पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२८९

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- बीहड़' ३५२८ बुंदिया दह ऐ भाज नही, नही मरण री बीह । -चौकी० न०, उन्ही के अधीन और दूसरा अनेक छोटे बड़े राजानों मौर भा० १, पृ०५। जागीरदारों प्रादि के अधीन था। इस प्रदेश में अनेक पहाट बीहड़'-वि० [स० विकट] १. ऊंचा नीचा । विषम । ऊबड़ साबड़ । हैं और बड़ी बड़ी झीलें हैं। जिनके कारण यहाँ की जैसे, बीहड़ भूमि, बीहट जगल । २. जो ठीक न हो। जो प्राकृतिक शोभा प्रशंसनीय है। सरल या सम न हो । विषम | विकट । वु देलखंडी'-वि० [हिं० यु देवसढ+ ई (प्रत्य॰)] बुदेलखंड बीहड़ २-वि० [ स० विघट, विलग या हि० पारी ] अलग । पृथय । संबधी । वुदेसंह का। जुदा। बुदेलखंडी२-शा पु० बुदेलखंट का निवासी । घीहन-संज्ञा पु० [हिं० वेहन ] वीज । बेंगा । उ०-तहसीलदार बुदेलखंडो3- स्त्री० देलसंड फी भाषा । साहब दरवाजे पर बैठे हुए बीहन लेनेवालो से कहते हैं। बुदेला-मंशा पु० [हिं० युद+ पुरना (प्रत्य॰)] क्षत्रियों का एक -मैला०, पृ० २०३। वंश जो गहरवार यश की एक शाखा माना जाता है। बोहर-वि० [ स० विघट ] अलग। पृथक् । उ० -(फ) साज विशेप-ऐसा प्रसिद्ध है कि पंचम नामक एक गहरवार क्षत्रिय सात बैकुठ जस तस साजे खंड सात । वोहर वोहर भाव तस ने एक बार अपने पापो विध्यवासिनी देवी पर बलिदान खंड खंड ऊपर छात ।-जायसी (शब्द०) । (ख) बोहर चढ़ाना चाहा था। उस समय उसके जोर से रक्त की जो सोहर सबकी बोली। विघि यह पाहाँ कहाँ सो खोली। दूद वेदी पर गिरी थी, उन्ही से चुदेला बंग के प्रादि पुरुष -जायसी (शब्द०)। को उत्पत्ति हुई थी। चोरहवी शताब्दी में बुदेलसंड प्रांत में वुद'-सक्षा खी० [ स० विन्दु ] १. वूद। फतरा। टोप । विंदु । वुदेलों का न्हुन जोर था। उसी समय कालिजर और २. वीय । शुक्र। फासपी इनफे हाय पाई थी। जब ये लोग बहुत बड़े, तब बुद -वि० थोड़ा सा । जरा सा । मुसलमानों से इनको मुठभेड होने लगी। यहा जाता है, चुद-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० बुन्द ] तीर । शर। पद्रहवी शताब्दी के घारम में वावर ने बुदेल सरदार राजा बुदकी- -सज्ञा स्त्री० [सं० विन्दु+हिं० की (प्रत्य॰)] दे० 'बुदको' । रुद्रप्रताप को अपना सूबेदार बनाया था। बुदेलसड में बुदेलो पौर मुसलमानों में कई बार बढे बढ़े युद्ध हुए थे। बुदकीदार-वि० [हिं० बुंदकी + फा० दार ] २० 'चुदकीदार' । वीरसिंह देव और छत्रसाल प्रादि प्रसिद्ध वीर और मुसल. बुदा- संज्ञा पुं० [सं० विन्दुक ] [ सी० बुदी ! १. बुलाक के मानों से लड़नेवाले इसी बुदेले वंश के थे। प्राकार का कान में पहनने का एक प्रकार का गहना । २. बुंदेला वग का कोई व्यक्ति । ३. देवराड का निवामी । लोलक । २. माथे पर लगाने की बड़ी टिकली जो पन्नी या बुदोरी@+--पंश ०. सी० [हिं० यूद + चोरी (प्रत्य॰)] बुदिया कांच प्रादि की बनती है और जिसमे बहुत से छोटे छोटे या बूदी नाम की मिठाई । दाने या गोदने के चिह्न होते है । ४. बुद। बिंदु ।। ५. छोटो वुलपटी-शा पु० [ लश , ] जहान में पिछला पान । गोली। छ। बुदिर--संज्ञा पु० [स० बुन्दिर ] गृह । घर । मकान [को०] । चुंदकपारी-संश मो० [देश०] वह दंड जो बदमाशो से जमीदार लिया करते थे। बुदोदार-वि० [हिं० यूँदी + फ़ा० दार (प्रत्य॰)] जिसमें छोटी धुंदको-मंशा की० [सं० चिन्द+की (प्रत्य)] १. छोटी गोल विदो । छोटी बिदियां बनी या लगी हो । २. किसी चीज पर पना या पडा हुप्रा छोटा गोल दाग या बुंदेलखंड-सज्ञा पुं० [हिं० बुंदेल] १. संयुक्त प्रांत का वह अंश जिसमें घया। जालौन, झांसी, हमीरपुर वादा के जिले परते हैं। इसके बुंदकीदार-वि० [ हिं० मुद+फा० दार ] जिसपर बुदपिया अतिरिक्त 'भोड़छा, दतिया, पन्ना, चरखारी, विजावर, पडी या बनी हो। जिसपर बुदों के से चिह्न हों। चुदकी. छतरपुर प्रादि अनेक छोटी बडी रियासतें भी इमी फेम'तर्गत हैं । यह विशेषतः बुदेले क्षत्रियो का निवास स्थान है। धुंदवा -संज्ञा पुं० [सं० विन्दुक ] १. बुदा । २. बंदूरू में भरकर इसलिये यह बुदेलसंड कहलाता है । २. दे० 'बुदेला' । पलाने की छोटी गोली या छर्रा। उ०-कोउ ढालत गोलो विशेप-यहां पहले गहरवारो, पडिहारो और चदेलो प्रादि का कोउ वुदवन वैठि बनावत ।-प्रेमघन०, भा० १, पृ० २४ । राज्य था। पर ११८२ ई० मे दिल्ली के पृथ्वीराज ने वु देल- बुंदवाना -सा पुं० [हिं० बुद+वान (प्रत्य॰)] छोटी छोटी खंड पर आक्रमण करके उसे अपने अधिकार में कर लिया बूंदों की वर्षा था। १५४५ ई० में शेरशाह सूर ने बुदेलखड पर भाक्रमण धुंवारी-संश सी० [हिं० चुद+चारी (प्रत्य॰) ] दे॰ 'बुद', किया था। पर कालिंजर पर घेरा डालने में ही उसकी मृत्यु द' । उ०परन लगी नान्ही बुंदवारी ।-नंद० म०, हो गई थी। पीछे से यह प्रदेश मुसलमानो के हाथ में चला पृ० ३०७। गया था। इसके दो विमाग मंग्रजी शासन में थे जिनमें एक बुंदिया-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० ५ द+रपा (प्रत्य॰) दे० 'दी'। वाला।