माल" ३१२० मालगुर्जरी मुहा०-माल उडाना = मुस्वादु और बहुमूल्य भोजन करना। हैं । उ०-भैरव मालकोण हिंदोल दीपक श्रीराग मेघ सुरहिं ७ गणित मे वर्ग का घात । वर्ग अक। ८ किसी वस्तु का सार ले पार्क ।-अकबरी०, पृ० १०५ । द्रव्य । वह द्रव्य जिसमे कोई चीज बनी हो । जैसे,—(क) इस विशेप-यह मपूर्ण जाति का राग है। इसका स्वरूप वीररस- अंगूठी का माल अच्छा है। (ख) इस कडे का माल खोटा है । युक्त, रक्त वर्ण, वीर पुरुपो से आवेष्टित, हाय मे रक्त वर्ण (ग) एक बीये पोस्त से दो मेर अच्छा माल निकलता है। ६ का दह लिए और गले मे मुडमाला धारण किए लिखा गया मुदर बी। युवती । (बाजारू)। है। कोई कोई इसे नील वस्त्रधारी, श्वेत दड लिए और गले मे मोतियो को माला धारण किए हुए मानते हैं। इसकी ऋतु माल'-प्रत्य॰ [फा०] मला दला। मर्दित । जैसे, पामाल = पैरो से शरद् और काल रात का पिछला पहर है। कोई कोई शिशिर मदिप या मला दला। और वमत ऋतु को भी इसकी ऋतु बतलाते हैं। हनुमत् के मालमँगनी-मशा सी० [हिं० माल + कँगनी] औपध के काम मत से कौशिकी, देवगिरी, दरवारी, सोहनी और नीलावरी ये ग्रानेगाली एक लना का नाम । पाँच इसकी प्रियाएं और वागेश्वरी, ककुमा, पर्यंका, शोभनी विशेष—यह लता हिमालय पर्वत पर झेलम नदी से आसाम तक और खभाती ये पांच भार्याएं तथा माधव, शोभन, सिंधु, मारू, ४००० फुट की ऊंचाई तक, तया उत्तरीय भारत, वर्मा और मेवाड, कुतल, केलिंग, सोम, बिहार और नीलर ग ये दस पुत्र लका में पाई जाती है । इसकी पत्तियां गोल और कुछ कुछ हैं । परतु अन्यत्र बागेश्वरी, वहार, शहाना, अताना, छाया नुकीली होता है । यह जता पेडो पर फैलती है और उन्हें ओर कुमारी नाम की इसकी रागि नयां, शकरी और जयजय- पाच्छादित कर लेती है । चैत के महीने मे इसमे घोद के घौद वती सहचरियाँ, केदारा, हम्मीर नट, कामोद, खम्माच और फूल लगते ह और मारी लता फूलो ने लदी हुई दिखाई पडती वहार नामक पुत्र और भूपाली, कामिनी, झिझोटी, कामोदी है। फूलो के झड जाने पर इसमे नीले नीले फल लगते हैं जो और विजया नाम की पुत्रवधुएं मानी गई हैं। कुछ लोग इसे पवने पर पीले रंग के और मटर के बराबर होते हैं और सकर राग मानते हैं और इसकी उत्पत्ति पटसारग, हिंडोल, जिनके भीतर से लाल लाल दाने निकलते हैं। इन दानो मे तेल बसत, जयजयवती और पचम के योग से बतलाते हैं । राग- का अंश अधिक होता है निमसे इन्हे पेरकर तेल निकाला माला मे इसे पाटल वर्ण, नीलपरिच्छद, यौवनमदमत्त, यप्टि- जाता है। मद्रास मे उत्तरीय अरकाट तथा विशाखापटम, धारी और स्त्री गण से परिवेष्ठित, गले मे शत्रुओ के की दनौरा आदि स्थानो में इसका तेल बहुत अधिक तैयार होता माला पहने, हास्य मे निरत लिखा है, और चौडी, गौरी, है । यह तेल नारगो रग का होता है और औषध मे काम गुणकरी, खभाती और ककुभा नाम की पांच स्त्रियाँ, मारू, प्राता है । वैद्यक के अनुसार इसका स्वाद चरपरापन लिए मेवाड, बडहस, प्रबल, चद्रक, नद, भ्रमर और खुखर नामक कटुवा, इसकी प्रकृति रुक्ष और गर्म तथा इसका गुण अग्नि, पाठ पुत्र बतलाए हैं, और भरत ने गौरी, दयावती, देवदाली, मेधा स्मृतिपर्धक और वात, कफ तथा दाह का नाशक बतलाया खंभावती और कोकमा नाम की पांच भार्याएं और गाधार, गया है। शुद्ध, मकर, प्रिंजन, सहान, भक्तवल्लभ, मालीगौर और कामदेव पर्या०-महाज्योतिष्मती। तीक्ष्णा । तेजोवती। नामक पाठ पुत्र और धनाश्री, मालश्री, जयश्री, मुधोरायो, कनकप्रभा। सुरलता । अग्निफला । मेघावतो । पीता, इत्यादि । दुर्गा, गावारी भीमपलाशी और कामोदी नाम को उनकी भाएं लिखी हैं। माल अदालत-सज्ञा स्त्री० [अ० माल+ अदालत ] वह अदालत मालकोस-सज्ञा पुं० [हिं०] २० 'मालकोश' । जिसमे लगान, मालगुजारी यादि के मुकदमे दायर किए जाते है। मालकौश-सज्ञा पुं० [ ] एक राग । दे० 'मालकोश' । उ०-- ज्यो मालकोश नव वीणा पर। -अपरा, पृ० १७६ । मालकँगुनी -मा मो० [हिं० ] दे० 'मालकंगनी' । मालक'-ज्ञा पुं० [सं०] १ स्थल पा । २ नीम । ३ गांव के समीप मालखाना-मज्ञा पु० [फा० मालखानह ] वह स्थान जहाँ पर माल असवाव जमा होता हो वा रखा जाता हो । भडार । का वन (को०)। ४ नारियन का बना पात्र (को०)। ५ पर्ण- गाना । निकुज । लतामडप (को०)। ६ माला । माल्य (को॰) । मालगाडी-संज्ञा पुं० [हिं० माल + गाडी ] रेल में वह गाडी जिसमे केवल माल असवाव भरकर एक स्थान से दूसरे स्थान माल-शा पु० [अ० मालिक ] दे० 'मालिक' । पर घहुचाया जाता है। ऐसी गाडियो मे यात्री नही जाने पाने । मालक्गुनी-सश को [ हिं०] २० 'मालकंगनी' । मालगुजार-ममा पु० [फा० माल + फा० गुजार ] १ मालगुजारी मालसा-मा सी० ] माला। देनेवाला पुरुष। २ मध्यप्रदेश में एक प्रकार के जमीदार जो मालकुडा-गरा पु० [हिं० माल+कु दा] वह कुडा जिममे नील किमानो से वसूल करके मालगुजारी मरकार को देते थे । फटाहे म डाले जाने से पहले रखा जाता है। मालगुजारो -सशास्त्री० [फा० मालगुज़ार + ई (प्रत्य॰)] १ मालकोश-मा पुं० [ म० ] एक राग का नाम जिसे कौशिक राग व्ह भूमकर जो जमीदार से मग्कार लेती है। २ लगान । भी कहते है । हनुमत ने इने छह मृरय रागो के अतर्गत माना मालगुर्जरी-सशा स्त्री० [सं० ] सपूर्ण जाति की एक रागिनी जिसमे co do
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१४३
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