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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१३९

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मारे 1 मारी ३६१६ मारी'-सञ्ज्ञा सी० [हिं० मारना ] कोई ऐसा संक्रामक रोग जिसके मारू-सज्ञा पुं० [हिं० मारना ] १. राग जो युद्ध के समय बजाया कारण बहुत से लोग एक साथ मरें। मरी। जैसे, हैजा, प्लेग, और गाया जाता है। उ०—(क) भेरि नफीरि वाज सहनाई। चेचक इत्यादि । दे० 'मरी' । उ०-ईति भीति ग्रह प्रेत चौरानल मारू राग सुभट सुखदाई ।- तुलसी (शब्द०)। (ख) सैयद व्याधि वाघा मम्न घोर मारी। - तुलसी (शब्द॰) । (ख) समर्थ भूप अली अकबर दल चलत बजाय मारू दुदुभी घुकान मव जदपि अमारी घर तदपि मारी सम परदल धंसत । की ।-गुमान (शब्द०)। (ग) मारवणी भगताविया मारू -गोपाल (शब्द०)। राग निपाइ । दूहा सदेशा तणां दीया तियां सिखाइ ।-ढोला०, मारी-सञ्ज्ञा पुं० [ स० मारिन् ] हत्या करनेवाला । घातक । दू० १०६ । (घ) रण की टकार गाजे दुंदुभी मे मारु वाजे तेरे मारी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ चही। २ माहेश्वरी शक्ति । ३ मरी । जीय ऐसो रुद्र मेरी ओर लरंगो । हनुमान (शब्द०)। २ रोग)। बहुत वडा डका या नगाडा । जगी धौंसा । उ०-उम काल मारीच'-सज्ञा पु० [सं०] १ रामायण के अनुसार वह राक्षस मारू जो बजाता था, मो तो मेघ सा गाजता था । लल्लू जिसने मोने का हिरन वनकर रामचद्र को धोखा दिया था । (शब्द०)। २ मिर्च के पौरे। मिर्च की झाडी (को०)। ३ वडा हायो । विशेष—इसमे सब शुद्ध स्वर लगते हैं । यह श्री राग का पुत्र विशाल गज (को०)। ४ ककोल (को॰) । माना जाता है । इसे 'मांड' और 'मणि' भी कहते है । वीर रस मारीच'-वि० मरीचि सर्वची। मरीचि ऋषि निर्मित [को०] । का व्यजक यह राग शृगार रस का भी प्रवाही है। मारवाड मारीचपत्रक-सज्ञा पुं० [सं०] सरल वृक्ष । मे यह राग विशेष लोकप्रिय है । मारीचवल्ली-सज्ञा स्त्री॰ [ म० ] मिर्च का पेट । मारू-सञ्ज्ञा पुं० [सं० मरुभूमि ] १ मरुदेश के निवासी। मारवाड मारीची'- सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] एक प्रकार के देवता। के रहनेवाले | उ०-प्यासे दुपहर जेठ के थके सबै जल सोधि । मारीची-सज्ञा स्त्री० [सं० ] १ शाक्य मुनि की माता । माया मरु घर पाय मतीरहू मारू कहत पयोधि । -विहारी (शब्द०) देवी । २ बुद्ध की देवियां । ३ एक अप्सरा का नाम [को०] । २ मरु देश । मारवाह । उ०-(क) मारू देस उपन्नियाँ सर मारीच्य- मन्ना पुं० [ सं० ] अग्निश्वाता। ज्यउं पध्धरियाह । - ढोला०, दू० ६६७ । (ख) मारू कॉमिणि मारीप-सज्ञा पु० [ स० ] मरसा साग । दिखणी पर हरि दीयइ तउ होइ।-ढोला०, दू० ६६८ । माझग-सझा पु० [ स० मारुग ] कोमलता । मृदुता । मार्दव [को॰] । मारू'-वि० [हिं० मारना] १ मारनेवाला । २ हृदयवेधक । मारुड-सज्ञा पु० [ स० मारुण्ड ] १ साँप का अडा। २ गोमय । कटीला । उ०—काजल लगे हुए मारू नयनो के क्टाक्ष अपने गोबर (को०)। ३ गोबर से भरा हुभा रास्ता (को०)। सामने तरुणियो को क्या समझते थे ।-गदावरसिह (शब्द०)। रास्ता । मार्ग । पथ (को॰) । मारु@t-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० ] दे॰ 'मार' । मारू-सञ्ज्ञा पुं० [देश॰] १ एक प्रकार का शाहबलूत । विशेष--यह शिमले और नैनीताल मे अधिकता से पाया जाता मारुयो- सज्ञा पुं० [सं० ] मरु देश । मारु नाम का देश । मरू है । इसकी लकडी केवल जलाने और कोयला बनाने के काम मे घग दश । उ०—कालि कहल पियाए साझे हिर जाएव मोये मारुन देम । -विद्यापति, पृ० ११७ । आती है । इसके पत्ते और गोद चमडा रंगने मे काम आते है । २ काफरेजी रग। मारुका-सज्ञा स्त्री॰ [म० मारी] तात्रिको की एक देवी। मरी। चही मारी। मारूजा-सचा पु० [अ० मारूजह.] १. प्रार्थना । निवेदन । २ मारुत - सज्ञा पु० [सं०] १ वायु । पवन । हवा । २ वायु का प्रार्थनापत्र | अर्जी (को०] । अधिपति देवता। मारूत'-सशा स्त्री॰ [हिं० मारना ? ] घोडो के पिछले पैरो की एक यौ०-मारुतनदन=मारुतसुत । वायुपुत्र । मारुततनय हनुमान । भारी जो मनहूस समझी जाती है । ३ विष्णु (को०)। ४ हस्ति शुड (को०)। ५ स्वाती नक्षत्र (को०) । मारूत'—मा पु० [सं० मारुति । हनुमान (डि० ) । मारतसुत-तज्ञा पुं० [सं०] १ हनुमान । ल०--मारुतमुत में कपि मारूफ-वि० [३० मारूफ ] १. प्रसिद्ध । विश्रुत । ख्यात | उ०- हनुमाना ।-मानम, ७/५। २. भीम । जो कि एक मशहूर और मारूफ खानदानी है ।-प्रेमधन०, मारुतात्मज-सज्ञा पुं० [ मै० ] दे० 'मारुतमुत'। भा० २, पृ० ६० । २ जिसका कर्ता मालूम हो ( क्रिया )। मारतापह-ज्ञा पुं० [ स० ] वरुण वृक्ष। मारे-अव्य० [हिं० मरना ] वजह से। कारण से 30-() मारुतायन-सचा पुं० ० ] गवाक्ष । वातायन । खिडकी [को०] । नन गए फिर, फेन वहै मुख, चैन रह्यो नहिं मैन के मारे । मारुताशन-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] १ कातिकेय । २ साँप । सर्प । मारुति-सज्ञा पुं० [स० ] १ हनुमान । २ भीम। पद्माकर (शब्द॰) । (ख) परतु आश्रम को छोडते हुए दु ख के मारे पांव आगे नही पडते । लक्ष्मणसिंह (शब्द०)। (ग) मारती-सज्ञा स्त्री० [सं०] पश्चिमोतर दिशा । वायव्य दिशा (को०] | मेरे नाम से चूल्हे की राख भी रखी रहे, तो भी लोगो के मारे मारुदेव -सरा पुं० [म० ] एक प्राचीन पर्वत का नाम । वचने नहीं पाती।-दुर्गाप्रसाद मिश्र (शब्द०)। (घ) कुंवर मारुध-सरा पुं० [ सं० ] एक प्राचीन देश का नाम । कही वे वृद्ध विचारे । छोड़ेन धर्म प्यास के मारे ।-रघुनाथ-