पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/४२०

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काशीखंडे काश्यप मुहा०—काशी (कास) करवट लेना = (१) काशी करवट नामक काश्मक राष्ट्रक-सज्ञा पुं० [सं०] हीरों के अनेक भेद या प्रकार (को०)। तीर्थ में गला कटवाकर मरना । प्राणत्याग करना। उ०- काश्मरी-सच्ची स्त्री० [सं०] एक प्रकार का बडा वृक्ष । सूरदास प्रभु जो न मिलेंगे लेह करवट कासी ।—सूर० विशेष—इसके पत्त पीपल के पत्तों से चोदे होते हैं और इसके (शब्द॰) । (२) कठिन दुःख सहना । काशी करवत लेना= कई अगो का व्यवहार ओपधि रूप में होता है । वि० दे० दे० 'काशी करवट लेना' । उ०--जो कोई जावे हिमालय पले ‘गारी' । काशी करवत लेकर मरे ।--दक्खिनी॰, पृ० १६ । । काश्मर्य-सच्चा पुं० [सं०] दे० 'काश्मरी' (को०)। फाशीखड-सज्ञा पुं० [सं० फाशीखण्ड] स्कद नामक महापुराण काश्मल्य-सच्चा पुं० [सं०] निराशा । मस्तिष्क का अव्यवयिस्त का एक खड, जिसमें स्कद द्वारा काशी का माहात्म्य वणित होना [को०] । हुआ है। काश्मीर--सूया पुं० [सं०] १ एक देश का नाम । दे० 'कश्मीर'। २ काशीनाथ—संज्ञा पुं० [सं०] विश्वनाथ । शिव । ईश्वर [को०] । कश्मीर का निवासी । २ कश्मीर में उत्पन्न वस्तु ।४ पुष्कर काशीफल- सज्ञा पुं० [सं० फाशफल ] कुम्हड़ा। मूल । ५. केसर ! ६ सोहागा । काशीवास—सज्ञा पुं० [सं०] १ काशी में निवास करना २ सन्यास । काश्मीर—वि० कश्मीर में उत्पन्न । कब मीर का । | लेना ! ३ मृत्यु पाना। देहत्याग करना । काश्मीरक, काश्मीरिक--वि० [स०] कश्मीर देश में उत्पन्न (को॰] । काशीराज-सज्ञा पुं॰ [सं०] ३० काशिराज' कि । काश्मीरज-सज्ञा पुं० [सं०] केसर [को०] । काशीश-- सज्ञा पुं० [सं०] १ एक उपधातु का नाम । २ शिव ।। काश्मीरजन्मा-सज्ञा पुं० [पुं० काश्मीरजन्मन् ] केसर कि]। विश्वनाथ [को०] । काश्मीर प को-सझा पुं० [सं० काश्मीरपद्ध] कस्तुरीं । मृगमद (को॰] । काशू-सा पी० [सं०] वरळी । माला। काश्मीरा-संज्ञा पुं० [स० काश्मीर] १ एक प्रकार का मोटा ऊनी काशूकार-सज्ञा पुं० [सं०] नुरी का पेड । पूग फल का वृक्ष (को०] । कपडा । २ एक प्रकार का अगूर।। काशेय–वि० [सं०] १. काशी सवधी । २. काशी में उत्पन्न [को०] ।। काश्मीरी–वि० [सं० काश्मीर +६]१ काश्मीर देश सबधी। काश्मीर काश्त-सज्ञा स्त्री॰ [फा०] १: खेती । कृधि । देश का । २ काश्मीर देश का निवासी । क्रि० प्र०—करना ।—होना । काश्मीरी- सज्ञा पुं० रबर का पेड । वोर । लेसू । २ जमीदार की कुछ वापक लगान देकर उसकी जमीन पर खेती काश्मीर्य—सा पुं० [सं०] केसर [को०] । करने का स्वत्व। काश्य- सच्चा पुं० [सं०] १. मदिरा। शराब । २ महाभारत के मुहा०—श्त लगना=वह अवधि पूरी होना जिसके बाद किसी अनुसार एक राजा का नाम [को०] । काश्तकार को किसी खेत पर दखीलकार का हुक प्राप्त ॐ काश्यप--वि० [सं०]१ कश्यप प्रजापति के वश या गोत्र का । कश्यप हो जाय। सवधी । २. जैन मतानुसार महास्वामी के गोत्र का । काश्तकार—सी पुं० [फा०] १. किमान । कृषक । खेतिहर । २. वह काश्यप-सज्ञा पुं० १. बौद्ध मतानुसार एक बुद्ध जो गौतम बुद्ध से पहले मनुष्य जिसने जमींदार को कुछ वार्षिक लगान देने की प्रतिज्ञा । हुए थे । २ रामचंद्र की सभा के एक सभासद 1 ३ कणाद करके उसकी जमीन पर खेती करने की स्वत्व प्राप्त किया हो । मुनि (को०) । ४ एक प्रकार का मूग (को०) ! ५.एक गोत्र का विशेष साधारणतः काश्तकार पाँच प्रकार के होते हैं, शरह । नाम जो कश्यप ऋषि के वशजो मे चला (को०) । ६. एक मुएअने, दखीलकार, गैर दखीलकार, साकितुल-मालकिपत और मुनि का नाम (को०) । ७. विपविद्या का एक विद्वान् जिसका शिकमी । शरह मूएप्रन वे हैं जो देवामी वदोबस्त के समय से उल्लेख महाभारत में विस्तार से हुआ है। बावन एक ही मुकर्रर लगान देते अाए हो । ऐसे काश्त- विशेष—कहा गया है कि जब शमीक के पुत्र शृ गी ऋषि ने राजा कारो की लगान वढ़ाई नहीं जा सकती और वे बेदखल नहीं परिक्षित को सातवें दिन तक्षक द्वारा इस लिए जाने का शाप किए जा सकते । दखीलकार। वे हैं जिन्हे वारह वर्ष तक दिया तब घन के लोभ से उन्हें बचाने के लिये यह ब्राह्मण लगातार एक ही जमीन जोतने के कारण उनपर दखीलकारी हस्तिनापुर चल दिया। रास्ते में तक्षक' से उसकी मॅट हो। का हुक प्राप्त हो गया हो और जो बेदखल नहीं किए जा गई । तक्षक के पूछने पर इसने हस्तिनापुर जाने का प्रयोजन सकते । गेर दखीलकार वे हैं जिनकी काश्त को मुद्दत बारह उसे बता दिया। इसकी सामर्थ्य की परीक्षा लेने के लिये उसने , वर्ष से कम हो । सुकिंतुल मलकियत वह है जो उसी जमीन एक विशाल वट वृक्ष को जाकर इस लिया। उसमें विष के पर पहले जमीदार की हैसियत से सौर करता रहा हो । शिकमा वह है जो किसी दूसरे काश्तकार से कुछे मुद्दत तक के प्रभाव से ज्वालाएं उठने लगी। उसके जन जाने पर लिये जमीन लेकर जोते । उसकी पख हाथ में लेकर ब्राह्मण ने मंत्र पढ़ा मौर काश्तकारी-समा [फा०] १. खेतीवारी। किसानी । २. क्राश्व वह वृक्ष फिर उसी प्रकार ज्यो का त्यो हो गया । यह फार का हुक । ३. वह जमीन जिसपर बि सी को माश्त झरने देर तक्षक ने बहुत सा धन देकर उस ब्राह्मण को वहीं से और दिया।