पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/७७

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धाक उनुमान कभी रियासत हाथ आएगी, इनी बात पर तो वे उधार खाए । या स० कनपञ्चाशत् ] चालीस अौर नी । उ०---लाग डाँट सम वैठे हैं। २ किसी की मृत्यु के आसरे में रहना । किसी का विसमें तान उनचास शूटि बट ।—हम्मीर रा०, पृ० ३३ ।। नाश चाहना । जैसे,—वह बहुत दिनों से तुम पर उधार खाए उनचास-सुज्ञा पु० चालीस शौर नौ की संख्या या अंक जो इस बैठा है (महापात्र लोग इस अशा पर उधार लेते हैं कि तरह लिखा जाता है --'४९' । । अमुक धनी आदमी गरेगा तो खूब नृपया मिलेगा। उनतीस--वि० [सं० एकोनत्रिंशत् प्रा० ऋउणतीस या स० ऊनत्रशत्] २ मॅगनी । किसी एक की वस्तु का दूसरे के पास केवल कुछ एक कम तीम् । वीस और नौ । दिनों के व्यवहार के लिये नाना । जैसे,—हुलवाई ने वरतुन उनतीस-सज्ञा पुं० वीस ग्रौर नो की संख्या या अक जो इस तरह उधार लाकर दुकान खोली है। | लिखा जाता है-'२६' । क्रि० प्र०--देना ।—पर लेना।लेना उनदा--वि० [स० उत्रि] उनीदा । नीद से भरा । उ०-पारधी ३ उद्धार । छुटकारा । नोर सुहाग की इन विनही पिय नेह, उनदी ही अँखियाँ ककै उवारक --वि० [१० उद्धारक] दे॰ 'उद्धारक'। | कै अलसोही देह ।-विहारी (शब्द॰) । उबरन--वि० [सं० उद्धार] उद्धार करनेवाला । उ॰--सगर- उनदोही--वि० सी० [स० उभिद्र, हि० उनींदा, स्यो० 'उनही] सुवन सठ सहन परत जल मात्र उधारन ---भारतेंदु ग्र० नींद से भरा हुआ ! उ,घता हा । उनींदा । मा० १, पृ० २०२।। उनविसतपु---वि० [सं० ॐनविदाति उन्नीस। उ०—सुनै जु कोऊ उबारना -क्रि० अ० [व० उद्धरण] उद्धार करना। मुक्त करना है। हरिचरित उन विंगत अध्याइ, पाप ने परसै नद तिहि पदमिनि छुटकारा करना । निस्तार करना । उ०-माया तिमिर मिटाय दल जल न्याइ ।-नद० ग्न ०, पृ० २८८ । के खेल कोटि उघारे --मारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० ४४४। उनमत –वि० [सं० उन्नत ] दे॰ 'उन्मत' । उ०--इहि विधि उबारा--वि० [सं० उद्घारिन्] [जी० उघारिनी] उद्धारक। वैन पॅन बुझि दूढि उनमत की नाईं।---पोद्दार अमि० ग्र०, उद्धार करनेवाला । पृ० ३८७ । उधारोष-संज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'उधार' । उ०-द्रव्य कौ सौ कार्य न उनमत –वि० [सं० उन्मद] १ उन्म । मतवाला । मदमस्त । होइ तोऊ उधारो लाइ के करतो 1---दो सौ बावन०, 'भा० १, उ०---वाज सुन रहै, उन मद मैन रहै, चित्त में ने चैन रहे। पृ० २८७ चातकी के रव सः ।- पद्माकर अ ०, पृ० १८७ । उधेड़ना-क्रि० स० [स० उद्धरण = उन्मूलन, उखाड़ना] १ उनमन--सज्ञा स्त्री० [सं० उन्म] दे० 'उन्मनी' । उ०—एता मिली हुई पर्त को अलग करना। उचाइना ।—जैसे, मारते कीजै अापके, तनमन उनमन लाइ । पच समाधी राखिए, इजा मारते चमड़ा उधेड लूगा । २ टाँका खोलना। सिलाई सेज़ नुमाइ --दादू० वानी, पृ० १५ ।। खोलना । २ छितराना । विखराना। उनमना--वि० [सं० उन्मनस्क] [ली० उनमनी] दे॰ 'अनमना' । उधेड़बुन--संज्ञा पुं० [हिं० उधेड़ना+बुनना] १ सोचविचार। ऊहापोह । उ०—-पड़ गए हो उधेड़बुन में क्यो –बुभते०, उनमायना-- क्रि० स० [स० उदमथ या उन्मयन] [वि॰ उनमाथी] पृ० ४२ । २ युक्ति बाँधना । जैसे,-किस उधेड़बुन में हो जो मथना । विलोडन करना । उनमाथी कही हुई बात नहीं सुनते । -वि० [सं० उन्मायिन् या हि० उनमार्थना] मयनेवाला। उबेर -क्रि० स० [हिं॰] दे॰ 'उधेड' । विलोडन करनेवाला । ३०-जल ते सुथल पर, यल ते सुजल उधेरना--क्रि० स० [हिं०] दे॰ 'उधेडना'। पर उथल पुथल जल यन उनमाथी को। वरस कितेक बीते उनत --वि० [सं० अनुन्नत या अवनत] झुका हुँझा । नत । उ०- जुगुति चली ने कछु विना दीनवयु होत साँकरे मे साथी कोप जसे दारिव दाखः । भई उनत प्रेम के साखा ।—जायसी को ? मन बच करम, पुकारत प्रगट 'वैनी' नाथन के ग्रं॰, पृ॰ २४ । नाय ॐ अनाथन सनायी को । वन करि हारे हाथो हाथी सव उन - सवं० [हिं०] 'उस' का वहुवचन ।। हाथी, तब हाथा हाथी हरखि उवारि लीनो हाथी को ।-बेनी विशेप-'वह' का किसी विमति के साथ संयोग होने से उस (शब्द॰) । रूप हो जाता है । उनमाद —सज्ञा पुं० [सं० उन्मदि] दे॰ 'उन्माद'। उ०—ानदघन उनइस यु't--वि० [स० ऊर्नावश] दे० 'उन्नीस' । लीला रस चाखें बढे प्रेम उनमाद 1--धनानद, पृ० ४३६ । उनका- सुज्ञा पुं० [अ० अन्का] एक पक्षी जिसे आज तक किसी ने उनमादना-- क्रि० अ० [हिं० उननाद उन्मत्त होना। नहीं देखा है। यह ययार्य मे एक कल्पित प्राणी है। उनमादी-वि० [सं० उनमाद+ई (प्रत्य०) या उन्नादिन्] पागल यी०—उनका लिफत उनका की तरह कभी न दिखाई देने करनेवाला । उन्मत्ता करनेवाला । उ०—कान्ह की बसुरिया वाला । जैसे, आप तो अजि कल उनका सिफत हो रहे हैं। है उनभादी खेलति रहे वारहमासी फाग -बनानद, पृ० ४८५॥ कभी अपकी सूरत ही नहीं दिखाई पड़वी (शब्द०)। उनमान -संज्ञा पुं० [सं० अनुमान] १ अनुमान । बयाल । ध्यान । उनचास-वि० [सं० एकोनपञ्चाशत्, १० एखणपचास, उनचास समझ । उ०--(क) तीन लोक उनमान में चौथा अगम