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गद्य-साहित्य का प्रसार


भावविभूति या चरित्रचित्रण नहीं। ये वास्तव में घटना-प्रधान कथानक या किस्से हैं जिनमें जीवन के विविध पक्षों के चित्रण का कोई प्रयत्न नहीं, इससे ये साहित्य-कोटि में नहीं आते। पर हिंदी-साहित्य के इतिहास में बाबू देवकीनंदन का स्मरण इस बात के लिये सदा बना रहेगा कि जितने पाठक उन्होंने उत्पन्न किए उतने किसी और ग्रंथकार ने नहीं। चंद्रकांता पढ़ने के लिये ही न जाने कितने उर्दू-जीवी लोगो ने हिंदी सीखी। चंद्रकांता पढ़ चुकने पर वे "चंद्रकांता की किस्म की कोई किताब" ढूँढ़ने में परेशान रहते थे। शुरू शुरू में 'चद्रकांता' और 'चंद्रकाता संतति' पढ़कर न जाने कितने नवयुवक हिंदी के लेखक हो गए। चंद्रकांता पढ़कर वे हिंदी की और प्रकार की साहित्यिक पुस्तकें भी पढ़ चले और अभ्यास हो जाने पर कुछ लिखने भी लगे।

बाबू देवकीनंदन के प्रभाव से "तिलस्म" और "ऐयारी" के उपन्यासों की हिंदी में बहुत दिनों तक भरमार रही और शायद अभी तक यह शौक बिल्कुल, ठंढा नहीं हुआ है। बाबू देवकीनंदन के तिलस्मी रास्ते पर चलने वालों में बाबू हरिकृष्ण जौहर विशेष उल्लेख योग्य हैं।

बाबू देवकीनंदन के संबंध में इतना और कह देना जरूरी है कि उन्होंने ऐसी भाषा का व्यवहार किया है जिसे थोड़ी हिंदी और थोड़ी उर्दू पढ़े लोग भी समझ लें। कुछ लोगों का यह समझना कि उन्होंने राजा शिवप्रसाद वाली उस पिछली 'आम-फहम' भाषा का बिलकुल अनुसरण किया जो एकदम उर्दू की ओर झुक गई थी, ठीक नहीं। कहना चाहें तो यों कह सकते हैं कि उन्होंने साहित्यिक हिंदी न लिखकर "हिंदुस्तानी" लिखी, जो केवल इसी प्रकार की हलकी रचनाओं में काम दे सकती है।

उपन्यासों का ढेर लगा देनेवाले दूसरे मौलिक उपन्यासकार पंडित किशोरीलाल गोस्वामी (जन्म सं॰ १९२२––मृत्यु १९८९) हैं, जिनकी रचनाएँ साहित्य-कोटि में आती हैं। इनके उपन्यासों में समाज के कुछ सजीव चित्र, वासनाओं के रूप-रंग, चित्ताकर्षक वर्णन और थोड़ा बहुत 'चरित्र-चित्रण' भी अवश्य पाया जाता है। गोस्वामीजी संस्कृत के अच्छे साहित्य-मर्मज्ञ तथा हिंदी