सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लौटमहारा ४३४५ लौहबंध लौटनहारा@-वि० [हिं० लौटना + हारा ( प्रत्य॰)] लौटने, लौनहारी -सञ्ज्ञा पुं० [हिं० लौना + हार (प्रत्य॰)] [स्त्री॰ लौन- वापस होने या मुड जानेवाला । उ०-सांकरी खोर मे कांकरी हारिन ] खेत काटनेवाला । लोनी करनेवाला। की करि चोट चलो फिरि लौटनहारौ।-पद्माकर (शब्द॰) । लौना - सज्ञा पुं० [ सं० लूम या रोम ] वह रस्सी जिससे किसी पशु लौटना-क्रि० अ० [हिं० उलटना ] १ कही जाकर पुनः वहाँ से के एक अगले और एक पिछले पैर को एक साथ बांधते हैं, फिरना । वापस पाना । पलटना । उ०—(क) नख तें सिख लौं जिसमें खुला छोड देने पर भी वह दूर तक जा सके। लखि मोहन को तन लाडिली लोटन पीठ दई। कवि वेनी लोना -सक्षा पु० [ स० ज्वलन ] ईंधन । छबीले भरी अंकवारि पसारि भुजा करि नेहमई । यह गुज की माल कठोर अहो रहो मो छतियां गडि पोर भई । उचको लची लौना २-सञ्ज्ञा पु० [सं० लवन ] फसल काटने का काम । कटनी। चौंकी चकी मुख फेरि तरेरि बही अंखियाँ चितई। बेनी कटाई। लौनी। (शब्द०)। २ इधर से उधर मुंह फेरना । पीछे की ओर मुंह लौना-वि० [सं० लावण्य (= लोन ) ] [ वि० स्त्री० लोनी ] करना । उ०- ताही समय उठो धन घोर शोर दामिनी सी लावण्ययुक्त । सुदर । उ०-खेलत है हरि वागे बने जहां बैठी लागी लौटि श्याम धन उर सो लपकि के–केशव (शब्द०)। प्रिया रति तें प्रात लौनी। केशव (शब्द॰) । संयो क्रिक-जाना ।—पडना । लौनी '- सज्ञा स्त्री॰ [ हिं• लौना ] १ फसल की कटनी। कटाई । लौटना-क्रि० स० इधर से उधर करना । पलटना। उलटना । जैसे- २ वह कटा हुआ डठल जो अँकवार मे आवे | अंकोरा । डाबी। लहना। पुस्तक के पन्ने लौटना । (क्क०) । लौटपटा–समा पुं० [हिं० लौट + पटा ] १ दे० 'लोटपोट' । २. लौनी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० नवनीत ] नैनू । नवनीत । उ०—लौनी 'लहालोट'। कर आनन परसत हैं कछुक खाइ कछु लग्यो कपोलनि । कहि जन सूर कहाँ लों बरनों धन्य नद जीवन युग तोलनि । सूर लौटपौट-सञ्ज्ञा सी० [हिं० लौट+मनु० पोट ] १ दोरुखी छपाई। वह छपाई जिसमें दोनों ओर एक से बेल बूटे दिखाई पडें । (शब्द०)। वह छपाई जिसमे उलटा सीधा न हो। २ उलटने पलटने की लोमना- सञ्चा पु० [सं० लूम ] दे० 'लौना'। क्रिया। ३. दे० 'लोटपोट' । लोमनी-सज्ञा स्त्री० [हिं० लोना या लोनी ] १ दे० 'लौना' । २. लौटफेर-सञ्ज्ञा पुं॰ [ हिं० लौट + फेर ] इधर का उधर हो जाना । दे० 'लौनी' उलटफेर । हेर फेर । भारी परिवर्तन । लौरी-मज्ञा स्त्री॰ [ सं० लेह, हिं० लरू] बछिया । उ०—सो सुनि लौटान-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० लौटना ] लौटने की क्रिया या भाव । राधिका काँपि गई डरि दौरि के लौरिहिं सी लपटानी ।- सुधानिधि, पृ० ११६ । लौटाना-क्रि० स० [हि• लौटना का सक० रूप] १ फेरना । पलटाना । २ वापस करना। जैसे,—(क) यदि आप वहां लौल्य-सञ्ज्ञा पुं० सं०] १ अस्थिरता। चचल वृत्ति। २. जाये, तो उन्हे लौटाकर ला सकते हैं । (ख) अब आप ये मब उत्सुकता । उत्कट अभिलाषा | लालच [को॰] । पुस्तकें उन्हें लौटा दें। ३. किसी को उल्टे मुंह फेरना। वापस लौस-सज्ञा पुं॰ [फा० १ लिप्त होना। २ मिलावट | मिश्रण। करना। ४ ऊपर नीचे करना। जैसे,—कपडा लौटाना । ३ धब्बा । दाग [को०] । (क्व०)। लौह 1- सज्ञा पुं॰ [सं०] १ लोहा । २ शस्त्रास्त्र । ३ लाल बकरे लौटानी क्रि० वि० [हिं० लौटना ] लौटते समय । लौटती बार । का मास (को०)। लौड़ा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० लोल या हिं० लड ] पुरुष की मूद्रिय । लौह-वि० [सं० ] १. लोहे का बना हुआ । २ ताम्रनिर्मित । ३. लौद, लौदरा-सझा ० [सं० नव+डाली ] [ स्त्री० लौदही, तामडा । तांबे के रग का । लाल | ४ धातुनिर्मित (को०] । लौदरी ] अरहर प्रादि की नरम डाली जिससे छानी छाने का लौह -सशा स्त्री॰ [ ] १ तख्ती । २ पुस्तक का सफा | पृष्ठ । का काम लेते हैं । (दुप्राब या अतर्वेद)। पन्ना। पत्र। लौन' -सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० लवण ] नमक । लवण । उ०—(क) लौहकार–सशा पुं० [सं०] लोहार । कीन्हेहू को।टक जतन अव गहि काढे कौन | भी मनमोहन रूप लौहचारक-सज्ञा पुं० [स०] पुराणानुसार एक भीषण नरक का मिलि पानी मे को लौन ।—बिहारी (शब्द॰) । (ख) प्रीतम 4 चाख्यो दृगन रूप सलोने लौन । कहैं इश्क मैदान मे तो कहु लौहज-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १. मंडूर । २ लोहे का मोरचा । अचरज कौन |-रसनिधि (शब्द॰) । जग [को०] । लौन -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० लवन ] फसल की कटाई। लोनी । लौहबध-सचा पुं० [स० लोहबन्ध ] लोहे की बेड़ी या सिक्कड [को॰] । 1 प्रक नाम।