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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३७७

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भद्रश्रेण्य भनभनाना भद्रश्रेण्य-शा पु० [स०] हरिवंश के अनुसार वाराणसी के भद्रात्मज-संज्ञा पुं० [सं०] खड्ग । प्राचीन राजा जो दिवोदास से भी पहले हुए थे। भद्रानंद-पग पु० [ रा० भद्रानन्द ] एक प्रकार की स्वरसाधना भद्रपष्ठी-सज्ञा श्री० [ स० ] दुर्गा । प्रणाली जो इस प्रकार है-थारोही-मा रे ग म, रे ग म भद्रसमाज-संज्ञा पु० [सं०] शिष्ट जनो का समाज । उ०-उनके प, ग म प घ, म प ध नि, प ध नि सा। अवरोही-सा नि ससगं से भद्रसमाज मे औरों को भी इसका अनुराग न्यून न ध प, नि ध प म, ध प म ग, प म ग रे, म ग रे सा । था ।-प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० ३८६ । भद्राभद्र-वि० [स०] अच्छा बुरा । भला बुरा । भद्रसेन-संज्ञा पु० [स] १. देवकी के गर्भ से उत्पन्न वसुदेव के एक भद्रायुध-संज्ञा पुं० [H० ] एक राक्षस का नाम । पुत्र का नाम जिस कस ने मार डाला था । २. भागवत के भद्रारक-Hशा पु० [सं०] पुराणानुसार अठारह क्षुद्र द्वीपों मे से एक अनुसार कुंतिराज के पुत्र का नाम । ३. बौद्धो के अनुसार द्वीप का नाम । मार, पापीय प्रादि कुमति दलपति का नाम । भद्रालपत्रिका, भद्रावनी-संज्ञा स्त्री॰ [स०] गधाली को०] । भद्रसोमा-संज्ञा भी० [स०] १. गंगा का एक नाम । २. मार्कंडेय भद्रावती-श स्ना [ रा०] १, कटफल का पेड़ । २. महाभारत पुराण के अनुसार कुरुवर्ष की एक नदी का नाम | के अनुसार एक प्राचीन नगरी। भद्रांग-संज्ञा पुं० [स०] बलराम | भद्रावह-वि० [सं०] जिमसे मंगल हो । मंगलकारक । भद्रा-संज्ञा स्त्री० [] १. के कयराज की एक कन्या जो श्रीकृष्ण जी भद्राश्रय-संज्ञा पुं॰ [स०] चंदन । को व्याही थी। २. रास्ता। ३. आकाशगंगा । भद्राश्व-मग पुं० [ स०] जवू द्वीप के नौ खंडों या वर्षों में से एक द्वितीया, सप्तमी, द्वादशी तिथियों की सज्ञा । ५. प्रसारिणी खंड । उ०- प्रथम मडल मे उदित शुक्राचार्य से जार जो लता। ६. जीवती। ७. बरियारी। ८. शमी । ६. बच । कोई ग्रह होय तो भद्राश्व, शूरसेनक, यौधेयर और कोटि- १०. दती । ११. हलदी। १२. दुर्वा । १३. चसुर । १४. वर्ष देश के राजा का नाश होता है। -वृहत्, पृ० ५६ । गाय । १५. दुर्गा । १६. छाया से उत्पन्न सूर्य की एक कन्या। भद्रासन-संशा पु० [ स०] १. मणियों से जड़ा हुमा राजसिंहासन १७. पिंगल में उपजाति वृत्त का दसवाँ भेद । १८. कटहल । जिसपर राज्याभिषेक होता है। २. योगसाधन का एक १६. कल्याणकारिणी शक्ति । २०. पृथ्वी । २१. पुराणानुसार भद्राश्ववर्ष की एक नदी का नाम जो गंगा की शाखा कही भद्रिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पिंगल में एक वृच का नाम जिसके गई है। २२. बुद्ध की एक शक्ति का नाम । २३.मुभद्रा का प्रत्येक चरण में रगण, नगण और रगण होते हैं। २. भद्रा एक नाम । २४. कामरूप प्रदेश की एक नदी का नाम । २५. तिथि । द्वितीया, सप्तमी और द्वादशो तिथि। ३. फलित फलित ज्योतिष के अनुपार एक योग जो कृष्ण पक्ष की ज्योतिष के अनुसार योगिनी दशा के अंतर्गत पाचवी दशा । तृतीया और दशमी के शेषाधं में तथा अष्टमी और पूर्णिमा के पूर्वाद्ध में रहता है। भद्रो-वि० [सं० भनिन् ] भाग्यवान् । उ०-समरय महा मनोरथ पूरत होन प्रभद्री भद्री ।-रघुराज (शब्द०)। विशष-जब यह ककं, सिंह, कुंभ और मीन राशि में होता है, तब पृथ्वी पर; जब मेष, वृष, मिथुन और वृश्चिक राशि में भद्रश-संशा पु० [सं०] शिव । होता है, तब स्वर्ग लोक मे और जव कन्या, धन, तुला और भद्रेश्वर-सशा पुं० [सं०] १. वाराह पुराण के अनुसार कल्पग्रामस्थ मकर राशि मे होता है, तब पाताल में रहता है। इस योग शिव । २. वामन पुराण के अनुसार दुर्गा द्वारा शिवप्राप्ति के स्वर्ग मे रहने के समय यदि कोई कार्य किया जाय तो के निमित्त प्राराधित पार्थिव शिवलिंग । [को॰] । कार्यसिद्धि और पाताल मे रहने के समय किया जाय तो भद्रेला-संशा स्त्री० [२०] बड़ी इलायची । [को०) । धन की प्राप्ति होती है। पर यदि इस योग के इस पृथ्वी भद्रोदनी-संज्ञा स्त्री० [स०] १. बला। २. नागवला । पर रहने के समय कोई कार्य किया जाय तो वह बिलकुल भनक-मज्ञा स्त्री० [सं० भणन या अनु० ] १. धीमा शब्द । ध्वनि । नष्ट हो जाता है। अतः भद्रा के समय लोग कोई शुभ कार्य २. अस्पष्ट या उड़ती हुई खबर । जैसे-हमारे कान में पहले नहीं करते । इसे घिष्टि भद्रा भी कहते हैं । २६. बाधा । रोक । ( बोल चाल ) । ही इसकी कुछ भनक पड़ गई थी। मुहा०-किसी के सिर की भद्रा उतारान=किसी प्रकार को भनकना-कि० स० [हिं० भनक ] बोलना । कहना । हानि विशेषत. माथिक हानि होना । भद्रा लगाना = बाधा भनकंत-सशा स्त्री॰ [ स०] दे० 'भनभाहट' । उ०-बलाय मंजु उत्पन्न करना। पैजनी भंवर मनकत की।-प्रेमघन॰, भा० १, पृ० २२२ । भद्राकरण-सझा पु० [ स०] मुडन । सिर मुड़ाना । भननाल-क्रि० स० [ स० भणन] कहना । भद्राकार-वि० [स०] 'भद्राकृति' । भनभन-शा सी० [अनु० ] गुजारने की धनि । भनभनाहट । भद्राकृति-वि० [ स० ] सुदर । सौम्य आकृतिवाला। भनभनाना-कि० अ० [अनु॰] भन भन बन्द करना । गुजारना । मासन।