पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४३९

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रूप ४१६८ रूपकातिशयोक्ति मुहा०- रूप हरना = लज्जित करना। उ०-दीपसम दीपति रूपक-मशा पुं० [ स० ] १ मूर्ति । प्रनिति । ३०-वाहुनता उदीपति अनूप निज रूप के सरूप रति रूहि हरति है। रति कठ विराजन केशव प को पक जो है ।-केशव - व्य ग्यार्थ (शब्द०)। (गन्द०)। २ यह राव्य जो पात्रों द्वारा नेला जाता है या जिसका प्रभाय लिया जाता है। दस्यकान्य । यौ० - रूपरेख, रूपरेना = (१) चिह। उ०-कहा कर्ग नीके करि हरि को रूपरेख नहिं पावति ।-मुर (शब्द०)। (२) विशप-इसके प्रधान दन भेद , जिन्ह नाटक, प्रकरण, माण, पता । निशान। व्यायोग, नमवार, रिम, ईमामा, मन, वीवी और प्रह्मन ४ शरीर । देह । 30 (क) मसक समान रूप कपि धरी । लका कहते हैं। इसके अतिरित नाटिका, नोटर, गोठी, मट्टरु, चले सुमिरि नरहरी।-तुलसी (शब्द॰) । (ख) जस जस नाटयगगर, प्रस्थाा, उसावर, पाच, प्रेगग, गमक, सुरसा बदन बढावा। तासु दून कपि रूप देसावा ।—तुलसी मलापक, श्रीगदिन, गिल्पक, किनमिया, दुर्मनिका, प्रकरणी, (शब्द०)। हल्लीश गौर भाण को उमरा कहते है। विमेन 'नाटक' । क्रि० प्र०-धारण करना ।-बनाना।—होना । ३ एक अर्यालकार निममें अमेय में समान के नापर्य फा मुहा०—रुप लेना = रूप धारण करना। देह धरना । उ०- पागेप करके उसका न उपमान के ~ ने या गभेदम्प किया जाता है। पाले पृथु को रूप हरि लीनो नाना रस दुहि काढे । तापर रचना रची विधाता बहु बिधि यत्नन वाढे। —सूर (शब्द०)। विशप-पक दो प्रकार का होता है-नदप भोर अभेद । ५ वेप । भेप । उ०—डीठ बचाय के जाइए फत छए निज रावरो जिसमे उपमेय का वर्णन उपमान रूप ने हाता है उने तद्रप रूप बने हैं ।-रघुनाथ (जन्द०)। (ख) विप्र रूप धरि कपि सक, पौर जिसमे दोनो को अभेदता का वर्णन हाता है, तह गयउ । माथ नाइ पूछत अस भयज ।-तु नसी (शब्द॰) । उमे पद म्पक कहते है। मह में प्रारत, स्वभाव और क्रि० प्र०—करना ।-धरना ।—बनाना। शील का अभेद और तद्र पता दिखाई जाती है । तद्रप का उ०-रच्यौ विधाता दुहुन ले निगरी शोभा नाज। तू तु दरि मुहा०-रूप भरना = (१) भेस बनाना। वेप धारण करना । जैसे,—वह बहुरूपिया अच्छा रूप भरता है। (२) स्वांग शचि दूसरी यह दूजो नुरगज। अभेद का उ०-नारि कुमुदनी अवघ सर रघुबर विरह दिनेश । भस्त भए विकसित रचना | मजाक या तमाशा खडा करना। भई निरखि राम राकेश । ६ दशा। अवस्था। देश काल का भेद । ७ शब्द या वर्ण का स्वरूप या उसका वह रूपातर जो उममे विभक्ति, प्रत्यय ४ एक परिमाण या नाम । तीन गुजा की तौल । ५ चांदो। ६ रपया। ७ मगीत मे मात मात्रापो का एक दोताला इत्यादि विकारो के लगने मे वन जाता है। क्रि० प्र०-लेना।-बनाना । विशेप-मे दो आघात और एक खाली होता है। इसमे पाली ८ समान । तुल्य । सहश । अनुरूप । उ०-बोलहु मुग्रा पियारे ताल पर ही नम होना है। जा यह दून मे बजाया जाता नाहीं । मोरे रूप कोक जग माहाँ । —जायमी (णब्द०)। ६ है, तब इपे तेरा कहते हैं। इसम दग का बोन इन प्रकार भेद । विकार । १० चिह्न । लक्षण । गाकार । जैसे,—-क) + + युरोप की लडाई भयंकर रूप धारण करती जाती थी। (ख। है-चा दिना तेटेका गदिशेने धा। और तबले या बोल इस उसकी बीमारी का रूप अच्छा नही है। उ०-उपमा ही के रूप से मित्यो बररिण को रूप । ताही मो सच कहत है केशव प्रकार है- धिन घा, घिन घा, तिन् तिन् ता । था। रूपक रूप-केशव (शब्द०)। ११ रूपक । १२ चांदी। यौ-रूपक ताल = दे० '८-७।' सकनृत्य = एक प्रकार रूपा। उ०—(क) कहाँ मो खोयो विरवा लोना। जेहि ते का नृत्य वा नाच रूपाक = रूपक मनकार का एक भेद । होय रूप भी सोना ।—जायसी (शब्द )। (ख, सोन रूप रूपक व्द ताक्षणिक वा अनत कथा। मल भयो पसारा। धवल सिरी पोतहि घरबारा |-जायसी (शब्द०)। १३ श्वेत वर्ण (को०)। १४ सिक्का । जैसे-रुपया रूपकरण-सज्ञा पुं० [सं० रूप+करण ] एक प्रकार का घोडा । (को०)। १५ गणित मे एक की सम्या (को०)। १६ मृग । उ०-किरमिज नुकरा जरदे भले । रूपकरण बोलसर चले।- हिरन (को०) । १७ पशु । जानवर (को०)। १८ पशुप्रो का जायसी (शन्द०)। मुड । पशुममूह (को०)। रूपकर्ता-सज्ञा ० [स०] १ विश्वकर्मा । २ मूर्तिकार । रूप-वि० १ रूपवाला । रूपवान । खूबसूरत । उ०—पमय समय शिल्पी (को०)। मु दर सबै रूप कुरूप न कोई। मन की रुचि जेती जिते तित रूपकातिशयोक्ति- सशा सी० [म० ] एक प्रकार की अतिशयोक्ति तिती रुचि होड-बिहारी (शब्द०)। २ समान । तद्रप । जिसमे केवल उपगान का उल्लेख कके उपमेयो का अर्थ अनुरूप । उ०—पारस रूपी जीव है लोह रूप ससार । पारस समझाया जाता है उ.-पनक लता पर व द्रमा घरे अनुप ते पारस भया परख भया टकसार ।-कवीर (शब्द॰) । द्व वारण। ताल। २ T