पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१७४

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अचिकित्स्य ११३ अचेत! भ०० अच्युत खाली न जो कार्य अब र महाबल अचिकित्स्य-वि० [सं०] चिकित्सा के अयोग्य । जिमकी दवा न हो अचीतिया(+--वि० [सं० श्रचितित; प्रा० चतिय ] आकस्मिक । सके । असाध्य । असमावित । ३०--प्रावी खवर अचीतिय विसमै जैसी बत्त । अचिकीपु--वि० [सं०] न करने की इच्छावाला। काम न करने की --रा० रू०, पृ० ६२ । * इच्छावाला । कार्य में अनिच्छुक [को॰] । अचीता--वि० [सं० श्रचितित ] [ स्त्री० प्रचीती ! १ दिना सोचा अचिज्जq--मद्धा पुं० [ स ० आश्चर्य] अचरज । अचमा । उ०- ।। विचारा। ग्रसभावित । आकस्मिक 1 जिसका पहले से अनुमान सतपत्र पुत्त अचिज्ज सुहित न्यि तप्प लग्ग हुरे वच्छ भग्ग । न हो । २ अचित्य । जिसका अंदाजा न हो । बहुत । अधिक। | पृ० रा०, २५६१ । उ०---लिखी खवर जैसी इन बीती । परी मुलक पर घार अचीती !-लाल (शब्द०) । अचित्--मञ्ची पुं० [स०] १ जद प्रकृति । अचेतन । 'चित्’ का | अचीता । --वि० [ स० अचिन्त ] निश्चित । बेफिक्र । उ०—-सुनो उलटा । २. रामानुजाचार्य के अनुसार तीन पदार्थों में से एक । मेरे भीता सुख सोइए अचीता कहीं सीता सोधि ला” कहो विशेप--यह भोग्य, दृश्य, अचेतन स्वरूप, जडात्मक और भोग्यत्व सी मिलाऊँ राम को हृदयराम (शब्द०) । वि कार से युक्त माना जाता है। इसके भोग्य, भांगपिकरण अचीर-वि० [सं०] चीरबिहीन । वस्त्ररहित [को॰] । और भोगायन ये तीन प्रकार माने गए हैं । अचुवाना--क्रि० स० [हिं०] दे॰ 'अचवाना' । उ०---पुनि जल अचित्--वि० अचेतन । चेतनारहित । जड [को०] । शीतल अचुवावे । ती माहि सुगध मिलावै ।--सुदर० ग्र० अचित--वि० [म०] १ गया है प्रा। २. जो सोचा न गया हो । ३, भा० १, पृ० १३५ । जो किन्न न किया गया हो [को०] ।। अचूक"--वि० [सं० अच्युत अथवा स०अ = नही+प्रा०/चुक्कचूकना] अचितवन--चि० ( स० = नहीं + हि० चितवन ] चितवन रहित ।। १. जो न चूके। जो खाली न जाय । जो ठीक वैठे। जो अवश्य | निनिमेय । अपलक । फल दिखावे । जो अपना निर्दिष्ट कार्य अवश्य करे। उ०— वाँकी तैग कवीर की, अनी पुरै ६ टूक । मारे वीर महावली, अचित्त--वि० [सं०] १ विचार या ध्यान मे न आने योग्य । २. ऐसी मूठि अचूक ।--कवीर (शब्द॰) । २. निम्नत । जिसमें भूल बुद्धि रहित । अज्ञ। ३ अविचारित । जिसपर विचार न न हो । ठीक । भ्रमरहित । निश्चत पक्का । उ०——“वह किया गया हो। ४ चेतनारहित । अचेत (को॰] । समझता है कि जिस बात को सव लोग निम्रत कहते है वह अचित्ति---नद्या स्त्री० [सं०] ज्ञान का अभाव (को०] । अवश्य ही अचूक होगी ।--(शब्द०) ।। अचिन्न--वि० [सं०] १ जिसमें अलगाव या भेद न किया जा सके । अचूक’--क्रि० वि० १ सफाई से । पटुता से | कौशल से । उ०—-मैंदे '२ जो चित्र न हो । जो वहूरगा न हो [को०) । तहाँ एक अलवैली के अनोखे दृग सुदृग मिचावनी के पालन अचिय--क्रि० वि० [सं०] १ शीघ्र । जल्दी । २ थोडा ही समय हिवै हितै । नैसुक नवाइ वा घन्य धनि दूसरी को श्रीचका | पूर्व । कुछ काल पहले ( को०)। अचूक मुख चूमत चिर्त चिते पद्माकर ग्र०, पृ० ९५ । २ अचिर’--वि० १. थोड़े समय का । झणम्यायी। २. हाल का । ताजा । निश्चय । अवश्य । जरूर। उ०---जहाँ मुख मुक, राम राम ही " ३ नया [को०) ।। की कके जहाँ सवै सुखधूप तहाँ है अचूक जानकी --हृदयराम (शब्द॰) । अचिरज (५--संझी पुं० [हिं०] ३० 'अचरज' । उ०—ऐ परि याकी | अचेत'-- वि० [सं०] १ चेतनारहित । सज्ञाशून्य । बेसुध । वेहोश । नैम मुनहि जी । लाडिलि अचिरज नाहे रहे तो ।—नद० मूर्छित । २ व्याकुल । विह्वल । विकल। स ०---‘भी यह ऐसोई ग्र०, पृ० १३३ ।। समी, जहाँ सुखद दुखु देत । चैत चाँद की चाँदनी डारति किए अचिरता--संज्ञा स्त्री० [सं०1 अविर का माव । क्षणिकता। अचेत ।-विहारी र०, दो० ५१६ । ३ असावधान बेपरवाह । अचिरद्युति--सवी श्री० [सं०] क्षणप्रभा । बिजली ।। उ०--यह तन हरियर खेत, तरुनी हरिनी चर गई । अजहूँ चैत अचिरप्रभा--सी स्त्री॰ [सं०] विजली ।। अचेत, यह अधचरा वचाइ ले ।--सम्मन (शब्द०)। ४ अनअचिरप्रसूता--सा मो० [ सं० ] सद्य प्रसूता गौ । हाल की व्याई जॉन । बेखबर । उ०—-वृ दावन की वीथिन तक तकि रहत गाय को॰] । गुमान समेत । इन वातन पति पावत मोहन जानत होहू अचेत । अचिरभा--सच्चा झी० [मुं०] विद्युत् (को॰] । --सूर (शब्द०)। ५ नासमझे । मूढ । उ०----में पुनि निज गुरु अचिरम्---क्रि० वि० [सं०] दे० 'अचिरात् [को॰] । मन सुनी, कथा सु मूकरखेत । समुझी नहिं तसु बालपन तव अति अचिरमृत--वि० [सं०] कुछ समय पूर्व मृत [को०]। रहेउँ अचेत ।---तुलसी (शब्द०)। ७) ६ जड । उ०--(क) अचिररोचि---सृज्ञा स्त्री० [सं०] सौदामिनी । विजली [को०] । असम अचेत पखान प्रगट ले बनचर जल महू डारत ।---सुर अचिरोश--Hशा पुं० [सं०] विद्यन् । विशली [को॰] । (शब्द०) । (ख) कामातुर होत है सदा ही मतिहीन तिन्हें चेत ग्रचिरात्--क्रि० वि० [सं०] शीघ्र । जल्दी । तुरत । २ कुछ समय । शौ अचेत महि भेद कहाँ पावैगो १--लक्ष्मणसिंह (शब्द०)। पूर्व 1 कुछ पहले (को०), अचेत --सभा पुं० [ स० प्रचित् ] १. जड प्रकृति । जडत्व । २ ग्रचिरामा--सा श्री० [सं०] क्षणप्रभा । विजयी [को०] । माया । अज्ञान । उ०—कह लौं कहाँ अचेतै गयऊ । चेत अचेत अचिरेण--क्रि० वि० [सं०] १० 'अचिरात्' [को०] । झगर थक भयऊ ।----कवीर (शब्द०) । १५ ।