सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मुरेठा ३६७६ मुर्वा मुरेठा सज्ञा पु० [हिं० मूड (= सिर) + एठा (प्रत्य॰)] १ पगडी । २. शव के साथ उसकी प्रत्येष्टि क्रिया के लिये जाना। मुर्दे के साथ उसे गाडने या जलाने के स्थान तक जाना। ३ मृतक की मुरायठा माफा। अत्येष्टि क्रिया के लिये जानेवालो का ममूह । क्रि० प्र०—चाँधना । क्रि० प्र०-में जाना। २ दे० 'मुरैठा'। मुरेर-सज्ञा स्त्री० [हिं० मुडना ] दे० 'मरोड' । मुर्दा-सज्ञा पुं० [फा० मुद्देह ] दे० 'मुरदा'। उ०- माघो ई मुर्दन के गांव ।-कवीर श०, भा० २, पृ० ४२ । मुरेरना- क्रि० स० [हिं० मरोरना ] दे० 'मरोडना' । मुर्दावली मुरेरा। -- सज्ञा पु० [हिं०] १ २० 'मुडेरा' २ दे० 'मरोड' । -सज्ञा स्त्री॰ [फा० मुर्दन (= मरना ) ] दे० 'मुर्दनी' । मुरैठा -सहा पुं० [हिं० सुरेठा ] १ दे० 'मुरेठा'। २ नाव की मुर्दावली' वि० मृतक के सबध का । मुग्दे का । लवाई मे चारो ओर घूमी हुई गोट जो तीन चार इच मोटे मुर्दासिंगी -मज्ञा पुं० । फा• मुरदासग] दे० 'मुरदासख' । तख्तो से बनाई जाती है और 'गूढा' के ऊपर रहती है । मुमुर-मज्ञा सी० [ स०] १ कामदेव । २ सूर्य के रथ के घोड़े। मुरौश्रत-सज्ञा स्त्री० [अ० मुरुब्बत, मुरव्वत ] दे० 'मुरोवत' । ३ भूसी को पाग । तुपाग्नि । ४ गोमूत्र का गध (को॰) । उ०--बेतरह जो मुंह मुरौवत कामले । दे गिरा जो मेल मुंह मुर्रा--सञ्ज्ञा पु० [हिं० मरोड या मुड़ना] १ मरोडफली नाम की के बल हमे ।-चुभते०, पृ० ६६ । योपधि । इस की लता जगलो मे होती है। २ पेट मे ऐंठन मुरौवत-सज्ञा स्त्री० [अ० मुरव्वत, मुरुब्वस ] १. शील | मकोच । होकर पतला मल निकलना और वार वार दस्त होना । लिहाज। मरोड । ३ पेट का दर्द । मुहा०-मुरौवस तोड़ना = रुखाई का व्यवहार करना। शील के मुर्रा-सभा सी० [हिं० मुड़ना ] हिसार और दिल्ली आदि मे होने- वाली एक प्रकार की भैस । विरुद्ध आचरण करना। विशेप-इसके मीग छोटे, जड के पास पतले और ऊपर की ओर २ भलमनसी । पादमीयत । मुडे हुए होते है। इस जाति की भैस और भैसे दोनो बहुत क्रि० प्र०-करमा ।-बरतना । अच्छे समझे जाते है। मुरौवती-वि० [हिं० मुरीयत + ई (प्रत्य॰)] सकोची । मुरौवतवाला। मुर्रा - सज्ञा पु० [ अनु० ] दे॰ 'मुरमुरा' । मुर्ग-सज्ञा पुं॰ [ फा० मुर्ग] दे० 'मुरगा' । मुर्रातिसार-सशा पुं० [हिं० ] दे० 'मरोह' । मुर्गकेश-सज्ञा पुं॰ [फा० मुग + केश (= चोटी ) ] मरसे की जाति मुरी-सज्ञा स्त्री० [हिं० मुदना या मरोदना ] १ दो डोरो के सिरो का एक पौधा जिसमें मुरगे की चोटी के से गहरे लाल रंग के को आपस में जोडने की एक क्रिया जिसमें गांठ का प्रयोग नही चोठे चौड़े फूल लगते हैं। इसे 'जटाधारी' भी कहते हैं। होता, केवल दोनो सिरों को मिलाकर मरोठ या वट देते है। मुर्गखाना-सक्ष -सचा पु० [फा० मुगनानह ] मुरगों के रहने के लिये २ कपडे प्रादि में लपेटकर डाली हुई ऐंठन या बल । जैसे, बनाया हुमा स्थान। धोती की मुरौं । मुर्गवाज-सज्ञा ॰ [ फा० मुर्गयाज़ ] वह जो मुरगे लडाता हो । मुहा०-मुरी देना = (१) कपडा फाडते समय उसके फटे हुए प्रश मुरगो का खेलाडी। को बरावर घुमाते या मोडते जाना जिसमे कपडा बिलकुल मुर्गवाजी-सा -सधा सी० [फा० मुगंबाज़ी ) मुरगे लडाने का काम सीधा फटे । (बजाज)। (२) धोती को ठहराने के लिये कमर पर कई वल लपेटकर छल्ला सा बनाना। मुर्गमुसल्लम-सज्ञा पु० [ फा० मुर्ग+अ० मुसल्लम ] समूचा पकाया ३ कपडे आदि को मरोडकर बटी हुई बत्ती। हुआ मुरगा। उ०—मुझे तो श्राप मुर्गमुसल्लम न खिलाइएगा यौ०-मुरी का नैचा। तो मैं भाग खडा होऊंगा।-शराबी, पृ० १२ । ४ चिकन या कशीदे की कढाई का एक प्रकार जिसमे वटे हुए सुत मुर्गावी- सज्ञा पुं० [फा० मु+भाबी ] दे० 'मुरगावी' । का व्यवहार होता है और जिसका काम उभारदार होता है। मुर्चा- ५ एक प्रकार की जगली लकड़ी। -सज्ञा पुं० [हिं० ] दे॰ 'मोरचा' । मुर्रा का नैचा-शा पुं० [हिं० मुरी + नैचा ] एक प्रकार का नचा मुर्तकिव-वि० [ ] अपराव करनेवाला । अपराधी । कमुरवार । जिसमे कपड़े की मुर्गी या अत्ती बनाकर कमकर लपेटते जाते हैं। मुजरिम । विशेष—यह देखने में उल्टी चीन ही की तरह जान पड़ती मुर्दनी- नशा रनी० [फा० मुदन (= मरना )+ ई (प्रत्य॰)] १ है, परतु वस्तुत वत्ती होती है। इस बनावट का नंचा उतना प्राकृति का वह विकार जो मरने के समय अथवा मृत्यु के दृढ नहीं होता। जहां कपडा सडता है, वही से वत्ती टूटने कारण होता है । मुख पर प्रकट होनेवाले मृत्यु के चिह्न । लगती है और वरावर खुलती ही चली जाती है । मुहा०- चेहरे पर मुर्दनी छाना या फिरना = ( १ ) मुख पर मुरीदार-वि० [हिं० मुरी+फा० दार (प्रत्य॰)] जिसमे मुर्गी पडी मृत्यु के चिह्न प्रकट होना। (२) बहुत अधिक निराश या हो । ऐंठनदार । उदास होना। मुर्वा-सशा पुं० [सं० ] मरूल या गोरचकरा नाम का जगली पौधा या भाव। शक