पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५००

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आतंकवादी अतिशजदगी अातंकवादी--वि० [म. आत+धादिन] जो राजनीतिक लक्ष्य की प्रतिपी.---वि० घूर का । घुप सवघी । | सिद्धि के लिये वल या अस्त्र शस्त्र में विश्वास रखता हो । आतपीय-वि० [सं०] सूर्यताप संवधी । वृषवाला [को०] । जैसे, आतंकवादी संघटन । तपोदक–सज्ञा पुं० [सं०] मृगतृष्णा । प्रातकित----वि० [सं० प्रातड़ित] भीत । अस्त । डरा हुअा। उ०— तम)---वि० [हिं०] दे० 'ग्राम' । उ०——ातम रूप सक ने घट | पशु फिरते सनद विहंगकुल मल के स्वर गाते । प्रतिकित । दरस्यो, उदय कियौ रवि ज्ञान 1-सूर०, २।३३। थे असुर, मनुज थे उत्सव पर्व मनाते । पार्वती०, पृ० ५४ । प्रातचन्- संज्ञा पुं० [सं० आतञ्चन] १ दूध को जमाने के लिये डाला शाम के के प्रातम -सा स्त्री० [हिं०] दे० 'आत्म' । उ०—एक प्रातम हम सभा का [ह°] दे॰ 'अात्म । उ जानेवाली जावन । जामन । २ संकुचित या संकीर्ण करनेवाला। तुम माही ।—सूर० ११ । ४ ।। पदार्थ या व्यक्ति । ३ दही । ४ जमाने का कारण । ५ जमने आतमक)---वि० [सं० आत्मक] दे॰ 'आरमक' । उ०--प्रथम में दूध का जलीय अश । ६ प्रेषक । ७ सतोपकारक या तोप मंगलचिरन को तीन भातमक जानि । नमस्कार अरु ध्यान कारक । ८ सकटे । विपत्ति। ६. वेग । गति । १०. घातुग्रो । पुनि, असिरबाद बखान ।—भिखारी, ग्र०, मा० १, पृ० १ । के मिश्रण में मयोजक तत्व । ११.स्थलकरण । मोटा करना आतमगामी -वि० [ स० आत्म +गामिन् ] आत्मविद् । उ०-- [को॰] । ज्ञान प्रतिमानिष्ठ गुनत यो प्रातमगामी, कृष्ण अनावृत परम प्रात -सच्ची पुं० [सं० तु] शरीफा । सीताफल । उ०—दिखा रहा। ग्रह्म परमातम स्वामी --नद० ग्र०, पृ० ४१ । था तरु | द मे खड। स्व आततायीपन, पेड आत का ।—प्रिय० श्रातमज्ञानपु–सच्चा पुं० [सं० आत्मज्ञान ] आत्मज्ञता । उ०प्र० १०५ । ताते श्रातमज्ञान धन पायो नाहि अजान ।--दीन० ग्र०, पृ० तत-वि० [सं०] १ चढा या चढाया हुश्रा । खिचा हुआ । फेला १५२ ।। हुग्रा ( धनुष या उसकी डोरी ) (को॰) । श्रीतमवादी--वि० [सं० आत्मवादिन् ] दे॰ 'अात्मवादी' । उ०— आततज्य–वि० [सं०] जिसके ज्या (धनुप की डोरी) ग्रातत ( चढी जै मुनिनायक प्रातमवादी --मानस ७ । ७० । या खिची) हो (को०) । आतमहन--वि० [ स० अात्महन् ] दे॰ 'आत्महन् । उ०---जो आतताई -सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'प्रतितायी' । उ०-वरनि वताई, न तर भवसागर नर समाज अस पाई । सी कृतनिंदक, मदछिति व्योम की तताई जेठ अायौ आतताई पुटपाक सौ करत मति अतिमहन् गति जाइ ।---नुलसी (शब्द॰) । है ।---कवित्त०, पृ० ५६ । प्रतिमा--सज्ञा स्त्री॰ [ स ० अात्मा ] ६० 'आत्मा' । उ०-समयआततायी--संज्ञा पुं० [ स० प्रतितायिन् ] [ स्त्री० आततायिनी ] १, सिंधु नाम-बोहित भजि निज अातमा न तात्यो ।—तुलसीअाग लगानेवाला । २ विप देनेवाला । ३ वधोद्यत शस्त्रधारी। ०, पृ० ५५६ ।। ४ जमीन छीन लेनेवाला । ५ धन हरनेवाला । ४ स्त्री हुरने | भ्रातर--सया पुं० [स०] नदी पार जाने का महसूल । नाव का भाड़ा। बाला । ७ शूर व्यक्ति । अत्याचारी । लोकपीडक । संताप । देनेवाला व्यक्ति । | उतराई ।। तन-संज्ञा पुं० [म ०] १ ताननी । फैलाना । विस्तृत करना । २ अतिर्द--मज्ञा पु० [सं०] छिद्र । सूराख (को०] दृश्य [को०] श्रतर्दन--संज्ञा पुं० [सं०] १ धक्का देकर खो नने का कार्य । २ तप---सज्ञा पुं॰ [सं०] [वि० ग्रातपी, शातप्त] १ धूप । घाम । छिद्र । छेद 1 सुराख [को०] । उ०- मृदुल मनोहर सुदर गाता । सहत दुसह वन प्रातप अतिर्पसा--सम्रा पुं० [स०] मागलिक लेपन । ऐपन । वाता ---मानस, ४। १ । २ गर्मी । उप्णता । ३ सूर्य का श्रातश--सज्ञा स्त्री॰ [फा०] अाग । अग्नि । उ०—प्रादि अत मन प्रकाशा । ४, ज्वर । बुखार । मध्य न होते, तश पवन न पानी । लख चौरासी जीव जंतु यौ०---आपलात । नहि, साखी शब्द न बानी ।---कवीर (शब्द०)। अतिपत्र, मतपत्रक-सज्ञा पुं० [सं०]छाती | छतरी । उ०—तपत्र यौ०--प्रतिशखाना । आतशजनी । आतशदान । आतशपरस्त । सा रुचिर शीश पर राजित जिनके व्योम वितान |--पार्वती, प्रतिशवाज । तशवाजी । । पृ० ३० । आतशक सच्चा ली० [फा०] [वि० प्रतिशकी] फिरग रोग । उपदश । प्रतिपन--संज्ञा पुं० [स०] शिव [को०] ।। गर्मी । प्रातपलघन-सया पुं० [स० प्रतिपलडघन ] सूर्य के ताप में से प्रातशखाना--सज्ञा पुं० [ फा० प्रतिशखाफन, ] १. अग्नि रखने का | गुजरना [को॰] । स्थान । वह स्थान जहाँ कमरा गर्म करने के लिये आग रखते तपात्यय--सज्ञा पुं० [स०] १ ग्रीष्म का बीतना । २ सूर्यास्त हैं । २ वह स्थान जहाँ पारसियो की अग्नि स्थापित हो ।। [को०] । अतिशगाह-सक्षा पु० [फा०] ६० प्रतिशखाना' । अातपाभाव-सज्ञा पु० [सं०] सूर्य के ताप का अभाव [को०] । आतशजदगी-सज्ञा स्त्री॰ [फा० अतिशजूदगी ] आग लगाने का तपी--संज्ञा पुं० [ भातपिन् । सूर्य काम करना [को०] ।