पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१९६

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स० HO स० मुक्तिका मुखड़ा ३ मोक्ष । ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति। उ०- अन्य रूप की त्यागन मुख-वि० प्रधान । मुख्य । जुक्ति । निज स्वरूप की प्रापति मुक्ति ।-नद० ग्र०, २१७ । मुहा० - मुख देखकर जीना = ( किसी के ) सहारे वा भरोसे मुक्तिका -सज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] एक उपनिषद् का नाम जिसमें मुक्ति के जीना। (किसी के ) प्रासरे जीना। उ०-सब दिनो मुख सवध मे मीमासा की गई है। देख जीवट का जिए। लात अव कायरपने की क्यो सहे। -चुभते०, पृ० १३ । मुख पर ताला रहना = मुह बद रहना । मुक्तिक्षेत्र-सञ्चा पु० ] १ वाराणसी। काशी । २ कावेरी कुछ न बोलना । उ०—चित फाटो देखे चिरत, सुनियो अपजस नदी के पास का एक प्राचीन तोर्थ जिसका दूसरा नाम मोर । रसिया मुख तालो रहै जाइ वाक्तो जोर ।-बाँकी०, वकुलारण्य भी था। ग्र०, भा॰ २, पृ० ११ । मुख सूखना = मुरझा जाना। निराश मुक्तितीर्थ -सज्ञा पु० [ ] १ मुक्ति देनेवाले, विष्णु । २ दे० हो जाना। उ०-वे भला आप मूख जाते क्या । मुख न सूखा 'मुक्तिधाम'। जवाब सूखा सुन ।-चुभते०, पृ० १३ । मुक्तिधाम-सज्ञा पु० [ स० मुक्तिधामन् ] तीर्थ जहां मुक्ति प्राप्त मुखकमल-सज्ञा पु० [ स० ] कमल के समान मुख [को॰] । हो । मुक्तिदेनेवाला स्थान । मुखकाति-नशा ली० [ स० मुखफान्ति ] मुख का सौदर्य । मुख की मुक्तिपत्र- सज्ञा पुं० [सं० ] मुक्त करने का आदेश । छुटकारे का शोभा [को०] । परवाना। मुखचर-सञ्ज्ञा पु० [ स०] दांत । मुक्तिप्रद'-मज्ञा पुं० [ ] हरा मूग। मुखखुर-सञ्ज्ञा पु० [ सं० ] दात (को०] । मुक्तिप्रद - वि० मुक्ति देनेवाला । मुखगधक-सज्ञा पु० [ स० मुखगन्धक ] प्याज । मुक्तिफौज-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० मुक्ति + फौज ] ईसाइयो का एक सेवा मुखग्र-सशा पुं० [ स० मुखाग्र ] दे० 'मुखान' । उ० हजार कोटी और धर्म प्रचार-कार्य करनेवाला सघटन (मालवेशन आर्मी) । जु होइ रसना एक एक मुखग्र। इडा अरन्धिन जो वस रसनानि मुक्तिमडप- सज्ञा पुं० [ स० ] विभिन्न देवस्थानो मे स्थित मडपाकार मडि समग्न ।-भिखारी० ग्र०, भा० १, पृ० २० । स्थानविशेप। मुखग्रहण-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] मुखत्रु बन [को०] । मुक्तिमती सशा स्त्री॰ [ स० महाभारत के अनुसार एक नदी का मुखचपल-सञ्ज्ञा पु० स०] १ वह जो बहुत अधिक या बढ बढ़- नाम। कर बोलता हो । २. वह जो कटु वचन कहता मुक्तिमार्ग -सझा पु० [ ] मुक्ति पाने का मार्ग या साधन । मुखचपलता-सञ्चा स्त्री० [०] १ बहुत अधिक या बढ बढकर मुक्तिमुक्त-संशा पु० [ स० ] शिलारस । सिल्हक । बोलना । २ कटु भापण । मुक्तिलाभ-सज्ञा पु० [ म० ] मुक्ति । छुटकारा मिलना । मुखचपला-मञ्चा स्त्री० [ ] आर्या छद का एक भेद। मुक्तिसावन - मझा पु० [ स० ] मुक्ति प्राप्त करने को कामना से मुखचपेटिका-सशा स्त्री० [सं०] १ कान के अंदर का एक अवयव । ईश्वर और आत्मा के स्वरूप का चिंतन करना। २. चांटा । झापड (को०)। मुक्तिस्नान-सञ्ज्ञा पु० [ स० ] ग्रहण की समाप्ति, मोक्ष के वाद किया मुखचालि-सञ्ज्ञा स्त्री० [ सं० ] प्रारभिक या परिचयात्मक नृत्य [को॰] । जानेवाला स्नान । मुखचित्र-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० मुख+ चित्र ] किसी पुस्तक के मुखपृष्ठ मुक्ती-सज्ञा स्त्री० [सं०] दे॰ 'मुक्ति । उ०-- ब्राह्मण पूजे, होय न पर या प्रारभ का चित्र । मुक्ती।-कवीर सा०, पृ० ८१६ । मुखचीरी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं०] १ जीभ । जिह्वा । २ फौज । मुक्तेश्वर-सज्ञा पु० [ ] एक शिवलिंग का नाम । मुखचूर्ण-सज्ञा पुं० [सं० ] चेहरे पर लगाने का सुगधित चूर्ण मुखडा-सज्ञा पु० [हिं० मुख+ प्रडा (प्रत्य॰)] झारी श्रादि टोंटी- वा बुकनी। मुंह पर लगाने का पाउडर [को॰] । दार वरतनो मे क्यिा हुआ वह छेद जिसमें टोटी जडी मुखज'- वि० [सं० ] मुंह से उत्पन्न । मुखज'-सञ्ज्ञा पुं० १ ब्राह्मण ( जो भगवान् के मुख से उत्पन्न माने मुखपच-सञ्चा पु० [ स० मुखम्पच ] भिक्षुक । याचक | फकीर । गए हैं ) । २ दांत (को०)। मुख-सञ्चा पु० [ ] १ मुंह । आनन । २ घर का द्वार। मुखजबॉजी@t-वि० [स० मुख + फा० जवानी ] मुह जवानी । दरवाजा। ३ नाटक मे एक प्रकार की सधि | ४ नाटक का उ०—जिण विध मुखजवाँजी भूपत सुते सगली भांत । -रघु० पहला शब्द । ५. किसी पदार्थ का अगला या ऊपरी खुला रू०, पृ० ८१ । भाग। ५ शन्द । ७. नाटक । ८. वेद । ६.पक्षी का चोच । मुखड़ा-सज्ञा पुं॰ [ स० मुख+हिं० ड़ा (प्रत्य॰)] मुख । चेहरा । १०. जीरा । ११, आदि । प्रारभ । १२. वडहर । १३ मुरगावी । १४. किसी वस्तु से पहले पडनेवाली वस्तु । श्रागे विशेष—इस शब्द का प्रयोग प्राय बहुत ही सुदर मुख के लिये या पहले आनेवाली वस्तु । जैसे, रजनीमुख = सध्या काल । होता है । जैसे, चाँद सा मुखडा । स० HO स० जाती है। स आनन।