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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३४७

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४१०६ रजताई . 1 नोजन । २ है और प्राय तीन या चार दिनो तक बरावर निकलता रहता हैं । प्रार्तव । कुमुम । ऋतु । विशप-रज युवावस्था का सूचक होता है और गरम देशो मे स्त्रियो के वारवे या तरहवें वप तथा ठ देणो मे सोलहवें या अठारहवें वप निकलने लगता है और प्राय पचान या पचपन वष की अवस्था तक निकलता रहता है। जब स्त्री गर्भ धारण कर लेनी है, तब यह रज निकलना बद हो जाता है, और प्रसव के उपरांत फिर निकलने लगता है। हमारे यहा शास्त्रों में कहा है कि जबतक स्लो रजस्वला न होने लग, तबतक उसे कोई धार्मिक कृत्य करने का अधिकार नहीं होता, और जिन दिनो स्त्री को रजस्राव होता हो, उन दिनो वह अपवित्र या अशुचि सगझी जाती ह । रजस्राव हो चुकने पर जब स्त्री स्नान करती है, तब वह गर्भवारण के लिये विशेप उपयुक्त हो जाती है। २ साख्य के अनुसार प्रवृति के तीन गुणा मे से दूसग गुण । विशप-यह चचल, प्रवृत्त करनेवाला, दुखजनक पौर काम, क्रोध, लोभ आदि को उत्पन्न करनेवाला माना गया है । नत्व तथा तम दोनो गुणो को यही मचालित करता है और इसी के द्वारा मनुष्य मे सब प्रकार को उत्तेजना या प्रेरणा उत्पन्न होती है। विशेप दे० 'गुण' । ३ अाकाश । ४ पाप। ५ जल। पानी। उ०—रज राजस, आकाश रज, रज युवती मे होय । रज धूली, रज पाप, कहि ग्ज जल निर्मल बोय ।--नददास (शब्द०)। ६ प्राचीन समय का एक प्रकार का वाजा, जिसपर चमडा मढा जाता था। ७ जोता हुआ खेत । ८ बादल । ६ भाप । १० फूलो का पराग | उ०-हेमकमल रज मिलि पियराए। -लक्ष्मणसिंह (शब्द०)। ११ पाठ परमारणुप्रो का एक मान या तौल । १२ भुवन । लोक । १३ पुराणानुसार एक ऋपि का नाम जो वशिष्ठ के पुत्र मान जाते हैं। ४ खेत पापडा। १५ स्कद की एक सेना का नाम । रज-सज्ञा स्त्री० १ धूल | गर्द । उ०—(क) गमन चढं रज पवन प्रसगा ।—तुलसी (शब्द०)। (स) अति शुभ वीथी रज परि- हरे । -केशव (शब्द॰) । (ग) रज राजस न छुवाइए नेह चीकने चित्त ।-विहारी (शब्द॰) । २ रात । ३ ज्योति । प्रकाश । रज'--मश पुं० [सं० रजत) चाँदी। उ०-(क) पुनि ताम्र के हैं कोटि घर श्रुति कोटि रज के स्वच्छ है। तह पांच कोटि परवान के गृह दारु के नव लच्छ है। विश्राम (शब्द॰) । (ख) भाजन मणि हाटक रज केरे। अति विचित्र बहु भाति घनेरे ।- विश्राम (शब्द०)। रज-सज्ञा पुं० [सं० रजक] रजक । धोबी। उ०--(क) शिवनिंदक मतिमद प्रजा रज निज नय नगर बसाई । -तुलसी (शब्द॰) । (ख) मारग मे एक रज सहारयो सबहि बसन हरि लीन्हे ।- सूर (शब्द०)। रज-मचा पुं० [फा० रज़] अगूर (को०] । रज-वि० [फा० रज] रंगनेवाला [को०] । रज-मचा मी० [सं० जिम् ] शूरता। वीरता। रजपूना । उ०--राजे भाणे राज छोडि गजपून, गैती छोदि राउत रनाई छोटि राना जू ।-गग ग्र०, पृ० ६३ । रजईल-मशा ग्री० [हि० राजा+ई (प्रत्य॰) 1 गनत्व । राजा पन । उ०-राजा है रजई दिएगवत । ग्याल बाल दुदुभी बजारत ।-नद. ग्र०, पृ०१८,1 रजक'-सज्ञा पुं० [सं०] [पी० रजको] १ कपडा चोने वाला। धोबी। २ मुग्गा । शुक (को०)। रजक-राशा पुं० [प्रारिक] १ अन्न । गेजी। जीविका । उ.--देखना दुय दुर है पाय रजक तुप पूर।- वांकी० ग्र०, भा० ३, पृ० ११ । रजकण--सज्ञा पुं० [सं० रज +षण, धूलिकण । रजकी--सजा सी० [सं०] १ रजक की स्त्री । दागिन। २ रजोधर्म के समय तीसर दिन स्त्री की मजा (ta | रजगार-सा पुं० [दश०] 'फरा । कूटू । गोद। दे० यूटू । रजगुण--T पुं० [सं० रजागुण] प्रवृति का यह गुग्ग जिसने काम वा भोग विनाग की इच्छा पंदा होती है। रजोगुण । विरोप दे० 'रज' । उ०-चतर विमाल यायम रचित उपमा नहि कहि जात है। ग्नहित लपेट तम गुनहि तनु मनु रजगुन सरसात है । -गोपाल (शब्द॰) । रजतत-सहा स्त्री० [सं० राजतत्त्व | शूरता। वीरता । उ०- शिव सरजा सा जग जुरि चदावत रजवत । राव अमर गो अमरपुर ममर रही रजतत ।-भूपण (शब्द॰) । रजत- खी० [ ] १. चादी। रूपा। उ.-रजत सीप मह भाम जिमि जथा भानु कर बारि । —तुलसी (शब्द॰) । २ सोना। ३ हाथी दात । ४ हार। ५ रक्त। लहू । ६ पुराणानुमार शाकद्वीप क अस्ताचल पर्वत का नाम । रजत-वि०१ मफेद । शुक्ल । २ लाल । मुर्स। ३. चांदी के रग का । चादी का बना हुआ (को०) । यौ०-रजतकुम = चांदी का घडा । रजतपात्र, रजतभाजन% चांदी का वरतन । रजतकूट-सरा पुं० [सं० ) मलय पर्वत की एक चाटी का नाम । रजतजयती-सशा सी० [सं० रजत + जयन्ती ] किसी संस्था के जीवनकाल के २५वें वर्ष मनाया जानेवाला उत्सव । रजतद्युति'-सज्ञा पुं॰ [सं० ] हनुमान । रजतद्युति-वि० रजत के समान दीप्त वा चमकीला। रजतनाभ-सज्ञा पुं० [सं० ] पुराणानुसार एक यक्ष का नाम । रजतनाभि-सज्ञा पुं॰ [स०] कुवेर के एक वशयर का नाम । रजतपट-सशक्षा पुं० [सं० रजत+पट ] वह सफेद पर्दा जिसपर चलचित्र प्रशित किए जाते हैं। रजतप्रस्थ-सा पुं० [सं०] कैलास पवत । रजतवाह-सचा पुं० [सं० ] एक प्राचीन ऋषि का नाम । रजताई-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० रजत+माई (प्रत्य॰)] सफेदो । 0