पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३८५

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भरल ३६२४ भरुवाना पोसा हुप्रा । पाप भरल-संज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] नीले रंग की एक प्रकार की जंगली भेड़ भरित-वि० [सं० [[वि॰ स्त्री. भरिता ] १. जो भरा गया हो। जो हिमालय मे भूदान से लद्दाख तक होती है । २. भरा हुप्रा । पूर्ण। उ०-(क) बली सुभग कविता भरवाई:- 1-सज्ञा स्त्री॰ [सभारवाही ] बोझ उठाने की दोरी । सरिता सो। राम विमल जस जल भरिता सो।-मानस, वह डलिया या टोकरी जिसमें वोझ रखा जाता है। १॥३६ । (ख) सुंदर हरित पत्रावलियों से भरित तरु गनो भरवाई२-सज्ञा स्त्री० [हिं० भरवाना ] १. भरवाने की क्रिया या की .-प्रेमघन०, पृ० ११ । ३. हरा । हरे रंग का (को०) । भाव । २. भरवाने की मजदूरी । ४. जिसका भरण या पालन पोषण किया गया हो। पाला भरवाना-कि० स० [हिं० भरना का प्र० रूप] भरने का काम दुसरे से कराना । दूसरे को भरने मे प्रवृत करना। भरिपूर-वि० [हिं० भरा + पूरा ] ३० भरपूर' । उ०-मनो नूर भरसक-क्रि० वि० [हिं० भर (पूरा )+सफ (शक्ति)] भरिपूर की लटक रही कंडील | -पोद्दार अभि० ग्रं०, यथाशक्ति । जहाँ तक हो सके । पृ० ३८४। भरसन-सच्चा स्री० [ स० भर्सन, भर्त्सना ] डॉट फटकार । भरित्र-शा पु० [ स० ] बाहु । भुजा (को०] | उ०-मित्र चितहिं हाँस हेरि सत्रु तेजहिं करि भरसन । भरिमा-संज्ञा पु० [ मं० भरिमन् ] १. भरण करने का भाव । भरण -(शब्द०)। पोपण । २. कुटुंब । परिवार । ३. विष्णु का नाम [को०] । (साई -सज्ञा पु० [ ] दे० 'भाड़। भरिया-वि० [हिं० भरना+इया (प्रत्५०) ] भरनेवाला। भरहरना-क्रि० प्र० [अनु० ] दे० भरभराना' । उ०- पूर्ण करनेवाला । २. ऋण भरनेवाला । कर्ज चुकानेवाला । जाको सुयषा सुनत यरु गावत वृद जैहै' भजि भरिया-संज्ञा पु० वह पो वरतन प्रादि ढालने का काम करता हो। भरहरि । -सूर (शब्द०)। (ख) दानो दल छल प्रबल ढलाई करनेवाला । ढालिया। सुपेमि करि भज मर सकल भ्रमित भ भ रहरि ।-अकबरी० भरिया -सञ्ज्ञा पु० [हिं० भार ] भारवाहक । भार ढोनेवाला । पृ० ३२७ । २. दे० 'भहराना ।-फूट यो पहार सत रंक ह्र उ०-उनके साथ भार लेकर पंद्रह भरिया गए।-रति०, अरध खंड गढ़ भरहरयो। हम्मीर०, पृ० ४३ । पृ० ११२। भरहराना-क्रि० ५० [अनु०] १. दे० 'भरभराना' । २. भरो-पज्ञा स्त्री० [हिं० भर ] एक तौल जो दश माशे या एक रुपए भहराना। के बराबर होती है। भराँति-संज्ञा स्त्री० [सं० भ्रान्ति ] दे॰ 'भ्राति' । उ०-अपनी भरीर-संज्ञा सी० [हिं० भड़काना ] बहकावा। दे० 'भड़ी' । अपनी जाति सो सव कोइ वैसइ पाति । दादू सेवक राम का उ०-हजूर भो इस भरी में आ जाते हैं। खैर जाने दीजिए ताको नही भरीति ।-दादू० ( पाब्द०)। इस झगडे को।-सैर०, पृ० ३६ । भरा-वि० [हिं० भरना ] १. भरा हुमा । पूर्ण । २. पुष्ट । ३. भरीली-वि० [हिं०] भरनेवाली या भरी हुई। उ०-राधा प्राबाद। ४. सपन्न । हरि के गर्व गहीली। मंद मंद गति मत मतंग ज्यो मंग मंग भराई-संज्ञा सी० [हिं० भरना] १. एक प्रकार का कर जो पहले सुख पुंज भरीली ।-सुर०, १०।१७७२ । वनारस मे लगता था और जिसमें से प्राधा कर उगाहनेवाले कर्मचारी को मिलता था और प्राधा सरकार मे जमा होता भरुर-सज्ञा पु० [म० भार] बोझ। वजन । वोझा। उ०- था । २. भरने की क्रिया या भाव । ३. भरने की मजदूरी । (क) विविध सिंगार किए पागे ठाढ़ी ठाढ़ो प्रिये सखी भयो भरु पानि रतिपति दल दल के ।-हरिदास (शब्द॰) । (ख) भरापूरा-वि० [हिं० भरना+ पूरा] १. जिसे किसी वात की भावक उभरोही भयो कळू परयो भरु प्राय । सीपहरा के मिस कमी न हो। संपन्न । २. जिसमें किसी बात की कमी या हियो निसि दिन हेरत जाय ।-विहारी (शब्द०)। न्यूनता न हो । बाल बच्चो से सुखी। भरु-मक्ष पु० [ म०] १. विष्णु। २. समुद्र । ३. स्मामी। पति । मुहा०-भरा महीना = भरा मास । भरी जवानी = पूर्ण युवा- ४. मालिक । ५. सोना । स्वर्ण । ६. शकर । वस्था । भरी थाली में लात मारना=लगी नौकरी छोडना । भरामहीना-सना पु० [ हिं० भरना+ महीना ] बरसात के दिन भरुवार-सञ्ज्ञा पुं० [ देश०] टसर । जिसमे खेतो में बीज बोए जाते हैं । भरमा-सज्ञा पु० [हिं० भाँड+ उवा (प्रत्य॰)] १० 'भड़ प्रा' । भरामास-संश पुं० [हिं० भरना+स० मास] दे० 'भरामहीना' । उ०-चोर चतुर बटपार नट प्रभु प्रिय भरुमा भड । सव उ०-लेइ किछु स्वाद जानि नहिं पावा । भरामास तेइ भक्षक परमारपी कलि कुपथ पाखड। -तुलसी (शब्द०)। सोइ गवावा ।—जायसी (शब्द०।। भरुआ -वि॰ [हिं० भरना ] [वि० सो० भरुई ] भरा हुमा । भराव-सदा पुं० [हिं० भरना+भाव (प्रत्य॰)] १. भरने का जो भरा गया हो। भाव । भरत । २. भरने का काम । ३. कसीदा काढ़ने में भरुआना-क्रि० प्र० [हिं० भारी+पाना (प्रत्य॰)] १. भारी पत्तियो के बीच के स्थान को तागों से भरना। होना । वजनी होना । २. भार का अनुभव करना ।