पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/९

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है कि उनकी कविता किस संग्रह में मिलती है। संग्रह का संक्षिप्त नाम दिया है, मैंने संग्रह का पूर्ण नाम दिया है। मूल ग्रंथ में कवियों का विवरण देने के पहले, कवि-नाम जिस प्रकार नागरी लिपि में छपा है, इस अनुवाद में भी उक्त स्थान पर नाम की वही वर्तनी रखी गई हैं, उसमें अन्तर नहीं किया गया है। अन्यत्र रूप बदल दिया गया है।

ग्रन्थ को भली भाँति समझने की दृष्टि से इस वक्तव्य के अनन्तर अन्तर्दर्शन दिया गया हैं। इसमें ग्रियर्सन की हिन्दी सेवाओं का उल्लेख हुआ है; हिन्दी साहित्य के इस प्रथम इतिहास की रूपरेखा को परिचय दिया गया है; इसके आधार-ग्रन्थों एवं लेखन-पद्धति पर विचार हुआ है; यह शिवसिंह सरोज का कितना आभारी है, इसका भी आँकड़ों के सहित निर्देश किया गया है; ग्रियर्सन के इस ग्रंथ का महत्व भी दिखाया गया है और यह अनुवाद क्यों आवश्यक है, इस पर भी प्रकाश डाला गया है। इस अन्तर्दर्शन के उपरान्त मूल ग्रन्थ का स-टिप्पण अनुवाद है।

'तासी' ने अपने ग्रंथ को 'हिन्दुई और हिन्दुस्तानी साहित्य का इतिहास' कहा है। इसके हिन्दी से सम्बन्धित अंश का अनुवाद डा० लक्ष्मीसागर वाष्र्णेय ने 'हिंदुई साहित्य का इतिहास' नाम से प्रस्तुत किया है, जो हिन्दुस्तानी अकेडेमी इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ है। यह ग्रंथ मूल का अनुवाद मात्र है। दिए हुए विवरण कहाँ तक ठीक हैं, इस पर विचार नहीं किया गया है, अन्यथा ग्रंथ की उपयोगिता और बढ़ जाती है। तासी ने अपने ग्रन्थ को यद्यपि इतिहास कहा है, पर यह इतिहास नहीं है, क्योंकि इसमें न तो कवियों का विवरण काल-क्रमानुसार दिया गया है, न काल-विभाग किया गया है; और जब काल-विभाग ही नहीं है, तब काल-प्रवृत्ति-निरूपण की आशा कैसे की जा सकती हैं। इस ग्रन्थ में वर्णानुक्रम से कवि प्रस्तुत किए गए हैं। यही दशा सरोज की भी है। यह भी वर्णानुक्रम से कवियों का संक्षिप्त परिचय, अधिकांश में नामोल्लेख मात्र, देता है और इतिहास संज्ञा का अधिकारी नहीं हो सकता। सरोजकार ने इसे तासी के समान अत्यंत महत्वाकांक्षा पूर्ण इतिहास