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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/१५१

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१५८ हितोपदेश बहाने ही नाश कर दिया करते हैं। परन्तु मन्त्री चक्रवाक ने हिरण्यगर्भ को समझाया। हिरण्यगर्भ ने अपने मन्त्री समेत चित्रवर्ण के मन्त्री का स्वागत किया। दोनों पक्षों ने धर्म की प्रतिज्ञा करके परस्पर सन्धि कर ली। x x X x विष्णुशर्मा बोला : राजपुत्रो, मैंने तुम्हें सन्धि-नीति भी सुना दी । अब आप लोग और क्या सुनना चाहते है ? राजपुत्र : गुरुदेव, आपकी कृपा से हमें नीति का समु- चित ज्ञान हो गया है। अब हमें आप कृपा करके अपना आशीर्वाद दीजिए। विष्णु शर्मा : ऐसा है तो आओ, हम लोग कल्याण के लिए अपने आराध्य देव से प्रार्थना करें । तदनन्तर तुम अपने राज्य में जाकर अपनी प्रजा का पालन-पोषण करो। ॥ चतुर्थ खंड समाप्त ॥ इति