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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२२७

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मुहरिक नाई को। ६६५६ मुहासिना और रोना, मनहूस या मुहमी कहलाएगा ।-रस०, मुहार-मशा स्नी' [हिं० मुह + पार (प्रत्य॰)] १ ऊंट को नरेन । पृ० १८३ । मुहरी । २ मकान का दरवाना । यौ०-मुहर्रमो सूरत = रोनी सूरत । मनहूस मूरत । मुहारवा-संज्ञा पुं० [अ० मुहारमा ] युद्ध । परम्पर साम। मुहरिक-वि० [अ०] १ प्रेपक। चालक । २ प्रस्तावक । ३. उत्तेजक । उत्तेजना देनेवाला (को०] । मुहालपो-सज्ञा पा[स०] भ्रमर : मधुमक्यी । है 'मुहलय' । उ० - मुहरि- --सञ्ज्ञा पुं० [अ० ] लेखक । मु शी। लिपिक क्लर्क। उ०- महु तजि चनत मुहाल अन्य तर माप लगन यह। बद्दल विद पांच मुहरिर साथ करि दीने तिनकी दडी विपरीत । जिम्मे विमाल चनत वमि परन गगन मई। पृ० रा०, ७।२३ । उनके, मांग मोते यह तो बडी गनीत । —सूर (शब्द॰) । मुहाल'-वि० [अ० ] १ जनभन । नामुमकिन । २ याटिन । दर । मुहर्रिरी- सज्ञा स्त्री० [अ० ] मुहरिर का काम । लिखने का काम । टु नाध्य । उ०-है मुहा। उनका दाम बाना । दिल ह टन मुहलत- सच्चा स्त्री० [अ० मोहलत ] 'मोहलत' । मा युता का जर की तरफ।-रुविन पौ०, भा० ४, पृ० २। मुहलय - सज्ञा पुं० [दश०] मुहाल | भ्रमर । उ०—कुवनय गज मुहाल -TI पु० १ १० 'महाल' । 'महना' । मुहलय मुदित विदित बली दरबार ।-पृ० रा०, २।४६२ । मुहाला-मरा पु० [हिं० मुंह -- पाला (प्रन्य०) ] पीनन का यह दद मुहली-सज्ञा स्त्री० [ स० मुसल का स्री. ] २० 'नूमल' । 30- या चूडी जो हाथी के दात में शोभारे लिये बनाई जाती है। कबीर चावल कार ने तुख को को मुहली लाइ । —कबीर ग्र०, वगर । वगड । उ०-गग्न बदन मदत विराजहिं हाक बँचे पृ० २५२। मुहाले। ननहु द्वज शणि श्याम मेघ मधि उभय नोक छवि मुहलैठी-ससा नी० [सं० मधुयप्टि ] दे० 'मुलेठी' । माले । -रघुराज (गन्द०)। मुहल्ला-सच्चा पुं० [अ० मुहल्लह, ] दे० 'भहल्ला' । मुहावरत-11 सी० [अ०] परम्पर वार्ता । आपम मे बातचीत मुहसिन-वि० [अ० ] १ एहसान करनेवाला । अनुग्रह करनेवाला । करना (को०] । २ सहायक । मददगार । मुहावरा-नशा पुं० [अ० नुहावरह, ] १ नक्षला या व्यजना द्वारा यौ०–मुहसिन कुश = एहसान फरामोश । कृतघ्न । मुहबिन सिद्ध वाक्य या प्रयोग जो किसी एक ही चोली या लिखी कुशी = कृतघ्नता । जानवाली भाषा मे प्रचलित हो और जिसका अर्थ प्रत्यक्ष मुहसिल'-वि० [अ० मुहासिल ] तहसील वसूल करनेवाला। (अभिवय) अर्थ में विलक्षण हो । स्ट लाक्षणिक प्रयोग । विसी उगाहनेवाला। एक भाषा मे दिखाई पडनेवाली प्रभाधारण शब्दयोजना अथवा मुहसिल-सज्ञा पुं० प्यादा। फेरीदार । उ०-मैं न दियो, मन उन प्रयोग । जमे,-'लाठी खाना' मुहावरा है, क्योंकि इनमे 'खाना' लियो, मुहसिल मन पठाय ।-रसनिधि (शब्द॰) । शब्द अपन नाधारण अर्थ में नहीं आया है, लाक्षणिक सय मे आया है । लाठी खाने का चोज नहीं है, पर बोलचान मे 'लाठो मुहाफिज-वि० [अ० मुहाफिज ] हिफाजत करनेवाला । सरक्षक । खाना' का अर्थ 'लाठी का प्रहार सहना' लिया जाता है। इसी पकार 'गुल खिलाना' 'घर करना', 'चमहा सोचना', 'चिकनी मुहाफिजखाना-सञ्ज्ञा पुं० [अ० मुदाफिज + फा० खानह, ] कचहरी चुपडी वातें' प्रादि मुहावरे के अतर्गत है। कुछ लोग इसे मे वह स्थान जहाँ सब प्रकार की मिसलें आदि रहती हैं। 'रोजमरी' या 'वोलचान' भी कहते हैं । २ अन्यान । आदत । मुहाफिज दफ्तर -- सज्ञा पुं० [अ० मुहाफिज + दफ् तर ] कचहरी का जैसे,—आजकल मेरा लिनने का गुहावरा छूट गया है। वह अधिकारी जिसके निरीक्षण मे मुहाफिजखाना रहता है कि प्र०-छूटना।-टालना ।-पडना । (अ० रेकर्ड कीपर)। मुहासवा-मश पुं० [अ० मुहासबह.] दे० 'गुहासिवा' उ०-दिल को मुहाका-वि० [ स० मोहक ? या दश० , मोहित करनेवाला। ठग । करहु फराख फकीरा रहु मुहासवे पाफ ।-पलटू, भा० ३, लुटेरा । उ०—अठसठ हाट इसे गढ माही। विचि पच मुहाके लूट ले जाहीं।-प्राण०, पृ० ३० । मुहासरा- मा पुं० [अ० मुहासरह ] २० 'मुहासिरा' [को०] । मुहाचहीं-सज्ञा पु० [हिं० मुह + चाहना ] मुखदर्शन । मुख का मुहासिव-सा पु० [अ०] १ हिसाब जाननेवाला । गणितज्ञ । देखना। दर्शन । उ०—जान प्यारी सुधि हूँ शपुनपो विसरि २ पडताल करनेवाला। आंकनेवाला। हिसाब लेनेवाला । जाय। माधुरी निवान तेरी नसिक मुहाचही ।-धनानद, उ०—सूर प्राप गुजरान मुहासिव ल जवाव पहुंचावै ।- पृ०३७४। सूर (शब्द०)। मुहामुहीं-क्रि० वि० [हिं० मुंह ] आमने सामने । परम्पर एक मुहासिवा-सज्ञा पुं० [अ०] १ हिमाव । लेखा। उ०-सूरदास दूसरे से । उ० - तव विधवा के गर्भ की वार्ता जहाँ जहाँ लोग को यह मुहामिवा दस्तक कोज माफ -सूर (शब्द०) मुहांमुही करने लगे। -भक्तमाल ( श्री०), पृ० ४७५ । २ पूछताछ। रखवाला। पृ० १०॥