मॅजीलांछन ३६५६ एक सीचा काड पतली छड के रूप मे ऊपर निकलता है जिसके मुहा०-मूढी काटे=त्रियो की बोलचाल मे पुग्पो के लिये स्त्रियो सिरे पर मजरी या घूए के रूप मे फूल लगते है। सरकडे से की एक गाली । मुडी मरोदना = (१) गला दबाकर मार इसमे यह भेद होता है कि इसमे गाँठे नहीं होती और छाल वडी डालना । (२) बोसा दकर हानि पहुंचाना । चमकीली तथा चिकनी होती है । सींक से यह छाल उतारकर २ किमी बन्तु का गिरोभाग (जो मूट के आकार का हो ) । बहुत सुदर मुदर डलियाँ बुनी जाती है। मूज प्राय ऊचे मडीवध-मज्ञा पु० [हिं० मज+ बंध ] पुश्ती का एक पेंच जिसमे ढानुएं स्थानो पर वगीचे को बाढो या ऊंची मेडो पर लगाई एक पहलमान दूसरे ने पीठ पर चढकर उसकी वगला के नीचे जाती है। मूंज बहुत पवित्र मानी जाती है। ब्राह्मणो के से अपने हाप ले जाकर उसकी गर्दन दवाता है। उपनयन सस्कार के समय वटु को मु जमेखला ( मूज को मटना-क्रि० स० [सं० मुद्रण ] १ ऊपर से कोई वस्तु डाल या करधनी) पहनाने का विधान है। फैलाकर किसी वस्तु को छिपाना। पाच्छादित करना। बद पर्या-सौजीतृण | ब्राह्मण्य । तेजनाह्वय । वानीररु । मुजनक | करना। टांकना । जैसे, आँच मूदना । उ०-मू दिन प्रांखि गीरी । दर्भाद्वय । दूरमल । दृटमूत । वटुप्रज। रजन । कतहुँ काउ नाही । -तुलमो (शब्द॰) । २ घेद, द्वार, मुंह शत्रुभग । आदि पर कोई वस्तु फैला या रखकर उसे बद करना । सुला में जी लाचन-वि० [ स० मौजीलाञ्छन ] {ज की मेखला से न रहन देना । जैसे, नाक कान मूदना, छेद मूदना, खिडकी युक्त । उ०-मूजीलाछन पृष्नाजिन महित मुनि यूं राजै ।- मूदना, घडे का मुंह मूदना । ३ रोकना । अवरोध करना । वांकी० ग्र०, भा०३, पृ० १५५ । घेरना । छिपा रखना । उ०—तब मत्याजी कहे, जो इनको म झा@-वि० [ स० मुग्ध ] लीन । मराबोर । तर । उ०-गूझा इक ठोरे क्यो नदि राखे है ।-दो गो वावन०, भा० १, रस मूझा दघि न्यारी ।-नद० ग०, पृ० ३० । पृ० १२६। म ठी@ - सज्ञा स्त्री० [हिं० मुही ] दे० 'मुट्ठी' 'मुष्टि' । उ०—नाहि कि. प्र.-देना ।—लेना । -रखना। त काह घार एक मूठी।—जायसी ग्र०, पृ० २३२ । मॅदर-सज्ञा स्त्री० [ स० मुद्रा, मुद्रिका ] मुंदरी । अंगूठी । मुंडा-सञ्ज्ञा पु० [ स० मुण्ड ] सिर । कपाल । उ०—(क) तुलसी धा-वि० [ स० मुग्ध ] दे० 'मुग्ध' । की बाजी राखी राम ही के नाम, नत भेंट पितरन को न मूड हू मैंधना-क्रि० स० [हिं० ] १ मूदना । २ मुग्य करना । उ०-- मे वार है।-तुलसी (शब्द॰) । पाए अलि कयो प्रेम पथ को करन मूधो स्यो निज खास वास मुहा०—मूड चढ़ना = ढिठाई करना। सिर चढना। मूड तजोरी घरनि को |-दीन० न० पृ० ४७ । चढ़ाना = ढीठ करना । निडर कर देना। सिर चढाना । मूड मारना = बहुत हैरान होना । वहुत कोशिश करना । उ----मुंड मधा-वि० [रश० या स० मूर्धा ? ] उलटा । श्रीया । मिर के वल । उ०-बनियां मूंधौ हरयो ढुंग फेरी हाथ । सुदर ऐमो भ्रम मारि हिय हारि के हित हहरि अब चरन सरन तकि प्रायो। भयौ मेरे तो नहि माथ ।- दर० ग्र०, भा० २, पृ० ७७३ । —तुलसी (शब्द०)। मूड मुडाना = (१) सन्यासी होना । (२) बाना बदलना। अन्य रूप स्वीकारना । नारि मुई गृह मन-वि० [ स० मान, पु०हि० मवन ] दे० 'मौन' । उ.-- सपति नासी मूंड मुडाइ होहिं सन्यानी-मानम, ७१०० । अगन अन ग तन मे छिपाइ, रहै मून मनह तन ज्यौ नुपाई। विशेप दे० 'निर'। -पृ० रा०,१११३५ । मॅडक्टा-संज्ञा पुं० [हिं० मूड + काटना ] दूसरे का सिर काटने मू सना-क्र० स० [हिं० ] दे० 'मूलना' । उ०-जो लहि चोर संघ वाला। दूसरे की हानि करनेवाला । धोखा देकर दूसरे को नहि देई । राजा केर न मूमें पेई ।-जायमी ग ०, पृ० २६४ । नुकसान पहुचानेवाला। म. १- सज्ञा पुं॰ [फा०] १ बान । सिर के बाल । केश । २ रोम [फो०] । मडन-मज्ञा पुं० [म० मुण्डन] गुडन सस्कार जिसमे बालक के बाल मू-राज्ञा पुं० [स० मुख, प्रा० मु] मुख । चेहरा । उ०- मोटा पहले पहल मुंडाए जाते है । चूडाकरण सस्कार । तन व धुंद धुंदला मूर उच्ची अग्बि, व मोटे गोठ मुछदर यौ-मूडन छन्न = कर्णवेध गौर चूडाकरण । की श्रादम यादम ।-भारतेंदु ग्र०, भा॰ २, पृ० ७८६ | मडना-फ्रि० स० [स० मुण्डन] १ सिर के बाल बनाना। जामत मूत्रा-मज्ञा पुं० [ मं० मृर, पा० मुश्र, हि० मरना ] मृत । मग हुआ । करना। २ धोखा देकर माल उडाना । ठ ना। जैसे,--उसन विशेष-३मका प्रयोग सियां प्राय गाली के रूप मे करती है। १०) तुमसे मूंड लिए । ३ भेटो के शरीर पर से ऊन कतरना। मूक'-वि. [१०] १ जिसके मुंह ने अलग नणं न निल्न सकते हो। ४ चेला बनाना । दीक्षित करना । जैसे, पेला मूडना । उ० - गूंगा। अवाक् । ७०- मूक होइ वाचानु पगु चद गिरिवर जुरे सिद्ध साधक ठगिया से बडो जाल फैलायो। मूडयो जिन्हें गहन । -तुलनी (गन्द०)। मिटायो तिनको जग सो नाम धरायो । भारतेंदु न०, भा० विशेष सुश्रुत ने लिखा है कि गर्भवती को जिम वरतु के माने २, पृ०४४६। को इच्छा हो, उमफे न मिलने में वायु गुपित होता है और मॅड़ा-सा पुं० [स० मुण्ड] १ सिर । २ मूड के प्राकार की वस्तु । गर्भस्थ शिशु कुबडा, नूगा इत्यादि होता है। मडो-मरा खी० [ मुण्डिका ] १ सिर । मस्तक । २ दीन । विवश । लाचार । EO
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