पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१३६

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1 मार' ३६१३ मारगन मार-सहा पुं० [ स०] १ कामदेव । उ०—(क) क्रीडत गिलोल जब मारका'-सज्ञा पुं० [अ० मार्क ] १ चिह्न। निशान । २. किसी लाल कर तव मार जानि चापक सुमन ।-पृ० रा०, ११७२७ । प्रकार का चिह्न जिससे कोई विशेषता सूचित हो । (ख) ऐसौ और न जानिवी जग अनीति कर नार । जाम उपज्यो मारका-सञ्ज्ञा पुं० [अ० ] १ युद्ध । लडाई । २ युद्धस्थल । सरन मौ ताको वेधत मार ।-स० सप्तक, पृ० ३६५ । २ लहाई का मैदान (को०)। ३ लड़ाई झगडा । हगामा (को०)। विघ्न | ३ विप। जहर । ४ धतूरा । ५. मारण। मार ४ बहुत बडी या महत्वपूर्ण घटना। डालना । वध (को०) । ६ मृत्यु । मौत । मरण (को॰) । महा०-मारके की बात या काम = कोई महत्वपूर्ण या बडी वात मार-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० मारना] १ मारने की क्रिया या भाव । या काम । मारका जीतना या सर करना= मैदान फतह करना । २ आघात । चोट । ३ जिस वस्तु पर मार पडे । निशाना । महत्व का काम अपने अनुकूल कर लेना। ४ मार पीट । ५ कष्ट । पीडा । क्लेश । ६ युद्ध । लडाई । मारकाट-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० मारना+काटना ] १ युद्ध । लडाई । यो - मारकाट | मारधाड़ मारपोट | मारपछड़ = लडाई झगड़ा जग। २. मारने काटने का काम । ३. मारने काटने का भाव । या मार पेच | मारपेच । मारकायिक-सज्ञा पुं० [सं० ] बौद्धो के अनुसार मार के अनुचर । मार' अव्य० । हि० मारना ] १ अत्यत । बहुत । उ०—(क) सुनत मारकीन-सञ्चा सी० [अ० मैनकिन् ] एक प्रकार का मोटा कोरा द्वारावती मार उतसा भयो ।- सूर (शब्द॰) । (ख) सोने की कपडा जो प्राय गरीबो को पहनने के काम मे पाता है । अटारी चित्रसारी मार जारी जैसे घास की अटारी जर गई उ०-मारकोन मलमल विना चलत कळू नहिं काम । परदेसी फिरे वास ते ।-राम (शन्द०)। जुलहान के मानहु भए गुलाम । -भारतेंदु ग्र०, भा० ३, मार-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० माला ] माल । उ०-श्रमल कपोल पृ० ७३५। पारसी बाहू चपक मार ।-केशव (शब्द॰) । मारकेश-सज्ञा पुं० [सं० ] फलित ज्योतिप के अनुसार जन्म मार सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ दश० ] काला मिट्टी को जमीन । करंल ।मट्टी को कुडली मे पडनेवाले कुछ विशिष्ट ग्रहो का योग जिसके परिणाम- भूमि । मरवा भूमि । स्वरूप उस व्यक्ति को मृत्यु हो जातो है अयवा वह मरणासन्न हो जाता है। मार -सञ्ज्ञा पुं॰ [फा० ] सर्प । माप । उ०-कई मार हुअा है कई नेवल कई प्यासा भूका कई जल ।-दक्खिनी पृ० ३२४ । मारखोर-सज्ञा पु० [फा० मारखोर ] एक प्रकार को बकरी वा भेड माकड-सज्ञा पु० [ स० मार्कण्ड ] द० 'मारकडेय' (को॰] । जो काश्मीर और अफगानिस्तान में होती है। मारकडेय-सञ्ज्ञा पु० [ स० मार्कण्डेय ] पुराणानुसार एक ऋषि का विशेष—यह प्राय. दो तीन हाथ ऊंची होती है और ऋतु के नाम | मार्कडेय । अनुसार रग बदलती है । इसके सींग जड मे प्राय सटे रहते हैं और इसकी दाढी वहुत लंबी और धनी होती है। विशेष-ये अष्ट चिरजीवियो मे से एक माने जाते हैं इनके पिता का नाम मृकड था। इनके विपय मे यह प्रसिद्ध है कि ये सदा मारगg+-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० मार्ग ] राह। रास्ता । मार्ग। उ०- जीवित रहते है और रहेगे । ( क ) मारग हुत जो अवर असूझा । भा उजेर सब जाना वूझा । —जायसी (शब्द०)। (ख) मारग चलहिं पयादेहि मुहा०-मारकढेय की प्रायु होना = दीर्घजीवी होना। चिरायु पाएं। कोतल सग जाहिं डोरियाएं । —तुलसी (शब्द०)। (ग) होना । (प्राशीर्वाद)। मबहिं भांति पिय सेवा करिहौं। मारग जनित सकल श्रम मारक'---वि० [ स० ) १ मार डालनेवाला । मृत्युकारक । संहारक । हरिहीं।-तुलसी ( शब्द०)। उ०-(क) ले उतारि यातं नृपति भलो चढायो वान । निर- मुहा०—मारगचीन्हना = मार्ग पहचानना। उद्देश्यमिद्धि के लिये दोपिन मारक नही यह तारक दुखियान । -लक्ष्मणसिंह रास्ता जान लेना। उ०-दीपक लेसि जगत कह दीन्हा । भा (शब्द॰) । (ख) मुकवि मिलन की पास एक अवलव उधारक । निरमल जग मारग चीन्हा । -जायसी (शब्द०)। मारग नहिं तो कैसे बचती माख्यो मार मुमारक ।-व्यास (शब्द॰) । मारना= रास्ते मे पथिक को लूट लेना । उ०—मारग मारि २. किसी के प्रभाव आदि को नष्ट करनेवाला। घात पर प्रति- महीसुर मारि कुमारग कोटिक के धन लीयो।-तुलसी घात करनेवाला । जैसे,—यह पौषध अनेक प्रकार के विपो का (शब्द॰) । मारग लगना = रास्ते लगना । रास्ता लेना । चला मारक है। जाना । उ०—(क) जोगी होहु तो जुक्ति सो मांगहु । भुगुति मारक-सज्ञा पुं०१ वध करनेवाला। जल्लाद । २. कामदेव का एक लेहु ले मारग लागहु । —जायसी (शब्द॰) । (ख) यह सुनि नाम । ३ श्येन पक्षी। वाज। ४ महामारी ५ प्रलयकालीन मुनि मारग लगे सुख पायो नरदेव । केशव (शब्द॰) । प्राणिनाश । ६ मिंदूर (को०] । मारग लेना= दे० 'मारग लगना'। यौ०-मा फस्थान = कुडली मे वे स्थान जिनमें क्रूर ग्रहो की मारगन-सच्चा पुं० [ स० मार्गण ] १ वाण। तीर। उ०- स्थिति से कष्ट एव मृत्यु होती है। तानेउ चाँप स्रवन लगि छाँडे विमिख कराल । राम मारगन