पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/७१

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अंगीकार अंगुलिस भूत अस्वीकरण और अगीकरण दोनो की क्षमता अपने प्राणों में अंगुलिका--संग्रा सी० [सं० प्रङ्ग,लिका] १ उँगली । एक प्रकार की जगानी होती है ।--सुनीता, पृ० २३७ । चीटी [को०]। अगीकार--सच्ची पुं० [सं० अङ्गीकार] स्वीकार । मजूर। कबूल । अगुलिगण्य--[ सं० अङ्ग,लिप्य ] उँगलियों पर गिनने योग्य । बहुत ग्रहण । कम । विरला । उ०—-गोपाल को सच्चा मत पगलिगण्य ही क्रि० प्र०---करना। उ०—जाक हरि अगीकार कियौ ।-सूर०, हो सकता है ।--सयू० अशि० ग्र०, पृ० ३१२। १।३७ --होना। अगुलितोरण--सधा पुं० [सं० अगुलितोरण] विपुट तिसवः । तीन अगीकृत--वि० [सं० अङ्गीकृत ] स्वीकार किया हुआ । ग्रहण किया। पतली अर्द्धचंद्राकार समानातर रेछ।' को हिल' जिसे शैव हुआ। अपनाया हुआ । लिया हुअा। वीकृत । मंजूर । लोग माथे पर लगाते हैं। उ०—–ज ने अगीकृत करे वै होइ हो रिन दास ।--सूर०, अगुलित्र--सा पुं० [सं० अङ्कलित्र ] १ यह तत या तारो वाला दाज १०१३४३१ ।। जो कमानी से नहीं बल्कि लगनी में मिजद पहनवर वडामा अगीकृति-सी स्त्री० [सं० अङ्गीकृति] स्वीकृति । मजूरी । अगीकरण। जाता है, जैसे--सितार, चीन, एकतारा आदि । २ दे० 'अगुन्निअगीय---वि० [सं० अङ्गीय] १ शारीर या अग सवधी । २ अग देश वाण' (को०) । का [को० ॥ अगुलित्राण-सं॥ पुं० [सं० अल्विाण ] गोद में चमड़े का बना अगुण---सेवा पुं० [सं० अङ्गण] वैगन । भटा [को० ]। हुला देस्ताना जिसे बाण चलाते समय उगलियों को अगुर--सूझा पुं० दे० 'अगुल'–१ । उ०--अगर द्वै घटि होत सघन रगरा से बचाने के लिये पहनते हैं । इगलियों की रक्षा के | स पुनि पुनि और मंगाय।--सूर०, १०५३४२। निमित्त गोह के चमड़े या एक आवरण । गह के चमड़े अगुरिपु--सच्चा स्त्री० [सं० अङ्ग,रि ] उंगली। उ०-मुंह अगृरि दे दे का दस्ताना! | मुसुकावति ।--नद ग्र०, पृ० २४३। । अगुलिवान--सा पुं० दे० 'म लिन्न ण' । उ०—मगुलिवान कमान अगुरी--सज्ञा स्त्री० [सं० अङ्ग.री ] उँगली । उ०--(क) भरति नीर धान छवि सुनि सुखद असुरनि उर सालति ।--तुलसी ग्र०, सुदरी । सु पानि पत्त अगरी । पृ० रा०, ६१।३३९ । ( ख ) पृ० ११५ । जी कोई ब्रज के रूखन के पता तथा डार तोरेगो ताके हाथ अगुलिनिर्दमा--संप पु० [सं० अङ्ग लिनिर्देश] १ उगली से समेत ३ रने की अगुरी हो तोसँगो ।-दो सौ बावन०, भा० १, पृ० ३०० । का कार्य । २ वदनामी । निंदा [को॰] । अगुरीय-- सच्चा पुं० [स० अङ्गरीय ] अँगूठे । मुंदरी [को०]। अगुलिपचय---समा पुः [सं० डगलिपफ 1 हाथ की पांच गलियों अगुरीयक- -संज्ञा पुं० दे० 'अगुरीय' [को०] । जिनके नाम ये -- अगुठ, प्रदर्शनी या जैनी, मध्यमा, मनाअगुल-- सझा पुं० [सं० अङ्ग ल] १ लवाई की एक नाप । एक प्रयत मिका भौर कनिष्ठिा । परिमाण । अाट जौ के पेट की लवाई। आठ सयौद व अगुलिपर्व---सन्न पुं० [ से अङ्गलियर्दन] उगरि यो की पोर । ३ गली यि सु अगल ले ये किल्ली ---पृ० की गाँठ या जोडे । रा०, ३।२२। विशेष --१२ अगुल का एक वित्ता और दो वित्ते का एक हाथ । | अगुलिमुख-सफा पुं० [सं० भइगुलिमुख ] उगली का सिरा या अ का एक बित्ता अरि दो वित्तं की एक हाथ नोक [को०]। होता है । अगुलिमुद्रा--सच्च स्त्री० [सं० अडगुलिमुद्रा ] १ मॅगठी जिसपर नाम | २ ग्रास या चारहवाँ भाग ( ज्यो०)। ३ उँगली । अलि । खुदा हो । नामानि त अंगूठी । २ मुहर लगाने के लिये नाम ४, अँगूठा। ५ चाणक्य या वात्स्यायन का एक नाम खुदी अंगूठी। [को॰] । अंगुलिमुद्रिका--सधा सी० दे० 'अगुलिमुद्रा' [को॰] । अगुलक--वि० [सं० अङ्ग,लको अगुल सबधी। जो अगुल के अगुलिमोटन--संज्ञा पुं॰ [सं० अङ्गुलिमोटन] अँगुली चटकाने या परिमाणवाला हो [को॰] । | फोडने का काम । उगली पुटकाना [को०] । अगुलप्रमाण'--सधा पुं० [सं० अङ्गलप्रमाण] अगुलियो की लवाई अगुलिवेष्ट--सा पुं० [सं० अगुलिवेप्ट] दस्ताना (को०] । यी चौड़ाई [को०]। अगुलिवेष्टक-- सम्रा पुं० दे० 'अँगुलियेप्ट' (को०]] अगुलप्रमाण--वि० अगुली की लवाईवाला [को०]।। अंगुलमान-सज्ञा पुं०, वि० दे० 'अगुलप्रमाण'[को॰] । अगुलिवेप्टन--सम्रा पुं० [सं० अङ्गुलिवेष्टन] १. दस्ताना। हथेली और उ गलियो को ढकने का प्रावरण। २ अगुलित्राण। अंगुलि--संज्ञा स्त्री० [सं• अङ्ग लि] १ दे० 'अगुली'। उ०——तडित करिग अगुलिसगी-सच्चा सी० [सं० अङगुलिसगा] उ गलियों में लिपट जाने | अगुलि धरम वान भगि प्रथिराज ---१० रा०, ५७८७। मुहा०—अगुलि फरना = ददनामी करना। अगल्या निर्देश करना। अगुलिसज्ञा--सच्चा स्त्री० [सं० प्रगलिसना उगली का इशारा कि०]। | उ०--जिहि प्रियजन अगुलि करै तिहि प्रियजन किहि काज। ऋगुलिसंदेश--सा पुं० [सं० अङ्गलिसन्देश उगली की मुद्रा से या —१० रा०, ६१५१२७३ । २. दस की सख्या (को॰) । अगुलिस भूत--स। पुं० [सं० अशुलिसम्भूत] नय को॰] । ती --तदित करिग अगुलिवाली लपसी । यवागू [को०] तिहि प्रियजन किहि काज। अ गली का इशारा कि०) । गली चुटकाकर संकेत करना मत] नय [को॰] ।