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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/१२४

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सन्धि दौड़-धूप मे क्या रखा है ? यदि कल मुझे मरना ही होगा तो कोई बचा नहीं सकता । यदि जीवित रहना है तो कोई क्या खाकर मारेगा? भाग्य से मै क्या, कोई भी नहीं लड़ सकता। तीनों के विचार भिन्न थे अत. उनके रक्षा के उपाय भी भिन्न थे। अगले दिन प्रातःकाल धीवर उसी सरोवर पर जाल लेकर आये। अनागत विधाता तो पहले ही आ चुकी थी। प्रत्युत्पन्नति जब पकड़ी गई तो उसने अपने को मृत दिखाया। धीवर ने उसे जाल से खोलकर एक ओर रख दिया। वह अपनी सम्पूर्ण शक्ति से उछली और पानी में पहुँच गई । अव वह गहरे पानी मे पहुँच चुकी थी। यद्भविप्य ने वचने का कोई भी विचार नहीं किया । अत. वह मारी गई। x x x x कछुआ : अतएव मैं कहता हूँ कि हमे शीघ्र ही इस सरो- वर को छोड़ देना चाहिए। हंस बोले : आप जल की भांति पृथ्वी पर तो चल नहीं . सकते फिर यह किस भांति सम्भव है। कछुआ : कोई ऐसा उपाय सोचिए, जिससे कि मै आकाश मार्ग से ही आप के साथ जा सकूँ । हंस : वह कौन-सा उपाय है ? कछुआ : आप लोग एक लकड़ी अपने मुंह मे ले ले, मैं उसे बीच से अपने मुंह से पकड़ लूंगा। इस भाति हम तीनों ही आकाश-मार्ग के द्वारा दूसरे तालाब मे पहुँच जायेंगे। हंस : भाई, उपाय के साथ-साथ उसकी हानियों पर भी विचार कर लेना चाहिए। नहीं तो कहीं हमें भी बगुले की भांति 7