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रीति-ग्रंथकार कवि

की प्रणाली भी मनोहर है। ये वास्तव में एक उत्कृष्ट कवि थे। रचना के कुछ नमूने लीजिए––

येई उधारत हैं तिन्हैं जे परे मोह-महोदधि के जल-फेरे।
जे इनको पल ध्यान धरैं मन, ते न परैं कबहूँ जम घेरे
राजै रमा रमनी उपधान, अझै बरदान रहैं जन नेरे।
हैं बलभार उदंड भरे, हरि के भुजदंड सहायक मेरे॥


इक आजु मैं कुंदन-बेलि लखी, मनिमंदिर की रुचिबृंद भरैं।
कुरविंद के पल्लव इंदु तहाँ, अरविंदन तें मंकरद झरैं॥
उत बुंदन के मुकुतागन ह्वै, फल सुंदर भ्वै पर आनि परैं।
लखि यों दुति कंद अनंद कला, नदनंद सिलाद्रव रूप धरैं॥


आँखिन मूँदिबे के मिस आनि, अचानक पीठ उरोज लगावै।
केहूँ कहूँ मुसकाथ चितै, अँगराय अनूपम अंग दिखावै॥
नाह हुई छले सों छतियाँ, हँसि भौंह चढ़ाय अनंद बढावै।
जोबन के मद मत्त तिया,हित सों पति को नितं। चित्त चुरावै॥


(२) बेनी––ये असनी के बंदीजन थे और संवत् १७०० के आसपास विद्यमान थे। इनका कोई ग्रंथ नहीं मिलता पर फुटकल कवित्त बहुत से सुने जाते है जिनसे यह अनुमान होता है कि इन्होंने नखशिख और षट्ऋतु पर पुस्तकें लिखी होगी। कविता इनकी साधारणतः अच्छी होती थी; भाषा चलती होने पर भी अनुप्रासयुक्त होती थी। दो उदाहरण नीचे दिए जाते है––

छहरै सिर पै छबि मोरपखा, उनकी नथ के मुकुता थहरैं।
फहरै पियरो पट बेनी इतै, उनकी चुनरी के झबा झहरैं॥
रसरंग भिरै अभिरे हैं तमाल, दोऊ रसख्याल चहैं लहरैं।
नित ऐसे सनेह सों राधिका स्याम हमारे हिए में सदा बिहरैं।