ममृण ३८३१ मरतान म० मसृण-वि०॥ ] जो रूखा या कडा न हो। चिकना और मुलायम। ममृणा-मज्ञा स्त्री॰ [ मं० ] अलसी [को०] । मसेवरा-सना पु० [हिं० माम+वरा (प्रत्य॰)] माम की बनी चीजें । जैस, कोफता, कवाव आदि । उ०--कीन्ह मसेवग मीझि रसोई। जो किछु सबै माँमु मां होई । —जायमी ( शन्द०)। मसोढा '-नज्ञा पुं॰ [ दश०] मोना, चाँदी आदि गलाने की धरिया। (कुमाऊ)। मसोढा-रज्ञा पु० [हिं०] दे० 'ममृढा' । मसोस-सज्ञा पुं० [हिं० मसूपन ] दे० 'ममूम' । उ०-हारे उपाय कहा करी, हाय भरी किहि भाय ममोम यौं मार ।-घनानद, पृ० १५६। मसोसना कि० अ० [हिं० मसोस + ना (प्रन्य०) ] द० 'ममूगना' । मसोसा -मशा पु० [हिं० मसोसना ] १ मानसिक दुख । मन मे होनेवाला रज। २ पश्चात्ताप । पछतावा । मसोदा-सञ्चा पु० [अ० मसन्धिदा ] १ काट छांट करने दोहराने और साफ करने के उद्देश्य से पहली बार लिखा हुया लेग्य । खर्रा । ममविदा । २ उपाय । युक्ति । तरकीव । महा-मसौदा गांठना या वाँधना = कोई काम करने की युक्ति या उपाय मोचना । तरकीव सोचना । यौ०-मसौदानवीस = मसौदा तैयार करनेवाला । मसौदेवाज । मसौदेबाज-सज्ञा पु० [अ० मसौदा+ फा० बाज (प्रत्य॰)] १ वह जो अच्छा उपाय निकालता हा । अच्छी युक्ति सोचनेवाला । २ धूर्त चालाक । मस्कत --सज्ञा पुं० [अ० मस्कत ] १ अरव का एक राज्य और उमका प्रधान नगर । २ उक्त राज्य का अनार (को०] । मस्कर-सा पु० [ म० ] १ वश । वाँम । २ पोला बाँस । ३ गति । ४ जान । मस्करा-नशा पु० [हिं ] दे० 'मसखरा' । मस्करो'-सञ्ज्ञा पुं० [२० मस्करिन् ] १ वह जो चौथे श्राश्रम मे हो। मन्यामी २ भिक्षु । ३. चद्रमा। मस्करी -संज्ञा स्त्री॰ [हिं० ] ३० मिमसरी' । मस्कला-सशा पु० [अ० मपकला ] द० 'मसकला' । उ०- गव्द मस्कला कर ज्ञान का कुर्रड चलावै ।-पलटू०, पृ. २ । मस्का-सञ्ज्ञा पुं० [अ० फा० मस्कह ] १. मक्खन । नवनीत २. मस्त दिसने लगी ऐव ते । हुई मस्वरागा वडी गव ते । -दविखनी०, पृ०६०। मस्जिद-सज्ञा स्त्री० [अ० मसजिद, मस्जिद] दे० 'मर्माजद'। उ०- क्या भो वजू व मजन कीन्हे, क्या मस्जिद सिर नाए । हृदया कपट निमाज गुजार कह भी मक्का जाए । —कबीर (शब्द०) । मस्त' वि० [फा० । मि० म० मत ] १. जो नगे आदि के कारण मत्त हो। मतवाला। मदोन्मत्त । जैसे,—वह दिन रात शराव मे मस्त रहता है। २ जिसे किसी बात का पता न लगता हो । जिमे किमी की चिंता या परवाह न होती हो। मदा प्रसन्न और निश्चित रहनेवाला। ३ जी अपनी पूरी जवानी पर आने के कारण प्रापे मे वाहर हो रहा हो । यौवनमद से भरा हुआ । जैसे, मस्त हाथी, मस्त औरत । ४ जिममे मद हो। मदपूर्ण । जैसे, मस्त आँखें। ५. परम प्रसन्न । मग्न । यानदिन । जसे,-वह अपने बालबच्चो में ही मस्त रहता है। अभिमानी। घमडी। जैम,-अाजकल के मजदूर मस्त हो रहे है। इनस काम लेना कुछ महज नही है । मस्त-वि० [म. ] उच्च । ऊंचा को०] । मस्त'-सज्ञा पु० [ म० ] उत्तमाग । मस्तक । सिर [को०] । यौ०-मरतदारु । मस्तमूलक । मस्तक-सञ्ज्ञा पुं० [ मं० ] मिर । उ०-मस्तक टीका काँध जनेऊ । कवि विश्राम पडित सहदेऊ ।—जायसी (शब्द॰) । यौ०-मस्तकावर = घिरोव्यथा । मस्तकमूलक = दे० 'मस्तमूलक' । मस्तकलुग = मस्तिष्क के चारो ओर की छोटी छोटी शिराएं। मस्तक्शूल = दे० 'मस्तकज्वर' | मस्तकस्नेह = दिमाग । मस्तकी-सज्ञा पो० [ अ०] 20 'मस्तगी'। मम्तगी-सज्ञा स्त्री० [अ० मस्तकी ] दवा के काम पानेवाला एक प्रकार का बढिया पीला गोद जिमे रूमी मस्तगी भी कहते हैं। विशेप-यह गोद भूमध्य मागर के आसपास के प्रदेशो मे होनेवाली एक प्रकार की सदावहार झाडी के तनो को पाटकर निकाला जाता है, और जो अपने उत्पत्तिस्थान 'रूम' के कारण प्राय 'रूमी मस्तगी' कहलाता है। यह गोद वानिश मे मिलाया जाता है और ओपधि रूप में भी काम पाता है। दांतो के अनेक रोगो मे यह बहुत उपकारी होता है। इससे दाँतो का हिनना, पोडा, दुर्गधि प्रादि दूर होती है। और भी कई रोगो मे इसका व्यवहार किया जाता है। मस्तदारु-सज्ञा पुं॰ [ मं० ] दवदारु का वृक्ष (को०) । मस्तमूलक-मा पु० [ ] गरदन [को०] । मस्तरी- सज्ञा स्त्री॰ [ मै० मन्त्रा] १ धातु गलाने की भट्ठी । ( शाहजहाँपुर)। मस्तान-वि० [फा० मस्तानद्द, ] दे० 'मस्ताना' । उ०-रमना रटि जेहि लागिगे चोख भयो मस्तान ।-सतवानी०, भा० १, पृ० १३४। 0 २० 'ममका'। मस्कुर: --मशा पु० [हि० ] दे० 'मसूढा' । मस्खरा-सचा पु० [अ० मस्सरह , हि० मसखरा ] द० 'मसखरा' । मस्खरागी-सक्षा पुं० [फा० मस्वरगी ] द० 'ममखरी' । उ०--वही ८-८
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/७२
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