पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

770 रीहा ४९८१ रुकरा में रस्सियां बनती है। यह झाडी हिमालय और खासिया पहाटी सम्प्रा- पुं० [ ] प्राणक का चार्याश । एका पण या बना । पर होती है । इसे वनकाठकीरा या बनरीहा भी कहते है। मना घास-मग पी० [हिं० रूसा ] १. एक प्रकार की यात रोहा-राशा रवी० [हिं०] एक झाडी । दे० 'रीमा' । नुगधित घान जो तेल आदि वामन के काम प्रानी है। इस पास रंज-सज्ञा पु० [देश॰] एक प्रकार का बाजा । उ०—(क) र ज मुरज मे वासा हुया नेल। उफ झांझ झालरी या पखावज तार । -मूर (शब्द॰) । (ख) रुआना- क्रि० स० [हिं० रुलान) ] ३० 'मलाना' । रग मुरज डफ ताल बांसुरी झालर को झकार ।-मूर रुवाय-सा पुं० [अ० रोप्रय ] १. धार। सदया। गैर । २. (शब्द० ) भय । डर | सोफ। प्रातफ। रुड-सहा पुं० सं० रुण्ढ] १. बिना सिर का धड । करव । २. क्रि० प्र०-~-टोटना । छाना ।-वेटना !-बैठाना ।-मानना । विना हाथ पैर का शरीर । वह शरीर जिगके हाथ पर कटे हो । रुपाली |~ सा पी० [हिं० रूई+श्रालि ] दे० 'रप्रांती'। उ.-(क) जीय पारं नहिं पाछे घरही। रुडमुड गय मेदिनि रुई सग सी० [२०] एक प्रकार या छोटा पेठ । करही ।-तुलमी (शब्द०) । (ख) एडनि के मुड भूमि भूमि विशेप-यह पेड हिमालय की तराई में पाश्मीर ने पूर्व दिशा में मुफरिसे नाचे ममर मुमार सूर भारे रघुवीर के।-तुलमी हाता है । इसकी छाल और पत्तिया रंगाई के गाम में पाती है। ( शब्द०)। रुई-ममा पी० [हिं० ] दे० 'ई'। रुडिका-मजा पी० [सं० रुरिएका ] १ युद्धभूमि । ममरक्षेत्र । रुईदस्त-सहा पुं० फा० रू ? + दस्त (= हाय) ] गुस्ती मे पाती २ विभूति । ३ दरवाजे की चौखट (को०) । या वगन के पास से हाथ अहाकर निकालना । रुधनी-मया रसी० [ ने० अरुन्धती ] वशिष्ठ मुनि की स्त्री। उ०- रुईदार-वि० [हिं० रूईदार ] दे० 'ईदार' । रतनालिका सो रुचती सी रोहिणी सी रुचि रति सी रमा मी मुं० ] उदार । बहुत देनवाना [को०] । लसी अगन मे प्राइक ।- रघुराज (शब्द०)। रुकना-क्रि० प्र० [हिं० रोफ] १. मार्ग प्रादि न मिलने के कारण रंधना-क्रि० प्र० [सं० रुध, हिं०] 'रुंबना' । उ०-मिर तुहै रुध्यो ठहर जाना । पागे न वढ मकना । अवरुद्ध होना। घटरना । गयद कढ्यो कट्टाग।-पृ० रा०, ६१।२२६७ । जैसे,—(क) यहाँ पानी रुकता है। (म) राम्ना न मिलने की दवाना-क्रि० स० [हिं० रोदना का प्रेर० ] पैरो से कुचलवाना । वजह ने सर लोग एके है । २. अपनी इच्या गे ठहर जाना । रोदवाना । उ० - अब नहिं राखौ उठाइ वरी नहिं नान्हो । आगे न बढना । जैम,—(क) हम रास्ते में एक जगह एकना मारी गज ते रुंदाइ मनहि यह अनुमान्हो ।-मूर (शब्द०)। चाहते हैं । (स) यह गाटी हर स्टेशन पर रुकती है। सँधना-कि० अ० [स० रुद्ध+ना (प्रत्य॰)] १ मार्ग न मिनने के सयो० क्रि०-जाना ।—पदना । कारण अटकना । एकना। उलभता । फंग जाना । उ० ३. किसी कार्य मे पागे न चनना । किसी काम में मोच मिनार संधे रति राग्राम नीके। एक ते एक रणनीर जोया प्रयल मुरत या पागा पाया फरना । जैसे,--में पुर निश्चय ही कर नहि नेक प्रति मबल जी का-सूर (शन्द०)। ३ किमी काम मे सकता, मो में का हूं, नहीं तो कम गा दावा कर पुरा लगना। ४ रोक या रक्षा के लिये कांटेदार झाटो प्रादि से होता। ४ किमी कार्य का चीच में ही बंद हो जाना। घिरना या छाना। घेग जाना। जैसे-रास्ता रंघना, काल भागे न होना । जंग,-(क) गपए के बिना सर काम रु. । () हा साल विवाह को गा तेयागे हो गुरी @-अव्य० [हिं० अर का सक्षिप्त रूप] और । उ०—(क) हम धी, पर लडकी मर जाने से विवाह कर गया। ५ दिनी हारी के ग हहा पायन पर्यो प्योर । लेहु पास अजहूं किए तेह चलते प्रम का बद होना । निलगिला मागे न पलना । जंग- तरेरे त्योर ।- विहारी (शब्द॰) । (ख) मवत् भुज त निधि मही मधुमाम रु गित पच्छ । शनिवासर शुभ पचगी जिन्हो ग्रथ सयोमिल-जाना। प्रतच्य। -मनालाल (शब्द॰) । ६ वीर्यपात न होने दला । पालन न सा (वाजा)। रु-संक्षा पुं० [सं०] १ शब्द । २ वय । ३ गति । ४ काटना । रुकमंगद-नापु० [20 रपमा जय ] २० मांगर'। अलग करना (को०)। ५. भय । खतरा (को॰) । रकमजनी-11 [ म. सामाननी] १. एर प्ररारा पौधा रुश्रॉली-सा पी० [++पालि ] ई को बनी हुई ए7 प्रकार जा चागो में जापट निरा गाया जा है। इन पौ: को पोली बत्ती या पूनी जो स्त्रियां चरगे पर सूत कातने के लिये एक मिनी पर गपेट कर बताती हैं। पूना । पौनी । फमिनी- [ 20 रफिमसी ] श्रीमान को । रापा-सा • [० रोम ] शरीर पर के छोटे बोटे बा। विग - Trarji's रोम । रोया। र रा!-- 1. माना। रोत रंधना। वाह राना। ८-५२