पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

आस्तिक ४६० अन्न आस्तिक-सझा पुं० वेद, ईश्वर और परलोक को माननेवाला पुरुप । स्नान-सज्ञा पुं० [सं०]१ पवित्रतः। २ धोने या नहीने का पानी [को०)। आस्तिकता--सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] वेद, ईश्वर और परलोक में विश्वास । आस्नेय--वि० [सं०] रक्तरंजित [को०] । आस्तिकत्व-सशी पुं० [सं०] दे॰ 'आस्तिकता' [को०]। मास्नेय-वि० मुख सवधी [को॰] । प्रास्तिकपन--सज्ञा पुं० [मे० आस्तिक + हि०पन] आस्तिकता । | आस्पद-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ स्थान । उ०—कोटि बार आश्चर्य का आस्तिक्य-सज्ञा पुं० [सं०] ईश्वर वेद और परलोक पर विश्वास । प्रास्पद है।-- पयामा०, पृ० ७१ । २. कार्य । कृय । ३ पद । २ जैन शास्त्रानुसार जिनप्रणीत सब भावो के अस्तित्व | प्रतिष्ठा ।४ अल्ल । वश । कुन्न । जाति । जैसे,—-श्राप कौन पर विश्वास । प्रास्पद हैं । ५. कुडली मे दसवाँ स्थान । । अस्तीक–सच्चा पु० [सं०] एक ऋषि का नाम जिन्होने जनमेजय के आस्पर्धा--सज्ञा स्त्री० [सं०] होडाहोडी । प्रतिस्पर्धा । लागडाट कौ] । सर्पसत्र में तक्षक के प्राण बचाए थे । ये जरत्कारु ऋषि और आस्पर्धी-वि० [स० अस्पधन[ होड लेनेवाला प्रतिस्पर्धी (को०] । वासुकि नाग की कन्या से उत्पन्न हुए थे। श्रास्फाल-सधा पु० [सं०] १ धक्का देना। २ रगडना ! ३ धीरे आस्तीन-सज्ञा स्त्री॰ [फा०] पहनने के कपड़े का वह भाग जो बह। धीरे हिलाना । ४ हायी का कान फडफडना (को०] । को ढुकता है। वाहीं । अस्फालन--सज्ञा पुं० [स] झटका। धक्का देना। झपटना । उ०-~-- मुहा०—-शास्तीन को सांप = वह व्यक्ति जो मित्र होकर शत्रुता । अपूर्व प्रास्फालन साथ श्याम नै । अतीव लवी वह यष्टि छीन करे । ऐसा सगी जो प्रकट से हिला मिला हो और हृदय से ली।—प्रिय० प्र०, पृ० १८४ ।। शत्रु हो । प्रस्तीने चढाना=(१) कोई काम करने के लिये स्फुजित्--संज्ञा पुं० [सं०] शुक्र नामक ग्रह [को०] । मुस्तैद होना । (२) लडने के लिये तैयार होना । आस्तीन में प्रास्फोट-- सच्चा पु० [सं०] १ ठोकर या २ गढ़ से उत्पन्न शब्द । २ साँप पालना = शत्रु या अशुभचिंतक को अपने पास रखकर ताल ठोकने का शब्द । ३ मदार । उसका पोपण करना ।। आस्फोटक---संज्ञा पुं० [सं०] अखरोट । आस्ते--अव्य० [अ० श्राहिस्तह,, हि० असते] धीरे। श्रास्फोटक--वि० ताल ठोकनेवाला (को०] । अस्त्र--वि० [स०] हथियार या प्रायुधसवधी [को॰] । आस्फोटन--सज्ञा पुं० [सं०] १ ताल ठोकना। २ फटकना । ३ अस्था—सझी जी० [म०] १ पूज्य बुद्धि । श्रद्धा । हिलाना । पाना । ४. सकुचन । ५ ताली बजाना । ६ क्रि० प्र०—रखना !-—होना । उद्घाटित करना । प्रकट करना । ७ माडना (को०]। २ सभा । वैठक । ३ लवन । अपेक्षा । ३ प्रयत्न । चेष्टा आस्फोटनी--संज्ञा स्त्री० [स०] वरमी नामक बढ़ई का औजार जिससे (को०) । ४ निवास का साधन या स्थान (को०)। ५ वादा।। | लकडी मै छेद किया जाता है कि०] । प्रतिज्ञा (को०) ! ६ अाशा (को०)। आस्फोटा--सज्ञा स्त्री॰ [स०] नवमल्लिका । चमेली। अस्थाता–वि० [सं० स्यात् १ चढ़नेवाला । ग्रारोही। २ खडा आस्फोत--सज्ञा पुं० [स०] १ मदार । अर्क । २ कोविदार। ३ होनेवाला [को०]। । भूपलाश [को] । स्थान---सज्ञा पुं० [सं०] १ बैठने की जगह। बैठक । २ सभा । प्रास्फोतक--सज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० प्रास्फोतका] दे० 'आस्फोत', दरवार। श्रास्फोता' [को०)। यौ०---स्थानगृह, आस्थाननिकेतन, आस्थानमंडप । आस्फोता--संज्ञा स्त्री० [सं०] १ मल्निका। २ अपराजिता । ३ आस्थानिका----सज्ञा डी० [सं०] वैठने की कोई वस्तु । कुर्सी । सारिवा (को०]। मचिया [को०] । स्पंदन--संज्ञा पुं॰ [स० स्यन्दन] प्रस्रवण । वह्ना । (को०] । भास्थानी--मज्ञा स्त्री॰ [सं०] सभाकक्ष । सभागृह [को॰] । प्रास्यधय-सज्ञा पु० [स० प्रास्यन्धय] चु बन करना [को०] ।। आस्थापन–सझा पुं० [सं०] १. स्थापित करना । खड़ा करना। २ अास्य---संज्ञा पुं० [सं०] मुख । मुहै। मुखमडल । चेहरा । ३०-वैश | एक बलवर्धक प्रोपधि । ३ घी या तेल की वस्ति [को॰] । भाषा भगियो पर हास्य, कर रहे थे सरस सवकै अस्य । प्रस्थापित----वि० [सं०] १ खडा किया हुश्रा । ३ संस्थापित । ---साकेत, पृ० १७०।। दृढीकृत [को०] । आस्यपत्र--सज्ञा पु० [स०] कमल ।। स्थायिका--सा सी० [सं०] १ श्रोताओं को समाज । २ । आस्यलागल-सृज्ञा पु०[स० आस्यलाङ्गल]१ कुत्ता। २. सूअर [को॰] । दरबार को०] ।। आस्यलोम-सज्ञा पुं० [सं० प्रास्यालोमन्] दाढी [को०]। पास्थित-वि० [सं०] १ रहा हु प्र । वसा हुआ । २ यत्न करता स्या-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ विश्राम की अवस्था । २ वैठना । ३ हुआ। । ३ घेरा हुआ । ४. प्राप्त किया है । पहुँचा हुआ। रहना । ४ वासस्थान [को०] । ५ व्याप्त ! फैला हुआ [को०)। स्या--संज्ञा स्त्री० लार । राल । स्थिति--सच्चा स्त्री० [भ] अवस्था | दशा [को०] । स्या सव—संज्ञा पुं० [सं०] लाला । लार [को०] । भास्येय-वि० [सं०]१ जिसके पास पास पहुंचा जाये । २ गृहीतः । अस्युत--वि० [सं०] एक में सिला हुआ (को०)। ३,अदृत [को०] । आस्र--सज्ञा पुं० [सं०1 रक्त । खून (को०] ।