पड़ना । जो तू सूर सुखहि चाहत है तो क्यों विषय परत ।-सूर ७. असह्य वेदना होना। बहुत अधिक पीड़ा होना । जैसे,- (शब्द॰) । (ख) फटिकसिला बैठे द्वौ भाई ।-मानस, ५।२६ । मारे दर्द के सिर फट रहा है । फटिका-संज्ञा स्त्री॰ [सं० स्फटिक (= फटिक)] एक प्रकार की मुहा०-फटा जाना या पड़ना = बहुत अधिक पीड़ा होना। शराब जो जो प्रादि से खमीर उठाकर विना खीचे बनाई बहुत तेज दर्द होना । जैसे,-ऐसी पीड़ा है कि हाथ फटा जाती है। जा रहा है। फटफट-संज्ञा स्त्री० [अनु०] १. फट फट शब्द होना। फट्ठा'-संशा पुं० [ हिं० फटना ] [ नी० फट्ठी ] चोरी हुई वांस २. बकवाद। की छड़ । बाँस को बीच से फाड़ या चीरकर बनाया हुआ व्यथं की बात। लट्ठा | फलटा। क्रि० प्र०—करना। फट्ठा-संज्ञा पुं० [सं० पट ] टाट । मुहा०-फटफट होना = तकरार होना । कहा सुनी होना । ३. जूते आदि के पटकने का शब्द । मुहा०-फट्ठा लौटना या उलटना = दिवाला निकालना। टाठ उलटना । फटफटाना'-क्रि० स० [ अनु० ] १. व्यर्थ बकवाद करना । २. फट्ठी-सज्ञा सी० [हिं० फट्टा ] वास की चोरी हुई पतली छड़ । हिलाकर फट फट शब्द करना । फड़फड़ाना। जैसे, कबूतर फड़-संज्ञा स्त्री० [सं० पण ] १. दाँव । जुए का दांव जिसपर का पर फटफटाना, कुत्ते का कान फटफटाना। उ०-हरुमा जुपारी बाजी लगाकर जुआ खेलते हैं । २. वह स्थान जहाँ चहुँ दिसि ररत डरत सुनि के नर नारी । फटफटाइ दोउ पंख जुआरी एकत्र होकर जूमा खेलते हों । जूप्राखाना । जूए का उलूकहु रटत पुकारी। -भारतेंदु ग्रं०, भा०१, पृ० २६८ । अड्डा । ३. वह स्थान जहाँ दूकानदार बैठकर माल खरीदता ३. हाथ पैर मारना। प्रयास करना। इधर उधर फिरना । या वेचता हो। ४. पक्ष । दल । उ०-हटकि हथ्यार फड़ टक्कर मारना। वाधि उमरावन की कीन्ही तव नौरंग ने भेंट सिवराज की। फटफटाना-क्रि० प्र० फटफट शब्द होना। -भूषण (शब्द०)। फटहा-वि० [हिं० फटना ] १. फटा हुआ। २. पंड बंड वकने- क्रि० प्र०-बाँधना। वाला । गाली गलौज करनेवाला । फड़-संज्ञा पुं॰ [सं० पटल वा फल ] १. गाड़ी का हरसा । २. वह फटा-संञ्चा स्त्री० [सं०] १. साप का फन । २. घमंड । शेखी। गाड़ी जिसपर तोप चढ़ाई जाती है । चरख । गरूर । ३. दाँत (को०) । ४. छल । धोखा । फड़-संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'फर' फटा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० फटना ] छिद्र । छेद । दरार । फड़ -संज्ञा पुं॰ [ अनु० ] दे० 'फट' । मुहा०—किसी के फटे में पाँव देना = झगड़े के बीच में पड़ना। फड़क-सज्ञा स्त्री॰ [ अनु० ] फड़कने की क्रिया या भाव । दूसरे की आपत्ति को अपने ऊपर लेना। फटार-वि० १. फटा हुआ। जो फट गया हो । २. बेकार का । फड़कन'-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० फड़कना ] '१. फड़कने की क्रिया या भाव । फड़फड़ाहट । २. धड़कन । ३. उत्सुकता । लालसा। फटाका-सज्ञा पुं० [हिं०] १. 'फट' की तेज या ऊँची आवाज । फड़कना-वि० १. भड़कने या फड़कनेवाला । जैसे, फड़कन बैल । २. पटाखा। २. तेज । चंचल । फटाटोप-सज्ञा पुं० [सं०] सांप के फन का फैलाव या फड़कना-कि० अ० [ अनु० ] १. फड़ फड़ करना। फड़फड़ाना । विस्तार [को०] 1 उछलना । पर वार नीचे ऊपर या इधर उधर हिलना। फटाटोपी-संज्ञा पुं० [सं० फटाटोपिन् ] साँप । सर्प । उ.-जिन तन पै जवानी की पड़ी फड़कै थी बोटी। उस तन फटाव-संज्ञा पु० [हिं० फटना + श्राव (प्रत्य॰).] १. फटने की क्रिया को न कपड़ा है न उस पेट को रोटी। नजीर (शब्द०)। या स्थिति । २. दरार । शिगाफ। फटन । मुहा०-फड़क उठना = उमंग मे होना । आनंदित होना । प्रसन्न फटिक-संज्ञा पुं० [सं० स्फटिक, पा० फटिक ] १. कांच की तरह होना । फड़क जाना = मुग्प होना। सफेद रंग का पारदर्शक पत्थर । बिल्लौर । विशेष—दे० २. किसी संग वा शरीर के किसी स्थान मे अचानक स्फुरण 'स्फटिक' । उ०—(क) सुंदर मनोहर मंदिरायत अजिर होना । किसी अंग में गति उत्पन्न होना । उ.-इतनी बात
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२५
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