पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अश्य अख भर चाँदनी या ग्रोम में रख कर छान लिया जाय । वैद्यक अाँकना--क्रि० स० [सं० अ कन] चिह्नित करना । निशान लगाना । में इसका वडा गुण लिखा है । दागन । उ०—खिन खिने जीव सँडासन अका । श्रौ नित डोम आश्य--वि० [सं०] अश से मवध रखनेवाचा [को०] ।। छुप्रावहि बाँका ।--जायसी (शब्द॰) । २ कूनन। अदाज अ-प्रव्य ० [अनु॰] १ विस्मयसूचक शब्द, जैसे,—प्र, क्या करना । तखमीना करना। मूल्य लगाना । 'उ0-सन् १९५१ कहा ? फिर तो कहो । २ बालक के रोने के पशब्द का की पशुगणना के अनुसार राज्य में पशुधन से प्राप्त होनेवाले अनुकरण । पदार्थों का मूल्य २१ करोड रुपए का गया है ।-शुक न अभि० माँक-संज्ञा पुं० [सं० अक] १ अर्क । चिह्न । निशान । २ संख्या का ग्र ०, (विविध), पृ० १७ । ३ अनुमान करना। ठहराना । चिह्न । अदद । उ०—(क) तुलसी महीस देखे, दिन रजनीस निश्चित करना। उ०—प्राम को कहते अमली है अमली जैसे, सूने पर सून से मनो मिटाए झक के -तुलसी ग्र ०, पृ० को आम ग्राफ ही अनारन को अकिवो करति है । ३१८ । (ख) कहत सवै वेदी दिये कि दस गुन होत -- पद्माकर, ग्र० पृ० २१८ । विहारी र०, दो० २२७ । ३ अक्षर । हरफ। उ०-(क) अकवाँक संज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'अाक वाक' । उ०—जैसे कुछ प्रक विरह तचे उतरौ सु अव से हूड कैसो अकु ।-विहारी र०, बाँक वकत हैं। आजु हटि, तैसे जिन नाउँ मुख काई को दो० ४५७ । (ख) गुण पै अपार साधु, कहैं अकि चारि ही में निकसि जाइ ।-केशव ग्र०, पृ० ५३१ । अर्थ विस्तारि कविराज टकसार है ।-प्रिया० (शब्द॰) । ४. किम-सन्न पुं० [सं० अंक] ग्रनिगन । उ०-वाह वलय कम गढी हुई बात । ५ दृढ़ निश्चय । निश्चित सिद्धात । उ० भरे भाग, अपन अाइति नहि अापम अग -विद्यापति, जाउँ राम पहिं आएमु देहू । एकहि अकि मोर मन एहू - पृ० २०७ ।। मानस, २॥१७८ । (ख) एकहि अक इहइ मन माही । प्राप्त ८ आँकर-वि० [सं० आर्कर= खान, जो गहरी होती है] १ गहरा । कर'-वि० [सं० कर= खान, जो गहरी होती है काल चलिहौं प्रभु पाहीं ।—मानस, २॥१८३ । ६ अश । | ‘स्याह' या 'सेव' का उलटा । हिस्सा । उ ०-काम-सकल्प डर निरखि बहु वामनहि असि । विशेष—जोताई दो तरह की होती है-एक कर अर्थात् खूब नहि एकहू क निरवान की ।-नुलसी ग्र०, पृ० ५६३ । ७. गहरी (अँवाय) और दूसरी स्याह या सेव ।। किसी मनुष्य के नाम पर प्रसिद्ध वश, जैसे, वे बडे कुलीन हैं, २ वहुत अधिक । उ०—-मोहमद मात्यो त्यो कुमति कुनारि वे अमुक अक के हैं। ६ अँकवार। गोद। उ०—पीछे ते । सो विसारि वेद लोक लाज करो अचेतु है ।-तुलसी गहि लौकरी, गही अकि री फेरि ।-म० सप्तक, पृ० २४३ ।। मृहा-प्रक भरना = आलिंगन करना । उd-छीतस्वामी झाँकर---वि० [सं० पक्रय] महँगा। गिरिवरघर मगन भए कौं भरत, सुखे स्वाद इहै, समै को अाकलन-सा पु° ! सै० में फ, हि० अ क = दाग ] दागा हुआ कहत न बनि अवै ।-छीत०, पृ० ४१ ।। साँड ।--हिं०) । ६ भाग्य । उ०-एक को अक बनावत मेटत पोथिय काँख लिए अाँकुडा- सझा पु० [हिं०] दे० 'अकिडा' । दिन जैहैं ।-घनानंद (५०) पृ० ५३ । १० शान। उ०—कठिन कुर--संज्ञा पुं० [हिं०] पुं० प्रकुर' । उ०—क असा दीप काठियावार चुटीले के परिपोवे, चचल चपल चलकं वाकपन | मिझएन, मदन अकुर माँगु ।-विद्यापति, पृ० ३७ । अक अनोखे ।-रत्नाकर, भा० १, पृ० ११२ । ११ अँकुर। ऑकुस -पज्ञा पुं॰ [सं० अ.ग] दे० 'अकुश' । उ०-जोवन अस उ०–जोम्यो अकि अकार नेह दिन दिन वढत करम सदेह ! मैमत न कोई, नवै हस्ति जौ अकुन होई ।-नापी ग्र०, भीखा श०, पृ० ४७ । १२ नौ मात्रा के छ को मा । पृ० ७४ । अक । १३ छकडे या बैलगाडिपो की बनियो के नीचे दिया हैं ऑकू-वि० [सं० अ क, हि मां F+ऊ (१ य०) 1 प्रहने व झवने. लकडी को मजबूत ढाँचा जिसमे धुरी पहिए में पहनाई जाती है। " वाला। तब मीना करनेवाला । अकि - सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे॰ 'ख' । उ०—जितुवा है विन जिव आँव--सच्चा सौ० [सं० अकि, प्रा० अकिब, पृ० अक्ख] देखने की मै सुनता है बिन कान । देखता है बिन अकि मे, कादर बिन तन इद्रिय । वह इद्रिय जिनमे प्राणियो को रूा अर्थात् वर्णजाने ।-दक्खिनी॰, पृ० ३८५ । विस्तार तथा प्रकार का ज्ञान होता है । मकिडा-सा पुं० [सं० १ क, हि० अक+डा (प्रत्य॰)] १ अक। विशेष—मनुष्य के शरीर मे यह एक ऐसी इद्रिय है, जिसपर अदद । सखया का चिह्न । उ०—जनमपा से सबधित समस्स अ। लोक के द्वारा पदार्थों का विर विन जाता है । जो जीव अकड़े जनगणना १६५१ पर आधारित है।-शुक्न अमि० आरोह नियमानुसार अधिक उन्नत हैं, उन ही इद्रियो की बनावट १ ०, (विविध) पृ० २।। अधिक पेची नी और जटिल होती है पर क्षुद्र जीवो मै इनकी कडा+सझा पुं० [देश०]-चौपायो की एक बीमारी। वनवट बहुत मादी, कही कही नो एक विदी के रूप में होती ग्रौकडा—सझा पुं० [*० अर्क, हि० प्रकि+डा (प्रत्य॰)] मदार । है; उनपर रक्षा के लिये पलक श्रीर बनी हुन्यादि कि। बखेडा नहीं होगा। बहुत क्षुद जीवों में चक्षुरिटि :--- कन+---सझा पुं० [सं० अ+कण = दाना] ज्वार की वाल की खुडी सख्या नियत नहीं होती । शरीर के किसी जिसमे से दानां निकाल लिया गया हो। चांर, छः विदियाँ सी होती हैं जिनसे (शब्द०)। -