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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२७४

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विसवासी' घिसमला बिसमला-संज्ञा पुं० [अ० बिसमिल्लाह ] मुसलमानों में जबह विसराना-क्रि० स० [सं० विस्मारण हिं० विसरना ] नुला देना करने की क्रिया । उ-जब नहिं होते गाई कसाई। तय ध्यान में न रखना । विस्मृत करना । उ०—(क) दच्छ सकल बिसमला किनि फुरमाई ।-कवीर ग्रं०, पृ० २३६ । निज सुता बोलाई। हमरे बयर तुम्हउ बिसराई ।-तुलसी बिसमा-संज्ञा पुं० [सं० विस्मय या विस्मित ] दे० 'विस्मय' । (शब्द०) । (ख) विसराइयो न याको है सेवकी प्रयानी । बिसमादा-संज्ञा पुं० [ सं० विस्मय ] दे० 'विस्मय' । उ०—जाइ -प्रताप (शब्द०)। (ग) थोरेई गुन रीझते बिसराई वह सुखासन मासु भा, वाजु गीत प्रो नाद | चला पाछु सब पावै, वानि । तुमहूँ कान्ह भए मनी माज काल के दानि ।-विहारी कटक भरा विसमाद ।-चित्रा०, पृ० ३७ । (शब्द०)। बिसमादी-वि० [हिं० विसमाद+ई (प्रत्य॰)] विस्मय से युक्त । बिसराम-संज्ञा पुं० [सं० विश्राम ] दे० "विश्राम'। उ०-प्यारी चकित । उ०-ही बिसमादी देस निल, केहि मारग होइ की ठोढी को बिंदु दिनेस किधी विसराम गोविंद के जी को। जा। को राजा यह नगर मों को रानी यह गाउँ।- चारु चुभ्यो कणिका मरिणनील को कैवों जमाव जम्यो रजनी इंद्रा०, पृ० १२४ । को-दिनेस (शब्द०)। विसमादुल-संज्ञा पुं० [सं० विस्मय, हिं० विसमाद] दे० 'विस्मय' । बिसरामी-वि० सं० विश्राम, हिं० बिसराम+ई (प्रत्य॰)] उ०—जिनि चखिया तिसु प्राया स्वादु । नानक बोले इहु विश्राम देनेवाला। सुख देनेवाला । सुखद । उ०—सुप्रा सो बिसमादु।-प्राण०, पृ. १३४ । राजा कर विसरामी । मारि न जाय चहै जेहि स्वामी । —जायसी (शब्द०)। बिसमाध-मज्ञा पुं० [० विस्मय ] २० "बिसमौ" । बिसमित-वि० [सं० विस्मित ] ९. विस्मित' । उ०-सुनत वचन बिसरावना-क्रि० स० [हिं० बिसराना ] दे० 'यिसराना' । बिसमित महतारी ।—मानस, १ । उ.-करि के उनके गुन गान सदा अपने दुख को विसरावनो बिसमिल-वि० [फा० बिस्मिल ] १. घायल । जख्मी । २. जबह है। हरिश्चंद्र (शब्द०)। करना | घायल करते हुए मारना । उ०-गऊ पकड़ बिसमिल बिसी-वि० [सं० विसर्पिन् ] बढ़नेवाला । फैलनेवाला । गतिशील । करे. दरगह खंड वजूद । गरीबदास उस गऊ का, पिए जुलाहा उ०-उठि उठि सठ ह्या ते भागु तो ली प्रभागे । मम वचन दूध। कबीर मं०, पृ० ११४ । बिसी सर्प जो लौं न लागे ।-रामचं०, पृ०६७ । बिसमिल्ला (ह,)-संज्ञा पुं० [अ०] श्रीगणेश । प्रारंभ । प्रारंभ । प्रादि । बिसल-संज्ञा पुं॰ [सं०] कनखा । कोपल । अंकुर [को०] । मुहा०—बिसमिल्ला ही गलत होना= प्रादि से ही गलती का विसवना-क्रि० अ० [सं० विश्रमण] अस्त होना। समाप्त होना । शुरू होना। किसी कार्य के प्रारंभ ही में विघ्न, वाघा वा बीतना। भूल का होना । उ०—किंतु संयुक्ता को संयोगिता लिखकर बिसवना-क्रि० स० समाप्त करना । बिता देना । बिसमिल्ला ही गलत कर डाला।-प्रेमघन०, भा० २, विसवला-संज्ञा पुं० [ देश० ] ववूल की जाति का एक प्रकार का पृ० ४४०। बिसमिल्ला करना प्रारंभ करना। लग्गा वृक्ष जिसे ऊँदरू भी कहते हैं। वि० दे० 'ऊँदर'। लगाना। शुरू करना । बिसवा@-संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'विस्वा' । उ०-दादू सतगुरु विसमौ'-पंक्षा पुं० [सं० विस्मय, हिं० घिसमव, विसम] विषाद । वंदिए मन क्रम विसवा वीस-सुदर , भा० २, दुःप । रंज (पवध) । उ०-नाग फांस उन्ह मेला गीवा । पृ०६६५। हरप न बिसमौ एको जीवा ।—जायसी (शब्द०)। विसवार-संज्ञा सी० [हिं०] वेश्या । विसमोर-कि० वि० [सं० वि+समय ] बिना समय है। प्रसमय बिसवार-संज्ञा पुं० [सं० विपय (= वस्तु) + हिं० वार (प्रत्य॰)] या कुममय । उ०-बिरह अगस्त जो विसमौ उपऊ । सरवर हज्जामों की वह पेटी जिसमें वे हजामत बनाने के प्रौजार हरष सू ग्ब सब गयळ । -जायसी (शब्द०)। रखते हैं । छुरहँदी । किसवत । बिसयक-संज्ञा पुं० [सं० विपय] १. देश । प्रदेश । २. रियासत । विसरना-क्रि० स० [ विस्मरण, प्रा० विम्हरण, बिस्सरण ] भूल विसवासिनि-वि० सी० [सं० विश्वासिन् ] १. विश्वास करने- बिवास-संज्ञा पु० [सं० विश्वास ] दे० 'विश्वास' । जाना । विस्मृत होना । याद न रहना। ध्यान में न रहना। वाली। २. जिसपर विश्वास हो । उ०-(क) विसरा भोग सेज सुख बसू । —जायसी (शब्द०) (ख) विसरा मरन भई रिम गाढ़ी । तुलसी (शब्द०)। बिसवासिनि-वि० सी० [सं० अविश्वासिन्] १. जिसपर विश्वास (ग) सुरति स्याम घन की सुरति विसरेहू विसरै न ।-विहारी न हो। २. विश्वासघातिनी। उ०-क्यों जियो कैसी करी (शब्द०)। बहुरथो विसु सी विसनी विसवासिनि फूली।-केशव पं०, बिसरात-संज्ञा पुं॰ [सं० वेशरह ] सच्चर । प्रश्वतर। उ०- भा० १, पृ०६६ ॥ कूजत पिक मानहु गज माते । ढेक महोख विसवासो-वि० [सं० विश्वासिन् ] १. जो विश्वास करे। —तुलसी (शब्द०)। २. जिसपर विश्वास हो। जिसका एतबार हो। — - 3