पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३६९

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रविजा ४१२८ रशनाकलाप विशेष-कहते हैं, इनका आकार प्राय हार के समान और (शब्द॰) । (ख) रविमडल जनु जाल काटि विघि घरे नखत वर्ण सोने के समान होता है और ये पूर्व या पश्चिम दिशा मे गन ।-गिरधर (शब्द०)। दिखाई देते हैं। रविमणि सज्ञा पुं० [सं०] मूर्यकात मणि । रविजा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] यमुना । कालिंदी । रविरत्न-सज्ञा पुं० [सं०] सूर्यकात नामक मणि । रविजात-सज्ञा पुं० [सं०] सूर्य की किरण । रविरत्नक-[सं०] माणिक्य । मानिक । रविजेंद्र-सज्ञा पुं० [स० रविजेन्द्र] जैनो के एक प्राचार्य का नाम । रविलोचन-मज्ञा पुं० [०] १ विष्णु । २ शिव (को०)। रवितनय-सज्ञा पुं० [स०] १ यमराज । २ सावणि मन् । ३ रविलौह-सज्ञा पुं० [सं०] ताना। वैवस्वत मनु । ४ शनैश्चर। ५ सुग्रीव । ६ कर्ण। ७ रविवश सज्ञा पुं० [स०] मूर्यकुल । अश्विनीकुमार । ८ वाली का एक नाम (को०) । रविवशी-सा पु० [स० रविवशिन्] सूर्यकुन मे उत्पन्न । सूर्यवंशी । रवितनया-सज्ञा स्त्री० [सं०] सूर्य की कन्या, यमुना। उ० (क) रविवाण - सज्ञा पुं० [सं० ] वह वाण जिसके चलाने से सूर्य का मा गए श्याम रवितनया के तट अग लसति चदन की खोरी।- प्रकाश उत्पन्न हो। उ०-खग शायक पिप्पील प्रमाणा। सूर (शब्द॰) । (ख) जमुना जल विहरत नंदनदन सग मिली अधकार औरहु रविवाणा । -सवल (शब्द॰) । सुकुमारि । सूर धन्य धरनी वृदावन रवितनया मुखकारि ।- रविवार-सज्ञा पुं० [ म० ] सप्ताह के सात दिनो या वारो मे से एक सूर (शब्द०)। जो सूर्य का वार माना जाता है और जो शनिवार के बाद तया रवितनुजा-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] यमुना । सोमवार के पहले पटता है। प्रादित्यवार । एतवार । उ०- रवितीर्थ-सञ्ज्ञा पु० [सं०] पुराणानुसार एक प्राचीन तीर्थ का नाम । फागुन वदि चौदम शुभ दिन श्री रविवार मुहायो।-सूर रविदिन-सञ्ज्ञा पुं० [स०] रविवार । एतवार । (शब्द०)। रविध्वज-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] दिन । दिवस [को०] । रविवासर-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] रविवार । एतवार । रविनद, विनंदन- सञ्ज्ञा पुं० [स० रविनन्द, रविनन्दन] १ कर्ण। रविश-सञ्चा सी० [फा०] १. गति । चाल । २ तौर | तरीका । उ०—गुरुहि नाइ सिर भैटि पुनि अति हित द्रोण कुमार । मग ढग। ३ क्यारियो के बीच मे चलने के लिये वना हुमा छोटा मह मिलि रविनदनहिं जात भए प्रागार ।-सवल (शब्द॰) । मार्ग। २ सुग्रीव । उ०-रविनदन जब मिले राम को घरु भेंटें क्रि० प्र०-फटना ।-काटना । हनुमान । अपनी बात कही उन हरि सों बालि बडो बलवान । रविसक्राति —सूर (शब्द॰) । ३. सावणि मनु । ४ 1- मशा स्त्री० [सं० रविसङ्क्रान्ति ] सूर्य का एक राशि में शनि । ६ यम । उ०—काहे को सोच फरे रसखानि कहा से दूसरी राशि मे जाना । सूर्यसक्रमण । विशेष दे० 'सफ्राति' । करिहै रविनद विचारो । ७. अश्विनीकुमार । रविसज्ञक–समा पुं० [सं०] तांबा । रविनदिनि, रविनदिनी-सहा सी० [ रविनन्दिनी] यमुना। रविसारथि-सज्ञा पुं० [सं०] मूर्य के सारथि । अरुण । २ अरुणोदय । उ०-विधि निषेधमय कलिमल हरनी। कर्मकथा रविनदिनि उप काल (को०)। घरनी।-तुलसी (शब्द॰) । रविसु दर-सपा पुं० [सं० रविसुन्दर ] वैद्यक मे एक प्रकार का रस रविनाथ-सज्ञा पुं० [सं०] १ पप | कमल । २ दुपहरिया का फूल । जो भगदर के लिये वहुत उपकारी माना जाता है। वधुजीव । बंधूक (को०)। रविसुअन-सशा पुं० [ स० रविसूनु ] १ सूर्य के पुत्र, मश्विनी- रविनेत्र-सज्ञा पुं॰ [स०] विष्णु [को०] । कुमार । उ०—कियौं रविसुअन मदन ऋतुपति किधों हरिहर वेप रविपुत्र-सधा पुं० [सं०] दे० 'रविनदन' । बनाए। —तुलसी (शन्द०)। २ दे० 'रविनदन' । रविसुत -सञ्ज्ञा पुं० [सं०] दे० 'रविनदन' । रविपूती-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० रवि+ हिं० पूत] ३० 'रविनदन' । रविसूनु- -मज्ञा पुं० [सं०] दे० 'रविनदन'। रविप्रिय–सझा पुं० [सं०] १. लाल कमल । २ तांबा । ३ लाल कनेर | ४ मदार । पाक । ५ लकुच या लकुट नामक फल या रवीपु-सज्ञा पुं० [सं० ] कामदेव । उसका वृक्ष । रवेया-सञ्ज्ञा पुं० [फा० रविश या रवा + ऐया (प्रत्य॰)] १ चलन । रविप्रिया-सज्ञा स्त्री॰ [स०] पुराणानुसार देवी की एक मूर्ति । चाल चलन । २ तौर तरीका । ढग । रविधि-सञ्ज्ञा पुं० [सं० रविधिम्य] १ सूर्य का महल । २ माणिक्य । यौ०-रग रवैया = रग टग | तौर तरीका । मानिक । रशना-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं०] १ जीभ । २ रस्सी । ३ करधनी। रविमडल-सज्ञा पुं० [स० रविमण्डल] वह लाल मंडल या गोला जो तागही। ४ लगाम । वल्गा (को०)। सुर्य के चारो ओर दिखाई देता है। रविविव । उ०—(क) रशनाकलाप-सचा पुं० [सं० ] धागे आदि की बनी हुई एक प्रकार सजात 'जयति रविमडल ग्रासफ ।-विश्राम की करधनी जो प्राचीन काल में स्त्रियां कमर में पहनती थीं। वैवस्वत मनु । ५ जयति वात