पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१८२

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मुंडशालि ३६४१ मुंदा मुंडशालि-मज्ञा पुं० [ म० मुण्डशालि ] वोगे धान । मुडी'-सज्ञा पुं० [ सं० मुण्डिग ] १ वह जिमका मुडन हुप्रा हो। मुडा-सञ्ज्ञा ॰ [ स० मुण्ड ] [ स्त्री मुटी ] १ वह जिसके सिर के मुंडा हुमा । २ नापित । हज्जाम । ३ सन्यासी । मुंडिया । वाल न हो या मुंडे हुए हो। २. वह जो सिर मुंडाकर किमी ४ शिव । साधू या जोगी आदि का शिष्य हो गया हो। ३ वह पशु मुडी - वि० १ जिसके सिर के बाल मूंट दिए गए हो। २ विना जिसके सीग होने चाहिए, पर न हो। जैसे, मुडा बैल, मुडा सीग का । सीगरहित । बकरा । ४ वह जिसके ऊपरी अथवा इधर उधर फैलनेवाले मुडीर-सज्ञा पुं॰ [ सं० मुण्डीर ] सूर्य [को॰] । अग न हो । जैसे, मुडा पेड। ५ एक प्रकार की लिपि जिसमे मुडीरिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० मुण्डोरिफा ] गोरखनुडी। मात्राएं श्रादि नहीं होती और जिसका व्यवहार प्राय कोठी- मुडीरी-सज्ञा स्त्री॰ [ स० मुण्डीरी ] गोरखमुढी। वाल करते हैं । कोठीवाली। ६ एक प्रकार का जूता जिसमे मुडो 1-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं मुंडना+श्रो (प्रत्य॰)] १ वह स्त्री जिसका नोक नही होती और जो प्राय सिपाही लोग पहना करते हैं। सिर मुंडा गया हो। २ स्त्रियों की एक प्रकार की गाली मुंडा-वि० १ मु डित । २ गजा। खल्वाट । ३ शृगहीन । विना जिससे प्राय विधवा का बोध होता है। रांड । उ०—वा मुडो सीग का । ४ जिसमे नोक न हो। विना नोक का। का मूड मुंडाऊं जो सरवर कर हमारी।-कवीर० श०, भा० मुंडा-सज्ञा स्त्री॰ [स० मुण्डा] १ गोरखमुडी। २ वह स्री जिसका ३, पृ० २६ । सिर मुडित हो। मुहा०-मुसो का(१) एक प्रकार की बाजारी गाली जिसका मुंडा ४-मज्ञा [ देश० ] छोटा नागपुर मे रहनेवाली एक असभ्य जगली अर्थ हरामी या वर्णसंकर प्रादि होता है । (२) विधवा स्त्री के जाति । गर्भ से उसके वैधव्य काल में उत्पन्न पुरुष । मुडा'-सञ्ज्ञा पुं० मुडा जाति को भापा। मु तकिल - वि० [अ० मु तकिल ] १ एक स्थान से दूसरे म्पान पर मुंडाख्या-सज्ञा स्त्री स० मुण्डाख्या ] गोरखमुडी। गया हुआ या जानेवाला । २ एक जगह मे दूसरी जगह पर हटनेवाला या हटाया हुया। मुडायस-सज्ञा पु० [सं० मुण्डायस ] एक प्रकार का लोहा । महूर । मुंडासन-सज्ञा पुं० [सं० मुण्डासन ] योग के अनुसार एक प्रकार मुहा०—मुतकिल करना = एक के नाम से हटाकर दूसरे के नाम करना । दूसरे को देना । जैसे, जायदाद मुतकिल करना । अ० मुतख़ब ] १ इतखाब किया हुआ। २ छांटा मुंडासा -सज्ञा पुं० [हिं० मुड (= सिर ) + श्रासा (प्रत्य॰)] मुतखब- वि० सिर पर बांधने का साफा । या चुना हुआ। क्रि० प्र०—कसना ।-बांधना । मु तजिम - मशा पुं० [अ० मु तजिम ] वह जो इंतजाम करता हो । प्रबध करनेवाला । व्यवस्था करनेवाला । मुडा हिरन-सज्ञा पुं० [हिं० मु डा+हिरन ] पाठी मृग । मु डिक-मज्ञा पु० [ स० मुण्डिक ] प्रत्येक यात्री से लिया जानेवाला मु तजिर-वि० [अ० मुनजिर ] इ तजार करनेवाला । प्रतीक्षा करने- वाला । राह देखनेवाला। कर । मुडकर । उ०—जिसमे आबू पर जानेवाले यात्रियो क्रि० प्र० - रसना- रहना ।—होना । श्रादि से जो 'दाण' ( राहदारी, जगात ), 'मु डक' ( प्रति यात्री से लिया जानेवाला कर ), 'वलावी' ( मार्गरक्षा का कर ) अ० मु तफ़ी ] नष्ट होने या बुझनेवाला [को०] । मुतफो-वि० [ तथा घोडे बैल आदि से जो कर लिए जात थे, उनको माफ मु तशिर-वि० [अ०] १ अस्त व्यस्त । तितर वितर। विखरा हुया। २ चिंतित । उद्विग्न । परेशान । करने का उल्लेख है -राज० इति०, पृ० ६३० । मतहा-वि० [अ० ] पराकाष्ठा को प्राप्त । पारगत [को०] । मुडित-सज्ञा पुं० [सं० मुण्डित ] लोहा । मतही - वि० [अ०] १. पराकाष्ठा या हद को पहुंचनेवाला। २. मुडित-वि० मुंडा हुना । उ० -(क) मु डित सिर सडित भुज वीसा । विद्यामो मे पारगामी। विद्वान किो०] । -मानस, ५।११ । (ख) बहुतक मुहित पूजा राखि । -चरण० मुद®T-वि० [ स० मुग्ध, अप० मु ध ] दे० 'मुग्ध' । वानी०, पृ० ७७ । मु डितिका-सच्चा सी० [ स० मुण्डितिका ] गोरखमुडी। मु दडा-सया पु० [ म० मुद्रा ] मुंदरी । मुद्रिका । उ०-देइन हाय कउ मुदडउ, सोवन सिंगी नई कपिला गाई।-बी० रासो०, मु डिनी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० मुण्डिनी । कस्तूरी मृग । २।२५। मुडिभ-तज्ञा पुं० [ स० ] एक प्राचीन ऋषि जो वाजसनेय महिता मुद।-सझा पु० [सं० मुद्रा ] दे० 'मुद्रा' या 'मुंदरा' । उ०-है के कई मत्रो के द्रष्टा या कर्ता कहे जाते हैं। हुजूरि कति दूरि वतावह । सुदर वाघहु मु दर पावहु । —कबीर मु डी'- सज्ञा स्त्री॰ [हिं० मूंडना+ ई (प्रत्य॰)] १ वह सी जिसका ग्र०, पृ० ३२९ । सिर मुडा हो । २. विधवा । रांड । ( गाली ) । ३ एक प्रकार मुदा-संज्ञा स्त्री॰ [ म० मुद्रा ] दे० 'मुद्रा' या 'मुदरा' । उ०—सुरति की विना नोकवाली जूती। सिमृति दुइ कनी मु दा परिमिति बाहर सिंथा । —कबीर ग्र०, मु डी-सज्ञा स्त्री॰ [ स० मुण्डी ] गोरखमुडी । पृ० २२८। का श्रासन।