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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/१३०

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1 सन्धि के समय में तो यह भी हमारा मित्र है । अतः मछलियो ने बगुले से कहा : इस आपत्ति से बचने का क्या कोई उपाय भी है ? बगुला : इस समय तो केवल यही उपाय है कि इस तालाब को छोड़ कर किसी दूसरे तालाब में चला जाए। यदि आप लोग चाहे तो मैं आप लोगों को पास वाले सरोवर में एक- एक करके ले जा सकता हूँ। फिर क्या था ? प्रत्येक मछली सबसे पहले जाने के लिये तैयार हो गई। बगुला वारी-बारी सवको ले जाता और पास की झाड़ी में छिपकर उन्हें खा जाता। इसी भांति उसने बहुत- सी मछलियों को खा लिया। कुछ समय उपरान्त केकड़े ने बगुले से कहा : भाई, सब को ले जाओगे । पर क्या हमे यहीं छोड जाओगे? वगुले का पेट तो खूब भर चुका था । पर फिर भी उसने सोचा-मैने जीवन भर मे कभी भी केकड़े का मांस नहीं खाया-आज सौभाग्य से यह मुझे प्राप्त हुआ है। यह विचार कर उसने केकड़े से कहा : अरे भाई यह क्या कहते हो? तुम्हे नही ले जाऊंगा तो और किसे ले जाऊंगा? बगुले ने केकड़े को अपनी पीठ पर बिठा लिया और उस आर चल दिया जहां उसने मछलियों को खाकर उनकी हड्डियों का ढेर लगाया हुआ था । हड्डियों के ढेर को देखकर केकड़े ने सारी स्थिति समझ ली। वह सोचने लगा-तब तक भय से डरना नहीं चाहिये जव तक वह आ न जाये। भय के उपस्थित हो जाने पर उसके निवारण के लिए यथोचित रूप से जैसा वन