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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/१४२

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सन्धि . एक समय वर्षा अधिक होने के कारण तीनों सेवकों को कुछ खाने को नहीं मिला। सिंह की भी एक वलवान हाथी से मुठभेड़ हो गई थी। सिंह ने उसे मार तो दिया पर हाथी ने भी उसे कम चोटे न दी थी । अतः वह भी आस-पास जाकर आहार खोजने में असमर्थ था। सबने बहुत प्रयत्न किया, पर किसी प्रकार सफलता नहीं मिली। बहुत संतप्त होकर कौए ने व्याघ्र से कहा: मित्र, इस कांटे खाने वाले ऊँट से हमें क्या लाभ ? इसे मारकर क्यों न खा लिया जाए ? व्याघ्र : मूर्ख, जानते नही हो, महाराज ने इसे अभय प्रदान किया हुआ है। गीदड़ : इन बातों में क्या रखा है ? भूख से व्याकुल होकर प्राणी क्या नही कर लेता ? भूखी होने पर स्त्री अपने पुत्र का त्याग कर देती है । भूखी होने पर सर्पिणी अपने पुत्रों को खा जाती है । फिर भूखा, भयभीत, पागल, थका हुआ, क्रोधी और लोभी प्राणी तो हर एक पाप करने पर तुल जाता है। सलाह करके तीनों मदोत्कट सिंह के पास गए। सिंह ने पूछा : क्यों ! आज कहीं कुछ प्राप्त हुआ ? कौआ : महाराज, बहुत खोजा पर कुछ भी नहीं मिला। चिन्तित होकर सिंह बोला: अब हम लोग किस भांति जीवित रह सकेंगे? कौआ : परोसी हुई थाली को छोड़कर बैठे रहने के कारण आज हमारी यह हालत हुई। सिंह : तुम्हारा क्या तात्पर्य है ? क्या कोई भोजन हमारे } ३ आपस

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