पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५३

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फारिग उल वाल ३२६२ फालाहत अपना काम कर चुका हो। जैसे,-मब वह शादी के काम का फासला । पैड़ । उ० -(क) तीन फाल वसुधा मब कीनी से फारिग हो गए । २ निश्चित । बेफिक । ३ छूटा हुआ । सोइ वामन भगवान |-सूर (शब्द० .)। (ख) धरती करते मुक्त। एक पग, दरिया करते फाल | हाथन परबत तोलते तेक फारिग उल वाल -वि० [ फारिग उल वाल ] १. जिसके पास खाए काल ।-कबीर ( शब्द०)। निर्वाह के लिये यथेष्ट धन संपत्ति हो । सपन्न । २ जो सब फाल"-सज्ञा स्त्री० [अ० फाल ] सगुन । शकुन (को॰] । प्रकार से निश्चित हो। जिसे किसी बात की चिंता न हो। यौ० 10-फालगो सगुन विचारनेवाला। निश्चित । फारिग उल बाली-राज्ञा स्त्री० [अ० फ़ारिग उल वाल + फा० ई फालकष्ट-वि० [सं०] १. हल से जोता हुअा । जैसे, फालकृष्ट (प्रत्य०)] १. संपन्नता । अमीरी । २. निश्चितता । बेफिक्री । भूमि । २. जो हल से जोते हुए खेत में उत्पन्न हो । विशेप -बहुत से व्रतों में फालकृष्ट पदार्थ नहीं खाए जाते । फारिस-पज्ञा पु० [फा० फारस ] दे० 'फारस' उ०-फारिस से मंगाए थे गुलाब ।-कुकुर०, पृ० १ । फालखेला-मज्ञा स्त्री० [ मं०] एक पक्षी को०] । फारी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं०] एक प्रकार का वस्त्र या कपडा । फालतू-वि० [हिं० फाल ( = टुकड़ा) + तू (प्रत्य॰)] १. उ०-चदनोटा खीरोदक फारी। बांसपोर झिनमिल की जो काम में प्राने से बच रहे । प्रावश्यकता से अधिक । सारी।—जायसी न० (गुप्त), पृ० ३४४ । जरूरत से ज्यादा । अतिरित्त । बढ़ती । जैसे,—इतना कपड़ा फारेन-वि० [भं० ] दूसरे देश या राष्ट्र का । विदेण या 'परराष्ट्र फालतू है तुम ले जानो। २. जो किसी काम के लायक न सबंधी। वैदेशिक । परराष्ट्रीय । जैसे, फारेन डिपार्टमेट, हो। निकम्मा । जैसे,—क्या हमी फालतू प्रादमी हैं जो फारेन सेक्रेटरी। इतनी दूर दौड़े जायें। फारेनहाइट-सज्ञा पु० [पं० फारेनहाइट (जर्मन) ] फारेनहाइट फालसई-वि० [फा० फालसह , हिं० फालसा + ई (प्रत्य॰)] थर्मामीटर का आविष्कारक जर्मन वैज्ञानिक । फालसे के रंग का । ललाई लिए हुए हलका कदा । यौ०-फारेनहाइट थर्मामीटर = एक प्रकार का थर्मामीटर जिसमे विशेष-इस रग के लिये कपड़े को तीन बोर देने पड़ते हैं । हिमांक ३२° पर और क्वथनाक २१२° पर होता है। पहले तो कपड़े को नील में रंगते हैं, फिर कुसुम के पहले फार्म-संज्ञा पुं० [अं० फार्म ] दे० 'फारम' । उतार के रंग में रंगते हैं, जो जेठा रग होता है। फिर फिट. फाल'-सचा सो० [स०] लोहे की चौकोर लंबी छड़ जिसका सिरा करी या खटाई मिले पानी में बोरकर निखार देने से रंग नुकीला और पैना होता है और जो हल की अकड़ी के साफ निकल पाता है। नीचे लगा रहता है । जमीन इसी से खुदती है । कुस । कुसी। फालसा'-शा पुं० [फा० फालसह तुल० स० परूपक, परूष, प्रा० विशष--संस्कृत मे यह शब्द पू० है । फरूस ] एक छोरा पेड़ । फाल-सज्ञा पु० [सं०] १. महादेव । २. बलदेव । ३. फावड़ा । विशेष-इसका घड ऊपर नही जाता और इसमे छडी के आकार ४. नौ प्रकार की देवी परीक्षाप्रो या दिव्यो मे से एक जिसमें की सीधी सीधी डालियाँ चारों ओर निकलती हैं। डालियो लोहे की तपाई हुई फाल अपराधी को चटाते थे और जीभ के के दोनो ओर सात पाठ अगुल लवे चौड़े गोल पचे लगते हैं जलने पर उसे दोषी और न जलने पर निर्दोष समझते थे । जिनपर महीन लोइयां सी होती हैं। पत्चे की ऊपरी सतह फाल-सज्ञा स्त्री० [सं० फलक या हिं० फाडना] १. किसी ठोस की अपेक्षा पीछे की सतह का रग हलका होता है। डालियों चीज का काटा या कतरा हुप्रा पतले दल का टुकड़ा । जैसे, मे यहाँ से वहाँ तक पीले फून गुच्छों में लगते हैं जिनके झड़ सुपारी की फाल । २. कटी सुपारी । छालिया। जाने पर मोती के दाने के बरावर छोटे छोटे फल लगते हैं । फाल-सज्ञा पु० [म० प्लव] चलने या कूदने में एक स्थान से उठकर पकने पर फलों का रंग ललाई लिए ऊदा और स्वाद खट- प्रागे के स्थान में पैर डालना। डग । फलांग । उ०- मीठा होता है। वीज एक या दो होते हैं। फालसा बहुत ठढा (क) धनि बाल सुचाल सो फाल भरे लो मही रंग लाल में समझा जाता है, इससे गरमी के दिनो में लोग इसका शरबत बोरति है । -सेवक ( शब्द०)। (ख) सो जोजन मरजाद बनाकर पीते हैं। वैद्यक में कच्चे फल को वातघ्न और सिंध के करते एकै फाल ।-घरम० श०, पृ०,८४ । पिचकारफ तथा पक्के फल को रुचिकारक, पिचघ्न और मुहा०—फाल भरना = कदम रखना । डग भरना। फाल शोधनाशक लिखा है। बाँधना= फलाँग मारना । कूद कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर्या०-परूपक । गिरिपिलु । शेपण । पारावत । पर जाना = उछलकर लाधना । उ०-कहै पद्माकर त्यो हुकरत फुकरत, फैलत फलात, फाल बांधत फलका मैं । फालसा-सञ्चा पु० [?] शिकारियो की बोली में वह जंगली जानवर जो जंगल से निकलकर मैदान मे चरने पाए। -पद्माकर (शब्द०)। २. चलने या कूदने मे उस स्थान से लेकर जहाँ से पैर उठाया फालसाई-वि० [हिं० फालसा + ई (प्रत्य॰)] दे० 'फालसई'। जाय उस स्थान तक का भतर जहाँ पैर पड़े। कदम भर फालाहत-वि० [सं०] दे० 'फालकृष्ट' [को०] ।