पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१८३

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( १७० ) ‘रामचरित्र' नामक भाषा काव्य है जो बाल्मीकीय रामायण और हनुमान नाटक पर आधृत है। • टि०–मानदास ब्रजवासी का रचनाकाल सं० १८१७-६३ है। इनके रामचरित संबंधी ग्रंथ का नाम 'राम कुट विस्तार है, न कि राम चरित्र।। | -सर्वेक्षण ६२८. १७३. ठाकुर कवि-प्राचीन 1:१६४३ ई० में उपस्थित . ..: 1. हजारा, सुंदरी तिलकः। : एक विवरण के अनुसार यह असनी 'फतहपुरे के . भाट थे और मुहम्मदशाह ( १७१९-१७४८ ई० ) के समय में थे। दूसरे कहते हैं कि यह बुंदेलखंड के कायस्थ थे । बुंदेलखंड में एक दंत कथा है कि . एक बार छतरपुर में बुंदेले गोसाई हिम्मत बहादुर ( सं० ३७८ ) को मार डालने के लिए एकत्र हुए और ठाकुर ने उनके पास इन शब्दों से प्रारंभ । होनेवाला एक सवैया लिख भेजा—कहिवे सुनिवे की कछु नहियाँ । जिसको पाने पर, सुभ तितर बितर हो गए। हिम्मत बहादुर ने इसे सेवा के लिए इन्हें रुपये पैसे से पुरस्कृत किया। किंतु हिम्मत बहादुर १८०० में हुए हैं, जब कि यह कविता कालिदास त्रिवेदी ( से० १५९ ) के हजारों में संकलित हैं जो कि १७०८ ई० के आसपास विरचिंत हुआ था । बहुत । संभावना है कि इस नाम के दो कवि हुए जों एक दूसरे में घुल मिल गए। हैं। साथ ही शिव सिंह का कहना है कि उनके पास उन ठाकुर कवि की सैकड़ों फुटकर कविताएँ हैं जो सं० १७०० ( १६४३ ई० ) में उपस्थित थे। इसीलिए प्रसंग प्राप्त कवि की उक्त तिथि निर्धारित की गई है। | टि---वस्तुतः तीन ठाकुर हुए हैं." " ( १ ) ठाकुर प्राचीन--यह सं० १७०० वि० में उपस्थित थे और इनकी कविता हजारों में थी । ( ३ ) ठाकुर कायस्थ बुंदेलखंडीइनका संबंध पझा दुरबार से था। यह पद्माकर और हिम्मत बहादुर के समकालीनं हैं, इनका जन्म ओरछा मैं सं० १८२३ मैं एवं देहावसान सं०१८४० में हुआ था। (३) ठाकुर बंदीजन असनीवाले यह ऋषिनाथ के पुत्र, धनीराम के पितां और सेवक के पितामहे थे। यह काशीनरेश के भाई बाबू देवकीनंदन सिंह के यहां रहते थे । यहीं सं० १८६१ में इन्होंने बिहारी सतसई की संतसई बरनाथं देवकीनंदन टीका' रची । .. ... ...... • --सर्वेक्षण ३१. १: पूरी कचिंता शिवं सिंह सरोज पृष्ठ. १२४ पर दी गई है।