पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/२५६

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अनवट अनवस्थान अनवट -सज्ञा पु० [सं० मयन, हि० अपर+ोट या स० अध+पट अनवरोव-सज्ञा पु० अवरोध का अभाव [को०] । या देशी] कोल्हू के वैल की आँखो की पट्टी या ढक्कन । ढोका । अनवलव-वि० [स० अनवलम्ब] विना अवलव का। वेसहारा [को०)। अनवद्य-वि० [सं०] अनिद्य । निर्दोष । वेऐव। उ०—हमरे जान अनवलव-सा पु० स्वतंत्रता । अवलव का अभाव [को०] ।। सदासिव जोगी। अज अनवद्य अकाम अभोगी।- अनवलवन--वि० [स० अनवलम्वन] जिसे अवलव या सहारा न मानस, १६० । हो कि०] । अनवद्यत--सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] निर्दोषिता । दोष का अभाव । उ०— अनवलवन—सझा पु० स्वतंत्रता (फो०] ।। सत्य की अनवद्यता से आ गए विस्तार मे ।—बेला, पृ० ७४ ।। अनवलवित---वि० [स० अनवलम्यित ] अाश्रयहीन । निराधार । अनवद्यत्व--सज्ञा पुं॰ [ म० ] अनवद्यता [को०] । वेसहारी। अनवद्यरूप---सज्ञा पुं० [सं०] दोपरहित रूप । वह रूप जिसमे कोई । अनवलाप-वि० [सं०] वचन शुन्थ । मौन । उ०—हुए शीर्ण पो दोप न हो [को०] । खोकर, अनवलाप रो रोकर |----अर्चना, पृ० १४।। अनवद्यरूप--वि० [सं०] निर्दोष पवाला [को०] ।। अनवलेप--वि० [सं०] १ अभिमान शून्य । २ अवलेप या लेप | से रहित [को॰] । अनवद्याग--वि० [स० अनवद्याङ्ग] [स्त्री० अनवद्याङ्गो ] सुदर अगो अनवलोभन—सज्ञा पुं० [सं०] एक मस्कार जो गर्भ के तृतीय मास मे | ‘वाली । सुडौल । खूबसूरत । किया जाता है किो०] । अनवद्रोण--वि० [सं०] न सोनेवाला । अनिद्रित को॰] । अनवसर-सज्ञा पुं० [सं०] १ निरवकाश । फुरसत का न होना । अनवधर्म्य-वि० [सं०] जिसको घयत न किया जासके [को॰] । २ कुसमय । बेमौका । उ०--सोइ लका लखि अतिथि अनवमर अनवधान--संज्ञा पुं० [सं०] असावधानी । अमनोयोग । चित्तविक्षेप । राम तृनासर (सन) ज्यो दई ।—तुलसी ग०, पृ० ३८८ । प्रमाद । गफलत । बेपरवाही । ३ जसवत जसोभूपण के अनुसार वह काव्याल कार जिसमें अनवधानता---सज्ञा स्त्री० [सं०] ध्यानहीनता । लापरवाही । अमाव किसी कार्य का प्रनवसर होना या करना वर्णन किया जाय । घानी । गफत । उ०—उमने अनवधानता उस प्रश्न को अनवसादन- वि० सं०] अवसाद या विषाद न करनेवाला । उa-. टाल दिया |--ककाल, पृ० १४३ । | सहज रिमझिम वाद रिन रिन अनवसादन --गीतगृज, पृ०५८। अनवधि-वि० [सं०] असीम । बेहद। बहुत ज्यादा । अनवसान-वि० [सं०] १ अत से रहित । २ मृत्युहीन (को०] । अनवधि-क्रि० वि० निरतर । सदैव । हमेशा । अनवसित--वि० [ स०] १ असमाप्त । उ०—वह चली रालिला अनवन---वि० [सं०] अरक्षाकर । विपत्तिकारक [को॰] । अनवसित, ऊमजा जैसे उतारी ।—अर्चना, पृ० १०४ ।। अनवन-सज्ञा पुं० अरक्षा [को०] । २ जो अस्त न हुआ हो (को०)। अनवनामितवे जयत----संज्ञा पुं॰ [ स० अनवनामितवैजयन्त ] भावी अनवसितसधि—संज्ञा स्त्री॰ [ स० अनवसित सन्धि] जगन या ऊसर | विश्व जिसमे विजयध्वजा वरावर ऊँची रहेगी (बौद्ध) । जमीन वसाने के सवध मे दो पुरुषो या राष्ट्रों की सधि । अनवपूरण--वि० [म० ] असयुक्त पर चारो शोर फै नुनेवाला [को०] । श्रौपनिवेशिक स धि । अनवबुध्यमान-वि० [सं०] जो बुद्धिहीन या विकृत बुद्धिवाला न । विशेप-औपनिवेशिक सधि के विपय मे चाणक्य ने निया है कि हो कौ०] । यह प्राय विवादग्रस्त विपय है कि स्थलीय या जलप्राय भूमि में अनवभ्र- वि० [सं०] १ जो अक्षुण्ण हो । २ जो नश्वर न हो । उपनिवेश की दृष्टि से कौन सी भूमि उत्तम है । साधारणत जलप्राय भूमि ही उत्तम मानी जाती है। ३ स्थायी [को॰] । अनवसिता--सज्ञा स्त्री० [२०] एक छद या वृत्त [यौ०] । अनवम-वि० [स०] १ जो तुच्छ या क्षुद्र न हो । २ उदात्त ।। अनवस्थ--वि० [सं०] १ अस्थिर । चचन । उतावला। अधीर । श्रेष्ठ [को॰] । २ अव्यवस्थित । डावांडोल । अनवय)—सज्ञा पुं० [म० अन्वय ] वश । कुल । खानदान । अनवस्था—सज्ञा स्त्री० [सं०] १ स्थितिहीनता । अव्यवस्था । अनियअनवर–वि० [सं०] १ जो कनिष्ठ न हो । २ श्रेष्ठ । वडा । ३ जो मितता । उ०——यह अनवस्या युगन मिले से विकल व्यवम्था | न्यून न हो [को०] । सदा विखरती ।--कामायनी, पृ० २७१ । २ व्याकुलता । अनवरत--क्रि० वि० [सं० 1 निरतर। सतत । अजस्र । अनि । आतुरता । अधीरता । ३ न्याय में एक प्रकार का दो । सदैव । लगातार । हमेशा । उ०—अनवरत उठे कितनी विशेप---इस प्रकार का तर्क और अन्वेषण जिमका कुछ बोर उमगे |--कामायनी, पृ० १६४ । । छोर नै हो । यह उस समय होता है जब तर्क करते करते अनवरायं--वि० [सं०] १ मुख्य प्रधान । २ सर्वोत्तम [को०] । कुछ परिणाम न निकले और तर्क भी समाप्त न हो । जैसे अनवरोध-वि० [सं०] विना रोक या वाधा का । निरक्षर । कारण का कारण, उसका भी कारण, फिर उसका कारण । अवाध। उ०---सरस ज्ञान अनवरोध करता नर रुधिरपान ।-- अनवस्थान---सज्ञा पुं॰ [सं०] १ अस्थिरता । २ अनिश्चितता । गीतिका, पृ० १७० । ३. चिरणभ्रष्टता । ४ वायु [को०] २५