पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/६

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मज्जेन्नयो दंडनीतौ हतायां सर्वे धर्माः प्रक्षयेयुर्विवृद्धाः । सर्वे धर्माश्चाश्रमाणां हताः स्युः क्षात्रे त्यक्ते राजधर्मे पुराणे । सर्वे त्यागा राजधर्मेषु दृष्टा सर्वा दीक्षा राजधर्मेषु युक्ताः । सर्वा विद्या राजधर्मेषु चोक्ताः सर्वे लोका राजधर्म प्रविष्टाः ।। म० भा० शा०प०६३ । २८।२६। जिस समय दंडनीति निर्जीव हो जाती है, उस समय तीनों वेद डूब जाते हैं, सब धर्म ( अर्थात् सभ्यता या संस्कृति के आधार ) (चाहे वे) कितने ही उन्नत क्यों न हो, पूर्ण रूप से नष्ट हो जाते हैं। जब प्राचीन राजधर्म का त्याग कर दिया जाता है, तब वैयक्तिक आश्रम-धर्म के समस्त आधार नष्ट हो जाते हैं I सब प्रकार के त्याग राजधर्म मे ही दिखलाई पड़ते हैं और सब प्रकार की दीक्षाएँ राजधर्म में ही युक्त हैं। सब प्रकार की विद्याएँ राजधर्म में ही सम्मिलित हैं और समस्त लोक राजधर्म के ही अंतर्गत हैं। 5