पृष्ठ:हिंदी साहित्य का इतिहास-रामचंद्र शुक्ल.pdf/५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
३४
हिंदी-साहित्य का इतिहास

सकता कि 'दलपत-विजय' असली खुमानरासो का रचयिता था अथवा उसके पिछले परिशिष्ट का।


(२) बीसलदेवरासो––नरपति नाल्ह कवि विग्रहराज चतुर्थ उपनाम बीसलदेव का समकालीन था। कदाचित् यह राजकवि था। इसने "बीसलदेवरासो" नामक एक छोटा सा (१०० पृष्ठों का) ग्रंथ लिखा है जो वीरगती के रूप में है। ग्रंथ में निर्माण-काल यों दिया है––

बारह सै बहोत्तराँ मझारि। जेठ बदी नवमी बुधवारि।
'नाल्ह' रसायण आरंभइ। सारदा तूठी ब्रह्मकुमारि॥

'बारह सै बहोत्तर' का स्पष्ट अर्थ १२१२ है। 'बहोत्तर' शब्द, 'बरहोत्तर' 'द्वादशोत्तर' का रूपांतर है। अतः 'बारह सै बहोत्तराँ' का अर्थ 'द्वादशोत्तर बारह से' अर्थात् १२१२ होगा। गणना करने पर विक्रम संवत् १२१२ में ज्येष्ठ बदी नवमी को बुधवार ही पड़ता है। कवि ने अपने रासो में सर्वत्र वर्तमान काल का ही प्रयोग किया है जिससे वह बीसलदेव का समकालीन जान पड़ता है। विग्रहराज चतुर्थ (बीसलदेव) का समय भी १२२० के आसपास है। उसके शिलालेख भी संवत् १२१० और १२२० के प्राप्त हैं। बीसलदेवरासो में चार खंड हैं। यह काव्य लगभग २००० चरणों में समाप्त हुआ है। इसकी कथा का सार यों है––

खंड १––मालवा के भोज परमार की पुत्री राजमती से साँभर के बीसलदेव का विवाह होना।

खंड २––बीसलदेव का राजमती से रूठकर उड़ीसा की ओर प्रस्थान करना तथा वहाँ एक वर्ष रहना।

खंड ३––राजमती का विरह-वर्णन तथा बीसलदेव का उड़ीसा से लौटना।

खंड ४––भोज का अपनी पुत्री को अपने घर लिवा ले जाना तथा बीसलदेव का वहाँ जाकर राजमती को फिर चित्तौड़ लाना।

दिए हुए संवत् के विचार से कवि अपने नायक का समसामयिक जान पड़ता है। पर वर्णित घटनाएँ, विचार करने पर, बीसलदेव के बहुत पीछे की जान पड़ती है जब कि उनके संबंध में कल्पना की गुंजाइश हुई होगी। यह