पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लोमवाही ४३३५ लोरी लोमडी (को०)। HO लोमवाही-वि० [सं० लोमवाहिन् ] १. पंखवाला। २. रोएंदार । लोमा-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] वचा । बचे । ३ तेज धारवाला [को०] । लोमाइ-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] जूं की एक जाति (को०] । लोमविष-वि० [सं० ] (पशु) जिसके रोएं मे विप होता है [को०] । लोमालि-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० छाती से नाभि तक उगे घने रोएं। लोमविप-सज्ञा पुं० व्याघ्र । बाघ । रोमावली [को०] । लोमश -सज्ञा पुं० [सं०] १ एक ऋषि का नाम । लोमालिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० ] लोमडी (को॰] । विशेष-पुराणो मे इनको अमर कहा गया है। महाभारत के लोमाली-तज्ञा स्त्री० [ स० ] दे० 'लोमालि' । अनुसार ये युधिष्ठिर के साथ तीर्थयात्रा को गए थे और उन्हें सव लोमावलि, लोमावली-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] दे० 'लोमालि' [को०] । तीर्थों का वृत्तात बतलाया था। लोमाश-सज्ञा पुं० [सं०] १ सियार । गीदड । २ नर लोमडी । २. मेप । मेढा । ३ एक पौधा । लोमाशिका-मज्ञा सी॰ [ स०] १ गोदडी। सियारिन । २ लोमश - वि० १. अधिक और बडे बडे रोएँवाला । झबरा । २ ऊनी । ऊन का (को०) । ३ वालो से भरा या ढका हुआ (को०)। लोया-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० लोक ] लोग। उ०—जहाँ प्रगट भूपण भनत ४ घास से ढका हुआ (को॰) । हेतु काज ते होय । सो विभावना औरऊ कहत सयाने लोय ।- लोमशकर्ण -सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] एक जानवर जो बिल या मांद में भूपण (शब्द०)। रहता है (को०] । लोय-सञ्ज्ञा पु० स० लोचन, हिं० लोयन ] आँख । नेत्र । नयन । लोमशकाडा-सज्ञा स्त्री० [ स० लोमशकाण्डा ] कर्कटी । ककडी। लोय-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० लव या लाव] लौ । लपट । ज्वाला । उ०- लोमशपणिनो - सज्ञा स्त्री० [सं० ] माषपर्णी नामक प्रोषधि । दुति निमल रत्न प्रदीप धरे बडी लोय सो पाखन पोरी लोमशपर्णी-सज्ञा स्त्री॰ [ ] दे० 'लोमशपणिनी'। जरे । -लक्ष्मण (शब्द०)। लोमशपुष्पक-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] सिरिस । शिरीप । लोय'–अव्य० [हिं० लौं ] तक । पर्यंत । लोमशमार्जार-स -सञ्ज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार की विल्ली जिसके बाल लोयनपुर-सज्ञा पुं॰ [सं० लोचन, ब्रा० लोयख ] आँख । उ०- कोमल होते हैं और जिससे मुश्क निकलता है। गंधमार्जार । जनक सुता तब उर धरि धीरा। नील नलिन लोयन भरि विशेष दे० 'गबिलाव'। नीरा ।—तुलसी (शब्द०)। पर्या०-पूतिक । मारजातक । सुगधी । मूत्रपातन । लोयन'-सञ्ज्ञा पुं० [ स० लावण्य ] लायण्य | सौंदर्य । लोमशा-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स०] १ वैदिक काल की एक स्त्री जो कई लोर-वि० [ मं० लोल ] १ लोल । चचल । उ०—यह वाणी कहत मत्रो की रचयिता मानी जाती है। २ काकजघा। मांसी । ही लजानी समुझि भई जिय और । सूरश्याम मुख निरखि चली ३ बच। ४ प्रतिवला। ५ कोछ । केवांच। ६ नीला घर आनंद लोचन लोर ।-सूर (शब्द॰) । २. उत्सुक । इच्छुक । कसीस । कसीस । ७ लोमडी (को०)। ८ शृगाली । सियारिन लोर'-संशा पुं० [सं० लोल ] १. कान का कुडल । २ लटकन । (को०) । ६ दुर्गा की एक अनुचरी या शाकिनी (को०)। ३ कान के नीचे का लटका हुअा भाग । लोलक । लोमशातन-ज्ञा पुं० [ स० ] हरताल । लोर'-सञ्ज्ञा पुं॰ [देशी या स० लोल (= अश्रु या हिं० लोण)] आँसू । लोमशो-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० ] एक वृक्ष (को॰] । उ.-बाल ढिग बैठारि ताको पोछि लोचन लोर । सुर प्रभु के लोमश्य-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] झबरापन। झबरे या घने लवे बालो बिरह व्याकुल सखी लखि मुख अोर । —सूर (शब्द०)। का होना (का० । लोरना-क्रि० अ० [सं० लोल ] १ चचल होना। २ लपकना । लोमस -सचा पु० [सं० लोमश ] दे० 'लोमश' । ललकना । उ०—पुनि उठि जागि देख मुकूर नारि ललचान प्रक लोमहर्प-स -सञ्ज्ञा पुं० [ ] रोमहर्ष । रोमाच [को०] । भरि लैन लोरै । सूर प्रभु भावती के सदा रस भरे नैन भरि भरि लोमहर्पक-वि० [ प्रिया रूप चोर ।-सूर (शब्द॰) । ३ लिपटना । उ०—लोरहिं ] रोगटे खड़े करनेवाला । रोमाचकारी (को०] । प्राइ भूमि तरु शाखाफल फूलन क भारा । नाना रग कुरग सग लोमहर्षण-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] १. पुराणों के अनुसार व्यास के एक एक चर सुढग अपारा ।-रघुराज (शब्द॰) । ४. झुकना। शष्य का नाम जो उग्रश्रवा के पुत्र थे। इन्ही को सूत कहते हैं । उ.-देव कर जोरि जोरि वदति सुरात लघु लोगान के लोरि २. रोमाच । लोरि पायन परति है। -देव (शब्द०)। ५ लोटना । उ०- लोमहर्षण -वि० ऐसा भीषण जिससे रोएँ खडे हो जायं। बहुत कलप लता से लता वृदन विलासे, झुके अजब किता से भूमि माधक भयानका लोरन के पासे हैं।-रघुराज (शब्द॰) । लोमहृत्-सञ्चा पुं० [ स० ] हरताल । लोमशातन (को०] । लोरवा-सशा पु० [दशा लोर+वा (प्रत्य०), पाम् । लोर । (पूरव)। लोमाच-सज्ञा पुं० [स० लोमाञ्च ] १. रोमाच । २. कोमल ऊन। लोरा-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० लोल] १. एक प्रकार का गीत जो स्त्रियां मुलायम ऊन (को०) । ३. दुम । पूंछ (को॰) । बच्चो को सुलाने के लिये गाती हैं। साथ ही वे बच्चे को गाद स० स०