पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५५१

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लेइ लेखनीय लेह-अव्य० [सं० लग्न, हिं० लगि ] तक । पर्यंत । काना । वमन करना । के मारना । ६ प्रौपध द्वारा रमादि लेई-सशा सी० [ सं० लेहिन्, लेही या लेह्य ] १ पानी मे सप्त धातुपो या वात प्रादि दोपो का गोपण करके पतला घुले हुए किसी चूर्ण को गाढ़ा करके बनाया हुमा लमीला पदार्थ करना। ७ इस काम के लिये उपयुक्त प्रोगय । ८ शल्य जिसे उंगली से उठाकर चाट सकें। अवलेह । २ प्रांटे को क्रिया मे काटना, चोरना या ग्वरोचना (को०)। ६ इम काम में भूनकर उसमे शरवत मिलाकर गाढा किया हुप्रा पदार्थ जो प्रयुक्त होनेवाला प्रौजार प्रादि (फो०)। १० एक प्रकार का खाया जाता है। लपसी। मरांडा या नरमल जिसकी कलम बनाते हैं (को०) । ११ मोज- यौ०-लेई पूंजी = सारी जमा । सर्वस्व । पत्र का वृक्ष (को०)। १२ भोजपत्र या ताठपत्र, जिमपर ३. घुला हुआ घाटा जो प्राग पर पकाकर गाढा और लसदार प्राचीन काल में लिया जाता था । १३ खामो। १४ उद्दीपन । क्यिा गया हा और जो कागज आदि चिपकाने के काम में उत्तेजन (फो०)। आवे । ४ सुरसी मिला हुआ वरी का चूना जो गाढा घाला लेखन' - वि० [सं०] १ पुरचनेवाला । २ दीप्त करनेवाला। जाता है और ईटा की जोडाई मे काम प्राता है। उत्तेजक (को०)। लेक्चर-सझा पुं० [अ० ] व्याख्यान । वक्तृता । लेखनवस्ति-सञ्ज्ञा ली० [सं०] रमादि मत पातु या वातादि ग्रिदोष और वमन इत्यादि को पतला कर देनेवाती पिचकारी क्रि० प्र-देना। लेसनसाधन-ससा पुं० [ मे० ] दे० 'लेपमाधन' [को०] । मुहा०-लेक्चर झाडना = धूमधाम से व्याख्यान देना । (व्यग्य) लेक्चरवाजो-सचा स्त्री० [अ० लेक्चर + फा० बाजी ] । १ खूब लेसनहार-वि० [हिं० लेसन + हार ] लिगने का काम करने- लेक्चर देने की क्रिया। २ बकवास | बकबक । वाला । जो लिखता हो । लेखक । लेक्चरर--सज्ञा पुं० [अ०] १ वह जो लेक्चर देता हो । व्याख्याता । लेखना-क्रि० स० [ म० लेपन ] १ अक्षर या चित्र बनाना । २ उपप्राध्यापक [को०] । लिखना । 30-कुदन लीफ कमोटी मे लेखी गी देखी मुनारि सुनारि सलोनी।- देव (शब्द०)। २. हिसाव, राख्या या लेख-सशा पुं० [स०] १ लिखे हुए अक्षर । लिपि । २ लिखी परिमाण प्रादि निश्चित करना । गिनती करना । हुई बात। ३ लिखावट । लिखाई। लेखा। हिसाव किताब । उ० – गुन पौगुन विधि पूछव होइहि लेख पउ यो०-लेखना जोसना = (१) नाप, तौल या गिनती करके मरया जोख ।जायसी ( शब्द०)। ५ पक्ति । लकीर । रेखा । ६ या परिमाण आदि निश्चित करना। ठीक ठीक प्रदान करना। पत्र । चीठी (को०)। ७ देव । देवता । उ०-चढे विमानन लेस हिसाब करना । (२) जांच करना। परीक्षा करना । उ०- प्रलेखन वर्षहिं मुदित प्रसूना।-रघुराज ( शब्द०)। लेखे जावे चोचे चित तुलमी स्वारथ हित, नोके देखें देवता लेख-वि० १ लेश्य । लिखने योग्य । २ लेसा करन योग्य । देवया घने गथ के ।- तुलगी ( शन्द०)। हिमाव के लायक । ३ मन ही मन ठहराना । समझना। मोचना। विचारना । लेख- सशा पी० [हिं० लीक ] लकीर । पक्की बात । उ०-विश्व- मानना । उ०-(क) ही माहि प्रापन दरपन लेगी। करौं भर श्रीपति त्रिभुवनपति वेद विदित यह लेख । -तुलसी सिंगार भोर मुग्व देखीं।- जायसी ( गन्द०)। (ब) जे जे तव ( शब्द० सूर मुभट कीट सम न लेखों-मुर ( भन्द. सौमित्रि राम छवि देसहि । साधन माल सफल करि लेसहि । लेखक-सपा पुं० [ स० ] [ स्त्री० लेखिका ] १ जो किसी चात को -तुलसी ( शन्द०)। अक्षरो मे उतारे। लिखनेवाला। लिपिकार। लिपिक । २ चित्र लिखनवाला। चित्रकार (को०)। ३ किसी विषय पर लेखनिक- पु. [ सं०] १ पत्रवाहक । २ वह जो लिखना लिखकर अपने विचार प्रकट करनेवाला । लेख लिखनेवाला। पढना न जानता हो। वह जो अपने बदले किसी को प्रतिनिधि प्रथकार । जैसे-इस पुस्तक का बनाकर अधिकारपत्र लिखावे। ३ लिखक। लिसनवाला। लेखक कौन है ? ३ नकल उता नेवाला (को०] । एक प्रत का नाम । उ०-लेखक कहता वात विचारी। बाम्हन सुन अपराध हमारी।-सवल० (शब्द०)। लेखनिका-सा स्त्री॰ [सं०] १ कलम | लेखनी । २ तूलिका । चित्र लिसने को पलम का । यौ०-लेखफदोप, लेखकप्रमाद = लेखक की लिसने मे त्रुटि । लिखनेवाले की भूल या प्रमाद । लेखनी-सहा सो [ सं०] १ वह वस्तु जिससे लिखें या अक्षर बनावें। वणेतल्किा। कलम । लिखनी। फाँटेन पेन । २ लेखन - मशा पु० [सं०] [वि० लेखनीय, लेख्य J१ लिखने का कार्य । अक्षरविन्यास । अक्षर बनाना।२ लिखने की कला चमचा । फलछो (को०)। या विद्या । ३ चित्र बनाना। उ०~जल विनु तरग, भीति मुहा० - लेखनी उठानालिखना भारभ करना। बिनु लेखन विनु चेतहि चतुराई । —सूर (शब्द०)। ४ लेखनीय-वि० [सं०] १ लिखने, खीचन या चित्र बनाने के योग्य । हिसाव करना। लेखा लगाना । कूतना। ५. छर्दन । उलटी २ जिससे घटाया या पतला किया जा सके (को०)। 1 )। (ग) सिय