पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४३५

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GO स० रुह , रुह-वि० [ शंगु ४१६४ सड दक्षता। जानकारी। महारत । ३ पम । २ व्यरहार । मेल- स्शगु-सञ्ज्ञा पु० [सं० रशद्ध ] एक प्राचीन ऋपि वा नाम जो नृपगु भी कहे जाते थे। जोल चिो०)। रुशद्गु-सा पु० ] दे० 'रुशगु' । रुसम-सज्ञा पुं० [अ० रसूम ] रे० 'राम' । रुशना-रज्ञा स्त्री० [ मं० ] भागवत के अनुसार रुद्र की एक पत्नी कस्ट ५-वि० [ म० रष्ट ] 20 'रष्ट'। कानमा रुस्तगी-मशा सी० [फा०] उपज । उगाय कि०] । स्प-सज्ञा सी० [म. ] दे० 'त्या' (को०। सस्तनी-सला पी० [फा०] १ शाक । तरकारी। म जी । २ रुप-सज्ञा पुं॰ [ म० ] क्रोध । गुम्मा। उ०-दत्य होहु ऋपि सम्प भूमि, वीज आदि जो उग्जने वा उगने के काबिल हो ।को०] । बखाना । - गिग्वर (शब्द॰) । रुस्तम-पग पुं० [अ०] १ फारम का एक प्रसिद्ध प्राचीन रुपा -सइ' पु [हिं० रुख ] दे० 'रुख' । पहलवान । रुपा-सज्ञा सी० स० ] क्रोध । कोप । गुस्सा। विशेप इसकी गणना नगार के बहुत बडे बडे पहलवानो मे रुपान्वित वि० [स० ] क्रुद्ध । क्रोधयुक्त । होती है। मोहराव और रस्तम की लडाई की कहानी मशहूर है। फिन्दौसी ने हस्तम का उल्लेख अपने शाहनामा मे किया है। रुपित-वि० [ स०] १ क्रुद्व । नाराज । २ रजीदा । दु खी। इनका समय ईमा सजगभग नौ मौ वर्ष पहले माना जाता है। रुपसरल-सज्ञा पु० [स० पीश्वर ] पिनष्ठ। ऋषीश्वर । उ०-पालकाव्य लघु वेस रहत एक तहां रुपेसर । -पृ. मुहा०-रस्तम का माला = बहुत बड़ा वीर । यत बहादुर । (व्यग्य) । रा, २६।६। २ वह जो बहुत यदा वीर हो । रुष्कर-सञ्ज्ञा पु० [ स० ] १ भिलावां । २ कस्तूरी बूटी । नेपरी। रुष्ट-वि० [म०] जिसे रोप हुया हो। वृद्ध। अप्रमन्न । नाराज । मुहा० छिपा रन्तम = वह जो देखने मे मीचा नादा पर वास्तव में किसी काम में बहुत वीर हो। कुपित । रुपित । ] जात । उत्पन । रुष्टता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०, रुष्ट होने का भाव । नाराजगी । अप्रसन्नता । रुष्ठ पुष्ट-वि[ स० हृष्टपुष्ट ] दे० 'हृष्टपुष्ट' । विशप-यह शब्द प्राय यौगिक शब्दो मे अत मे पाता है। जैसे- रुष्टि-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० ] कोप । क्रोध । गुस्मा । महीरह , पकरह। रुहरू-सा पुं० [ स० ] घेद । नूरास । रुसना-क्रि० अ० [हिं० रूसना ] दे० 'रूसना' । रुहठि 91-सश सी० [हिं० रोहट (= रोना)] ब्छने की क्रिया रुसना-क्रि० स० एठाना । रुष्ट करना । नाराज करना। उ०- या भाव । उ०-महठि कर तासो को खेल रहे पौटि जह नददास प्रनु ऐभी काहे का रुसए बलि जाके मुस देखे ते मिटत तह सब पयाँ ।-सूर (शब्द॰) । दुख ददा ।-नद० ग०, पृ० ३६६ । रुहा-सा सी० [सं०] १ दूब । २ ककही। अतिबला । रुसना-वि० [ वि० सी० रुसनी ] रूसनेवाला। रुष्ट होनेवाला । मासरोहिणो नाम को लना । ४ लजालू । लज्जावती। जैसे,—रुसना स्वभाव । रहिर-सज्ञा पुं॰ [सं० रुधिर, प्रा० गहिर ] लहू । रक्त । खून । रुसनाईल [हिं० रोशनाई ] उ०-रुहिर सुजइ जो जा कह वाता। भोजन बिन भोजन प्रकाश । आमा । उ०-कचन नगन परा सव जोबन सग लिए रुसनाई ।-अकवरी०, पृ० ३३१ । २ मुख राता ।—जायसी (शब्द॰) । कोति । यश। उ०-जे जन ऐमी करी कमाई। तिनकी रुहीर ५-राज्ञा पुं० [ प्रा० रुहिर ] दे० 'रुहिर'। उ०-चलं घर फैली जग रुसनाई।-कवीर सा० स०, पृ० ६० । पूर रुहीर प्रवाह । -पृ० रा०, ६१११४७९। रुसवो वि० [फा०] जिसकी वहुत रह लखड-सज्ञा पु० [हिं० रहेल + स० खण्ड ] अवय के उत्तर- बदनामी हो। निदित । पश्चिम पडनेवाला प्रदेश जहाँ रहेले पठान बसे थे । जलील । लालित। रुसवाई- -सज्ञा सी० [फा०] रुसवा होने का भाव । अपमान और रुहला-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० रुहेलखष्ट ] पठानो को एक जाति जो प्राय रुहेलसह मे बसी हुई है। दुर्गति । कुत्सा और निंदा । जिल्लत । उख-सज्ञा पु० [हिं० रूख ] दे० 'रूख' । रुसा' -सचा स्त्री॰ [ रोहिप] दे० 'रूमा' । खड़'-सज्ञा पुं० [हिं० स्सा ] एक प्रकार के भिक्षुक जो दरियाई रुसा-सशा पुं० [ स० रुपक ] दे० 'अडूसा। नारियल का खपर लेकर 'मलख' कहकर भीख मांगते हैं ससित-वि० [स० रुपित ] रुष्ट । अप्रसन्न । नाराज । उ०- और कमर मे एक वडा सा धुंघरू बांधे रहते हैं । गरुडासन पै करत रुमित हासन भरि गाँसन । ज्वलित हुतासन विशप-इनका एक और भेद होता है जो गूदड कहलाता है । सरिस भरत परकासन श्रासन ।-गोपाल (शब्द०)। ये कही अडकर भिक्षा नहीं मांगते, केवल तीन बार 'अलख' रुसख-सज्ञा ० [अ० रुसूख ] १ प्रवेश । पहुंच । पैठ । रसाई । कहकर ही आगे बढ़ जाते हैं। ० m खो० १ चमक। सभ स०