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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/१८

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४ पहचान बिना मित्र न बनाओ अज्ञात कुल शीलस्य वामो देयो न कस्यचिन् ।

जिनके कुल-नील और स्वभाव का पना न तो उन तिमी को भी निवाम नहीं देना चाहिए। ८ गगा जी के तट पर गिद्धौर नामका पर्वत है। उन पर एक लम्बा-चौड़ा पाकड का वृक्ष था। यह वृक्ष बहुत पुराना था। इसके कोटर मे जरद्गव नाम वा गिद्ध रहता ।। जरद्गव इतना वृद्ध हो चुका था कि वह अपने लिए भोजन आदि का भी प्रवन्ध नहीं कर पाता था। उसकी दीन दना पर दया करके उस वृक्ष पर रहनेवाले पक्षियों ने उससे कहा तुम हमारे चले जाने के बाद हमारे बच्चो की देख-रे। किया करो, हम तुम्हें भोजन दिया करेंगे। इससे तुम्हे भोजन मल जाया करेगा और हमारे बच्चो की देख-रेख होगी। जरद्गव ने यह वात प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करली और नों को जीवन उसी भाति चलता रहा। एक दिन पक्षियों के गावको को खाने के लिए एक विलाय ( २३ )