१९६ - हिन्दी साहित्यकी भूमिका अनुक्रमणी और परिशिष्ट आदिकी जातिका है, और प्रश्न तथा उत्तरके रूपमें लिखित है। सुत्त-पिटक जिस प्रकार विनय-पिटकसे हम बौद्ध संघ और भिक्षुओंके दैनंदिन आचार- न्यवहारोंको समझ सकते हैं, उसी प्रकार सुंत्त-पिटकसे हम बौद्ध धर्मको समझते हैं। इस पिटकमै पञ्च निकाय (समूह) या आगम हैं-दीघनिकाय, मझिम. निकाय, संयुत्तनिकाय, अंगुत्तरनिकाय और खुद्दकनिकाय । प्रथम चार निकाय सूत्रोंके संग्रह हैं । दीघनिकायमें बड़े बड़े सूत्र, मज्झिममें मध्यम मानके सूत्र, संयुत्तनिकायमें संयुक्त विषयोंके सूत्र और अंगुत्तरनिकायमें एक दो आदि संख्याओंके सूत्र हैं। सूत्र किसे कहते हैं, इस विषयमें अर्थकथाओंने अनेक अर्थ दिये हैं; सुत्त उसे कहते हैं जो सूचना दे, जो सुष्टु भावसे कहा गया हो, जो सवन-(या फलप्रसव-) कारी हो, सूदन यानी गायके थनसे दूधकी तरह अर्थ जिससे निःसृत हो रहा हो, जो सुत्राण करे, बढ़ईके सूत्रों की तरह विज्ञोंका माप करे इत्यादि। निकायोंमें या तो बुद्धदेवके (कभी कभी उनके किसी प्रधान शिष्यके) उपदेशोंकी बात है, या फिर इतिहास-संवादके रूपमें बातचीत । इस प्रकार बड़ी सरलताके. साथ प्रभोत्तर-छलसे भगवान बुद्ध गूढसे गूढ़ विषयोको समझा देते हैं । निकाय शब्दके लिए पालीमें आगम शब्द भी प्रचलित है; पर संस्कृतमें जो निकाय थे, उन्हें आगम ही कहा जाता है। संभवतः निकाय स्थविरवादियों का शब्द है। दिव्यावदानमें चार आगमोंका स्पष्ट उल्लेख हैः दीर्घ, मध्यम, संयुक्त और एकोत्तर। पाँचवें क्षुद्रकका कोई उल्लेख न देखकर किसी किसी पण्डितने सन्देह किया था कि यह निकाय बादका है। दिव्यावदान सर्वास्तिवादका ग्रन्थ है, और लेवी साहबने सिद्ध किया है कि इस सम्प्रदायके पास भी क्षुद्रकनिकाय , नामक आगम वर्तमान था । बुद्धघोष नामक प्रसिद्ध भाष्यकारने सुदिन नामक एक भिक्षुका मत उद्धृत किया है जिससे जान पड़ता है कि प्राचीन कालमें कोई कोई ऐसे भिक्षु ये जो क्षुद्रकनिकायको सूत्रपिटकके अंतर्गत नहीं मानना चाहते थे। दो बौद्ध सम्प्रदायोंमें क्षुद्रक निकायके ग्रन्थोंकी दो प्रकारकी सूची दी हुई है, दीघमाणकोंके मतसे १२ और मज्झिममाणकोंके मतसे १५ । अन्तिम मतको ही प्रमाण समझकर बुद्धघोषने निम्न-लिखित पंद्रह ग्रन्थोंकी सूची दी है-(१)